Sunday, December 4, 2016

II




डेन्जिली के विश्वविद्यालय में

वह लगभग ऐसे हाँफ रहा था, जैसे कि मीलों से दौड़ कर चलता आया हो, जबकि हम जानते थे कि वह इसी ठसाठस भरे सभागार के किसी कोने में बैठा होगा, हो सकता है कि काफी वक्त से कुछ कहने की हिम्मत भी जुटा रहा होगा। हो सकता है कि वह मन ही मन उन सब बातों को दुहरा होगा, जिन्हें कहने की कोशिश में वह भागा चला आया था। टीवी के अलावा वक्त देखने का कोई साधन नहीं था। करीब ग्यारह बजे मिनि बस में सवार थे, और हमारा पहला पड़ाव एक पमाकुलम की पहाड़ी पर था। कहा जाता है कि इस पहाड़ी की जमीन में खनिज की मात्रा बेहद ज्यादा है. यही कारण है कि किसी कम्पनी ने यहाँ की पहाड़ी से मिट्टी उठाने का काम शुरु किया तो शहर के सभी नागरिक हाथ में मोमबत्ती लेकर पहाड़ी पर चढ़ आए, और यहाँ के जमीन की उर्वरता बच गई।

अब हम ऐसी जगह पहुँचे, जहाँ रेशम बुना जाता है। तुर्क के कालीन विश्व प्रसिद्ध हैं,, कालीन के मामले मे तुर्क और भारत का व्यापारिक सम्बन्ध बना रहा है। तुर्क में भाषा की समस्या रहती है लेकिन यहाँ के मालिक का बेटा धड़ल्ले से अंग्रेजी बोल रहा था। पुछने पर बताया कि वह कालीन लेकर अनेक देशो की यात्रा करता रहता है। व्यापार भाषा का सबसे बड़ा सहयोगी होता है। मैंने आज से 35 साल पहले भी कन्याकुमारी मे


अतौल, तुर्की के लोकप्रिय कवि छात्रों की भीड़ से घिरे हुए थे। घनघोर राजतन्त्रीय जीवन शैली वाले इस राज्य में, जो अपने उदारवादी विचारधारा के कारण पश्चिम में ही नहीं पूर्व में भी खासा लोकप्रिय है, अतौल वामपंथी विचार धारा के कवि हैं, जो राजनीतिज्ञों के आँख की किरकिरी होते हुए भी युवा वर्ग और जनता में बेहद लोकप्रिय हैं। डेन्जिली में पहुँचने के दूसरे दिन सुबह अतौल ने हम लोगों को यह बताया तो था कि उन्हें शाम को शीर होटल ( शायरी होटल - डेन्जिली ) के कविता समारोह से पूर्व पमुक्कले विश्वविद्यालय में छात्रों को सम्बोधित करने जाना है। यह वह वक्त था जिसे शहर भ्रमण के लिए रखा गया था। लेकिन मुझे और रकेल दोनों को लगा कि शहर तो फिर घूमा जा सकता है, छात्रों से मिलने का इससे अच्छा अवसर मिलना नामुमकिन है। तुर्क में प्रवेश करते ही भाषा की समस्या का अनुभव लगातार हो रहा था। होटल मालिक इजत बोजबियिक के बेटे आनिल को छोड़ कर कोई भी अंग्रेजी नहीं बोल पा रहा था। आनिल स्वीटजर लैण्ड में पढ़ाई कर रहा है, इसलिए मित्रों की संगत में थोड़ी बहुत अंग्रेजी बोल लेता है। अन्यथा यहाँ तुर्की के अतिरिक्त किसी अन्य भाषा का चलन नहीं के बराबर लगा। अतौल भी अंग्रेजी की अपेक्षा फ्रैंच भाषा का बेहतर ज्ञान रखते हैं। पिछली शाम को सहभोज के वक्त हम आनिल का उपयोग दुभाषिये के रूप में कर रहे थे। भाषा का आना भी एक अजीब सा मजा दे जाता है, पहली बार आप मूल भाषा को केवल आंगिक प्रतिक्रिया के रूप में देख पाते हैं। शब्द कानों से टकरा- टकरा कर बिखर जाते हैं। फिर दुभाषिये की जबान में भाषा का अजीब सा अर्थ प्रस्तुत हो जाता है। मैं सोच रही थी कि यूनीवर्सिटी के छात्रों के सम्मुख संभवतया भाषाई समस्या नहीं होगी, क्यों कि तुर्की जैसे विकसित देश में युवाओं में अंग्रेजी का ज्ञान अवश्य होगा।

जब हम विश्वविद्यालय पहुँचे तो गेट पर छात्र संघ के अध्यक्ष और सांस्कृतिक प्रतिनिधि ने हम लोगों का स्वागत किया था। ये दोनों प्रतिनिधि बेहद चुस्तदुरस्त और स्मार्ट लग रहे थे। 

ये दोनों प्रतिनिधि हमे लेकर सभागार पहुँचें जहाँ हजारों की संख्या में छात्रों ने तालियों के साथ अतौल का स्वागत किया। हम लोगों के पहुँचते तालियों की गड़गड़ाहट शुरु हो गई, इसके उपरान्त सभी छात्र त्वरित गति से उठे और राष्ट्रीय गीत गाने लगे। मैंने ऐसा दृश्य अपने देश में तो कभी नहीं देखा था। रकेल जो स्पेनिश कवि हैं, वे भी इस प्रथा से खासी प्रभावित लग रही थी। मंच पर अतुतुर्क का बड़ा सा चित्र लगा हुआ था। सभागार ठसाठस भरा था। निसन्देह वे सब भाषा के छात्र मात्र नहीं थे, इसका अर्थ तो यही था कि कविता विषय से अलग भी महत्व रखती है।

देश के प्रति इस तरह का जज्बा अनायस ही मन को भावविभोर कर देता है। यहाँ भी हम कार्य मात्र तुर्की भाषा में हो रहा था। अतः अतौल ने ही दुभाषिये का जिम्मा उठाया।उन्होंने अतिथिसत्कार को ध्यान देते हुए, सबसे पहले मुझे और रकेल को मंच पर आमन्त्रित किया। फिर तुर्की में परिचय करवाते हुए कविता पढ़ने को आमन्त्रित किया। अनुवाद अतौल ने पढ़ा।

मैं देख रही थी कि अतौल में एक लोकप्रिय नेता होने के सारे गुण मौजूद हैं। वे कभी भी कागज का सहारा नहीं लेते। मंच पर मजे से चलते हुए कविताएं पढ़ते जाते हैं। उनकी दृष्टि हमेशा दर्शकों पर टिकी रहती है, जिससे कविता संवाद का रूप ले लेती है। मैंने यह भी देखा कि जैसे ही वे एक गजल पढ़ते, किसी अन्य का नाम छात्रों की जबान पर जाता और वे बिना हिचके दूसरी गजल पढ़ जाते। इसी बीच उनसे कुछ सवाल भी हुए, जिसका जवाब उन्होंने गजल से दिया। 
इसके उपरान्त पुनः मुझे और रकेल को मंच पर बुलाया गया और हमसे भी सवाल किए गए। मैंने देखा कि भाषा की अज्ञानता के बावजूद अनेक छात्र और अध्यापक लगातार सवाल करते जा रहे हैं। एक दृष्टिहीन व्यक्ति का सवाल सबसे दिलचस्प था। उसने पूछा कि कविता अब श्रव्य रस क्यों खोती जा रही है। मैंने अतौल की गजलों पर ध्यान दिया था कि वे गायकी से काफी दूर जा कर वैचारिक भावों को प्रधानता दे रही थीं। संभवतया उस व्यक्ति का इसी बात की ओर इशारा था। मैंने उसे प्रतिपक्ष में सवाल किया

आपने मेरी और रकेल की कविताएँ सुनी, हम दोनों ने अनजान भाषाओं कविता पढ़ी थीं, मैंने हिन्दी और रकेल ने स्पेनिश में, आपकों उन कविताओं को सुनकर क्या प्रतीत हुआ?

उस व्यक्ति ने बेहद उम्दा जवाब दिया- "मुझे आप लोगों की कविताएं सुन कर ऐसा लगा कि आप जो कुछ कह रही हैं, उसमें एक पीड़ा का भाव तो है ही, साथ ही कुछ सवाल भी हैं..."

" फिर तो आप कविता को देख सकते हैं, जो सामान्यतया लोगो के बस में नहीं होता। ", मैंने जवाब दिया।

सवालों का सेशन काफी लम्बा था, अब छात्र कुछ सवाल अतोल से करना चाहते थे, जो संभवतया देश की राजनीतिक समस्याओं को लेकर थे। हम लोग नीचे आकर बैठ गए।

मुझे यह तो मालूम था कि अतौल कम्युनिस्ट पार्टी के सक्रिय सदस्य हैं, जो सरकार पर खासी लगाम कसते हैं। पिछली रात के सहभोज में एक बात बार बार उछल कर रही थी कि अधिकतर बुद्धिजीवी जन कभी ना कभी जेल भेजे गए थे। अतौल के बारे में तो मुझे मालूम ही था। लेकिन होटल के मालिक इसत के बारे में भी यह जानकारी मिली कि वे पहले तुर्की भाषा के अध्यापक थे। एक बार उन्होंने में वे कविताएँ पढ़ी, जिन पर सरकार ने प्रतिबन्ध लगा रहा था, तो उन्हे दो साल की जेल हो गई। ऐसे ही  अन्य प्रतिष्ठित कवि अहमत तैली ने भी सरकार की कठोरता को लेकर कुछ बाते कही थीं।

विश्वविद्यालय के कार्यक्रम के उपरान्त अतौल ने हमसे कहा कि हम दोनो होटल लौट जाएँ, जिससे शाम के कविता पाठ के लिए तैयार हो सके, वे वहीं रुक कर छात्रों से संवाद करेंगे। छात्रों की एक बड़ी भीड़ अतौल के हस्ताक्षर लेने के लिए इंतजार कर रही है....

इसी वक्त वह छात्र दौड़ा- दौड़ा आया था, उसने आते ही कहना शुरु किया कि वह हमसे बहुत जरूरी बात करना चाह रहा है। उसकी अंग्रेजी बहुत अच्छी तो नहीं, लेकिन वह अपनी बात प्रस्तुत कर सकता है।

यूनिवर्सिटी से होटल का रास्ता ज्यादा नहीं था, इसलिए वह लगातार बोलने लगा.

"देखिए, मैं आप लोगों के द्वारा दुनिया को सन्देश देना चाहता हूँ. आपको शायद मालूम ही नहीं होगा कि हमारे हजारों छात्र आज जेल में हैं।"

जेल में, मैं आश्चर्य चकित थी। देखने में तुर्क एक बेहद सम्पन्न देश लगता है। इस्लाम धर्म होते हुए भी कट्टरता का नामोंनिशान भी नहीं दिख  रहा था। हालाँकि यूनिवर्सिटी का आडिटोरियम में दो तुर्क साफ साफ दिखाई दीं. एक वह बेहद माडर्न और दूसरा परम्परावादी, लेकिन कट्टरवाद कहीं नहीं महसूस हुआ।

वह युवा अपने छात्रों के सघर्ष के बारे मे लगातार कुछ बताता जा रहा था। वह कह रहा था कि हजारों छात्र जेल में है, बस पुलिस आती है और छात्रों को पकड़ कर जेल में बन्द कर देती है।

"ऐसे कैसे? मैं आश्चर्यचकित थी, यहाँ तो सब कुछ इतना खुला खुला लगता है, लगता ही नहीं कि हम किसी इस्लाम देश में रह रहे हैं।" मैंने कहा

"हाँ, बाहर से सब कुछ अच्छा है, हमारी सरकार बेहद आधुनिक लगती है। पूरी अमेरिकिन संस्कृति की अनुयायी, लेकिन भीतर ही भीतर बड़ा वबण्डर मच रहा है। कट्टर ताकतें सिर उठा रही है। सरकार उन्हें भी खुश रखना चाहती है, और ऐसे नियम बनाती है जो देखने में सामान्य लगते हैं लेकिन उनके भीतर कट्टरवाद है। उदाहरण के लिए पहले यहाँ आठ तक शिक्षा मुफ्त थी, लेकिन अब उसे घटा कर केवल चार तक कर दिया। इसका परिणाम शहरों पर तो नहीं , लेकिन गाँवों में पड़ेगा। ग्रामीण अभी भी शिक्षा पर ज्यादा धन खर्च नहीं करना चाहेंगे। जिससे वे मुफ्त मे चलने वाले मदरसों में अपने बच्चों को भेजने लगेंगे। ये मदरसे सरकारी शह पर कट्टरता को बढ़ावा दे रहे हैं। यह अधिकतर पूर्वी तुर्क में ज्यादा हो रहा है। इसी तरह से सरकार एक अलग तरीके से कट्टरता को बढ़ावा दे रही है। पर्यटन के बहाने पुरातन विचारधारा को तश्तरी में परोसा जा रहा है। यह स्थिति तुर्क के लिए ठीक नहीं है। सूफी संगीत के नाम पर कट्टरता को बढ़ावा दिया जाता है। हम छात्र जानते हैं, और अपनी पीढ़ी को बचाना चाहते हैं, अतुतुर्क का सपना भंग नहीं होने देना चाहते हैं। सरकार हम पर नजर रखती है। और मौका देख कर अलग तरीके से हमारी आवाज बन्द करना चाह रही है।

"यदि हम साधारण सी बात, जैसे कि तकनीकि सुविधा आदि के लिए भी सवाल उठायें जेल में बन्द कर दिए जाते हैं। हमारे ना जाने कितने साथी जेल में बन्द हैं, ना जाने कितने साथी गायब हो गए हैं। हमारा मनोबल कम नहीं हुआ है, लेकिन हम चाहते हैं कि दुनिया हमारी हकीकत समझे। मैं आप लोगों से गुजारिश करने आया हूँ कि आप अपने देशों में अपनी भाषा में तुर्क की हकीकत को सामने लायें। "

इसके उपरान्त वह मुझसे कहने लगा कि हमने सुना है कि भारत में छात्र नक्सलवाद का सहारा ले रहे है। मैंने उसे बताया कि भारत में अधिकतर छात्रों और बुद्धिजीवियों की मानसिकता सम्यवाद से प्रेरित है, और वे हर गलत चीज का पुरजोर विरोध करते हैं, लेकिन नक्सलवाद अलग मुद्दा है।

मुझे सन्देह हुआ कि तुर्क की युवा शक्ति को ज्यादा दबाया जाये तो वह कुछ ऐसा कदम भी उठा सकती है, जो तुर्क की वर्तमान तस्वीर को बदल देगा। वैसे भी मैंने यह तो देखा था कि यहाँ के रईस लोग अपने बच्चों को पढ़ने के लिए अन्य यूरोपीय देशों में भेज रहे हैं।

"देखिए आप केवल सम्पन्न लोगों को देख रहे हैं, सुदूर गाँवों में स्थिति इतनी सरल नहीं है। वहाँ कट्टरता बढ़ती जा रही है। सरकार उनकी मदद भी कर रही है, छिपे तरीके से। धार्मिक मदरसे खोले जा रहे हैं, और सरकारी कालेजों में शिक्षा महंगी होती जा रही है। अतौल जैसे कवि सरकार की नीतियों के विरोध कर रहे हैं। यही कारण है कि वे युवाओं में काफी लोकप्रिय हैं। "- वह छात्र कुछ तल्ख हो उठा था।

"आप लोग देख रहे होंगे कि यूनिवर्सिटी में दो तरह की संस्कृतियाँ साफ -साफ दिखाई दे रही हैं। बेहद माडर्न और थोड़ी परम्परावादी। 

मुझे यद आया कि अतौल ने बताया था कि वे देश के प्रमुख पत्रों में लेख लिखते हैं, जिसमें सरकारी नीतियों की जमकर आलोचना होती है। मैं यह तो नहीं समझ पाई कि आलोचना का मुद्दा क्या होता है। लेकिन उनकी एक बात ने मुझे चकित जरूर किया कि उनके लेखों के कारण कई बार उनपर सरकारी मुकदमा चलाया गया है। एक मजेदार बात यह थी कि उन्होंने अब लेख लिखने की बजाय कविता में सरकारी आलोचना करनी शुरु कर दी है। वे बता रहे थे कि उनके लेख के जवाब में कई सरकार प्रायोजित लेख जाते हैं, लेकिन अब जब वे अपनी बात कविता में कहेंगे तो सरकार को जवाब देने में तकलीफ होगी, और उनकी बात सरकार के पास आसानी से पहुंच जायेगी।

अतौल के कविता अस्त्र के बारे में जान कर मुझे बेहद अच्छा लगा, वे अच्छे कवि हैं, लेकिन कभी भी अपने दायित्वों को बेहतर समझते हैं, कविता उनके लिए व्यक्तिगत शगल नहीं, बल्कि जिन्दगी का शगल है।

मैं उन तुर्की छात्रों की आवाज अपने देश के बुद्धिजीवियों के सम्मुख लाना चाहती हूँ, मैं कविता की शक्ति से पहचान करवाना चाहती हूँ.... संभवतया यही मंत्र था जो मुझे तुर्क की यात्रा में मिला।

कविता साँझ

शाम को कविता पाठन था, जब मैं उतर कर नीचे हाल मे आई तो मैंने देखा कि हाल बेहद खूबसूरत लग रहा है। कविता पाठ आरम्भ होने में वक्त था, इसलिए हमे टेबिल दे दी गई,जहाँ बैठ कर हमे लोगो की कविता पुस्तक में हस्ताक्षर करने थे। यह मेरे लिए बेहद नया अनुभव तो नहीं था, क्यो कि स्त्रुगा , मेडिलिन आदि सभी जगह यह प्रथा है। हम लोगों ने कृत्या में यह प्रथा आरम्भ नहीं की, लेकिन अब लगता है कि ऐसा होना चाहिए। यूरोपीय देशो में कविता को संगत के साथ जोड़ने की प्रथा आज तक जारी है। हार दो कवि की कविता के उपरान्त एक गीत की प्रस्तुति होती थी, जो खास कलाकार द्वारा कविताओं का गीतात्मक रूपान्तर था। कविता पाठ के वक्त शीर हो
तल सभागार ठसाठस भर गया था। यह पहला कवितोत्सव था। इसलिए आयोजकों ने इतनी मात्रा में दर्शकों की आशा नहीं की थी। लोग खड़े भी थे। इसके उपरान्त भोज था, जिसमें श्रोतागण पैसा देकर भोजन का लुफ्त उठा रहे थे। यहाँ भी संख्या अच्छी खासी थी। नाचना गाना ना जाने चलता रहा, जब तक कि हम लोगों की आँखे ही नहीं मुन्दने लगी


खण्डहरों की संस्कृति


दूसरे दिन हमारी यात्रा कुछ जल्दी शुरु होनी वाली थी, क्योकि हमे बुल्दान , पम्मुक्कले के दर्शनीय स्थान और प्राचीन नगरी हैरापोलिस की यात्रा करनी थी। सबसे पहले हमारा पड़ाव उमट थरमल होटल, क्लीनिक एण्ड स्पा नामक जगह पर था, जहां हमे नाश्ता करना था। उमट  होटल, स्पा और प्राकृतिक उपचार के क्षेत्र में बड़ा नाम है। यहा इलाज करने के लिए पर्यटकों की संख्या हमेशा काफी लम्बी रहती है।
हमे सीधे भोजन कक्ष में लेजाया गया, जहाँ एक बहुत लम्बी मेज पर तरह तरह के व्यंजन परोसे गए थे़ कहा गया कि ये असल तुर्क भोजन है। बड़ी बड़ी रोटियाँ , मधुमक्खी के छत्तों के शहद भरे टुकड़े, मक्खन, और शहद के साथ ना जाने कितनी चीजें। यहां के मालिक, जिनका नाम मुझे आज याद नहीं है, बेहद हँसमुख कद्दावर तुर्क थे। वे बता रहे थे कि यह स्थान उन्हे पत्नी के हिस्से के रूप में मिला है़ उन्होंने बड़ा मजेदार किस्सा बयान किया कि तुर्क में भी लड़के और लड़कियों  के  भेदभाव था, लेकिन शरियत के अनुसार जायदाद का बँटवारा लड़के और लड़की में बराबर होना चाहिए। लोगों का मन लड़कों प्रति ज्यादा होता है, इसलिए उन्होंने खेत बेटों को दे दिए लेकिन समन्दरी और पहाड़ी इलाका बेटियों को। जब तुर्क में पर्यटन बढ़ा तो समन्दर और पहाड़ सैलानियों के लिए जन्नत बन गया और बेटियों की जायदाद सोना उगलने लगी।

नाश्ता करते वक्त वे बताने लगे कि पिले जमाने में जब मर्द खेती कर के घर लौटता तो बीबी मख्खन रोटी और छत्ते भरा शहद पेश करती। शहद की ताकत तो मर्द दूसरे दिन ही जान पाता... खाने की मेज पर ठहाके लगते जा रहे थे, और खाना होता जा रहा था।

हम लोग स्पा देखने के लिए बाहर आए तो कुछ स्त्रियाँ जो स्पा करवाने आई थीं, ातौल को पहचान गई, फिर तो अतौल के साथ फोटो सेशन शुरु हो गया। यहाँ हमे उपहार में शहद के छत्ते और स्पा की मिट्टी मिली।

इसके बाद हम  बुल्दान के पुराने नगर गए, जहाँ कपास से धागे बनाने, धागों से कपड़ा बनाने के हथकरघे और कारखाने थे। हमें बताया गया कि प्राचीन काल में यहाँ के मेयर ने जेल को हथकर्घा घर में परिवर्तित कर दिया, जिससे ना केवल कैदियों का जीवन सुधरा बल्कि उनके बुलदान को सूती कपड़ों का बाजार मिला। पुराने बुलदान के मकान करीब सौ साल पुराने हैं और यहां के इन मकानों को इसी रूप में रखने के लिए यूनेस्कों से मदद ली जा रही है। एक जमाने मे यह आबाद नगरी डाकुओं और लुटेरों से आक्रान्त हो कर सूनी हो गई थी, लोग घर छोड़ छोड़ कर भाग गए थे। मुझे यह नगरी अपने देश की किसी भी पुरानी नगरी की तरह लगी। संकरी गलियाँ और सिर से सिर भिड़ाये मकान। मैं जब द्वारिका गई थी तो वहाँ मैंने पुरानी इमारतों  को तोड़ कर नए कई इमारते बनाई जा रही हैं। केरल की प्राचीन कला के नमूने नालकेट्ट, एट्टकेट्ट घर अब खत्म होते जा रहे हैं, गगन चुम्बी इमारते एक अजीब फ्लैट संस्कृति को बढ़ावा दे रही हैं।

इसके उपरान्त हम बाजार गए, कुछ खरीददारी करने के लिए.. निसन्देह यह पसन्दीदा काम है, मैं पैसा देकर खरीददारी तो बहुत कम करती हूं, क्यों कि इतना पैसा होता ही नहीं, लेकिन कैमरे से काफी कुछ कैद कर लेती हूँ।

दुपहर का खाना होटल में पीज्जा था, निसन्देह हमारे पीज्जा से भिन्न, लेकिन कुछ खास भाया नहीं, संभवतया मेरा पेट ही गड़बड़ा गया।

अब हम ही हैरापोलिस की ओर चल पड़े थे। मेरे साथ सबसे बड़ी समस्या यह थी कि भाषा के कारण मुझे कुछ ज्यादा समझ ही नहीं रहा था कि हमारा अगला पड़ाव क्या है? मैंने  इतिहास तो पढ़ा तो मात्र अपने देश का, इसलिए ये बाते दीमाग में दर्ज होने में वक्त लग रहा था। अब मुझे समझ में आया कि क्यो विदेशी पर्यटक भारत में भ्रमण करते हुए भारत के बारे में मोटी सी किताब साथ रखते हैं।

हैरोपोलिस का निर्माण  ईसा से लगभग दो शताब्दी पूर्व हो गया था। कहा जाता है कि इस नगर का नाम टेलेफस (Telephus) की पत्नी Hiera हैरा के सम्मान में हैरोपोलिस ( Hierapolis ) पड़ा था। यह एक पवित्र नगरी मानी जाती है क्योंकि यहा अनेक मन्दिर हैं। नगर का नक्शा बेहद सूझ समझ के साथ तैयार किया गया लगता है। विशाल मुख्यद्वार आज भी ५तिहास की गाथा कहते हैं। भग्नावेशों में ग्रीक देवी देवताओं की मूर्तियाँ दिखाई पड़ती हैं। यहाँ का अपोलन ( Appollon नामक मन्दिर प्राचीनतम मन्दिरों में से एक माना जाता हैसबसे बड़ा आकर्षण है यहाँ का ग्रीक शैली का थियेटर। यह करीब 300 फीट गहरा है, और बैठने की करीब पचास पंक्तियाँ है। नाट्य मंच, और पार्श्व गृह , सब कुछ बेहद कायदे से बनाया गगया। हम सब यहाँ पर काफी वक्त बैठते हैं, अतौल हमे कविता सुनाते हैं। साँझ के झुरमुटे में अतीत से कलाकार निकल मानों नाट्य शुरु कर देते हैं। इसके उपरान्त हम विशाल हमाम के भग्नावेश देखते हैं कहा जाता है कि ये एक वक्त सबसे खूबसूरत हमाम रहा होगा। एक मान्यता यह भी है कि यहाँ पर स्थित प्राकृति जल प्रवाह के कारण इस नगरी का निर्माण हुआ होगा, जहाँ राज्यशाही लोग स्वास्थ्य लाभ के लिए जाया करते होंगे। विशाल नाट्यगृह का उद्देश्य भी यही रहा होगा।

जगह जगह पर खड़े खम्बे, भग्न इमारते कुछ ना कुछ इतिहास अपने सीने में समेटे हैं. हम लगातार चल रहे हैं, इस नगरी के भीतर गाड़ी मना है,मेरी चलने की आदत ना के बराबर हैऊपर से मेरे वेरिकोस वाले पैर कदमों को इतना भारी बना देते हैं कि मैं बार बार पिछड़ जाती हूँ, लेकिन कोई ना कोई मुझे सहारा देने ही पहुँचता है।
अब हम पम्मुक्कले थरमल ट्रेवरटिन्स ( Pamukkale Travertines) के पास आते हैं। मैं अपनी क्षमता जानती हूँ, इसलिए भीतर चट्टान तक ना जाकर एक सोत के करीब चुचाप बैठ जाती हूँ, सारी जगह फिसलन से भरी है,, लेकिन हमारे साथ के सब लोग भीतरी सोते तक जाते हैं......
जल के केल्शियम ने जल प्रवास सम आकृतियां बना दी है, जो अपने आप में बेहद खूबसूरत हैं। इस केल्शियम के झरने वाली पहाड़ी से सूर्यास्त देखना अपने में खूबसूरत अहसास है....

हम चुपचाप लौटने लगते हैं, सब लोग आगे बढ़ गए हैं, मैं पिछड़ती जा रही हूँ..... रास्ते में कब्रगाह पड़ता है, साथी बताते हैं कि यहाँ ब्रें भी कई तरह की है। सामान्य आदमी यानी सैनिक की साधारण कब्रे और नायकों के लिए कमरे नुमा बन्द कबरें। रकेल एक कब्र कोठरी में बैठ कर मापती है और कहती है कि उस वक्त आदमी की ऊँचाई कम रही होगी...

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