रात का भोज एक बेहद खुबसूरत होटल में तय किया गया है। काफी लोग इक्कट्ठे हो जाते हैं, मेरे पेट ने अपना दरवाजा बन्द कर दिया है, मैं चुपचाप बैठी सबकों खाते देख रही हूँ, तभी ज्ञात होता है कि मेजबान ने तीसरे दिन के भ्रमण का कार्यक्रम रद्द कर दिया है। अतौल इससे बेहद नाराज हो गए,,, यदि तुर्क कि तरह शुरु करों तो तुर्क की तरह अन्त करना चाहिए... अतौल को बहुत जल्द ही गुस्सा आ जाता है। इसात मुस्कुराते हुए अतौल को समझाने की कोशिश करते हैं। दरअसल , इसात का बड़ाबेटा जो छुट्टियों में स्वीट्जरलैण्ड से आया है , दूसरे दिन वापिस लौटने वाला है? पूरा परिवार उसे विदा करने जाना चाहता था.. हम लोगों ने अतौल को समझाया कि अच्छा ही है, हम लोग थोड़ा आराम कर लेंगे और डेनजिलि सिटी देख लेंगे...
अगले दिन हमारी यात्रा देर से आरम्भ हुइ, क्यों कि मेरी तबियत रात को काफी बिगड़ गई थी। रात को उल्टिया शुरु हो गई थी, शायद इतना गरिष्ठ भोजन पच नहीं पा रहा था।
लेकिन दुपहर के उपरान्त हम सब Ephesus की वाइनरी गए, जो यह जगह हमारे स्थान से काफी दूर थी, लम्बी बस यात्रा से मन खुश हो गया। इससे पहले में स्त्रुगा और गेलगेलिया में वाइनिरियाँ देखीं थीं, इसलिए कुछ विशेष उत्साह नहीं था। लेकिन यहाँ पर वाइन का इतिहास ही सामने आ गया।
Ephesus का इतिहास ईसा से २००० वर्ष पहले का माना जाता है
Ephesus नाम का सम्बन्ध देवी Kyble माना जाता है। यहाँ के इतिहास में
जब अर्तेमिस के सीने से टपका तो
एक अगूर ने छत को चूमा
एफसेस की
शराब को छूते हुए
फरहाद गुलशन
Ephesus में शराब के कला पक्ष का विकास में वाइन को चखने की कला से लेकर वाइन रखने की बोतले तक आती है। मेनेजर हमे वाइन चखने का तरीका बयान कर रहे थे, कि किस तरह वाइन होंठो पर टिका कर हौले साँस खिंच वाइन के बुलबुलों को आक्सीजन मिलने देना चाहिए, तभी वाइन का असली स्वाद मालूम पड़ता है। उनके यहां ना जाने कितने साल पुरानी वाइन सुरक्षित रखी थी़। तुर्कियों के हाँ में वाइन का गिलास हो और सामने किबाब, तो बस वे शायरी को छोड़े नहीं पाते। अतौल और अहमत तैलि दोनो को ना जाने कितने नग्मे मुँह जबानी याद थे। बस समां जम गया... ठंड की खुनक बढ़ती जा रही थी, मैं तबियत के रहते कुछ खा पी नहीं पाई थी, इसलिए शरीर कमजोर हो गया होगा... ठण्ड कुछ ज्यादा ही लग रही थी। चलते वक्त हमे वाइन की बोतले भेंट में मिली, जिन पर हम कवियों की तस्वीर और कविता लगी थी।
वापिसी की यात्रा खूबसूरत नहीं होती है, कल हम मे से कुछ लोग चले जाएँगे, मैं और नील रहेंगे , जो सिटी की यात्रा के लिए निकलेंगे...
मैं अपने कमरे में ही इंतजार करती हुई
चित्रों को फेसबुक में संजोती रही, दुपहर को मुझे पता चला कि घूमने की लिस्ट में बस में ही बची हूँ। मैं आराम से बाहर निकल कर चित्र लेने लगी। करीब एक बजे हम इसाक के मित्र परिवार के पास लेजाया गया़ ये दोनों पति पत्नी केवल तुर्की भाषा ही बोलते थे। लेकिन उन्होंने अपने यहाँ अंग्रेजी की एक अध्यापिका को दुभाषिया के रूप में बुला रख था। हम लोग पैदल ही बाजार की ओं चलने लगे। तुर्क के बाजार पुरानी दिल्ली की गलियों की याद दिलाते हैं, संकरी गलियां, जिनमे कार निकलने की कोउ गुंजाइश नहीं। मैं दूकानों में रखे सामान को देख रही थी, कई पंसारियों की दूकानों में मुझे हिदिस्तानी मेहन्दी देखने को मिली। पीतल के बर्तन तो बेहद खूबसूरत होते हैं, खास तौर से काफी बनाने का हैं गिलास जैसा बर्तन, जिसमे केवल एक कप चाय बन सकती थी।
रास्ते में शादी की पौशाक, और जेवरात की दूकाने भी खूब दिखाई दी़ तुर्की महिलाएँ बेहद खूबसूरत होती हैं, और अपने को खुब सजा कर रखती है। मुझे यहाँ शादी की दो तरह की पौशाके दिखाई दे रही थी, एक दो इसाई विवाहों में पहनने वाले सफेद गाउन , सफेद लेसदार पर्दे के साथ़ दुसरा लाल रंग की ड्रेस जो सिर पर टोपी और नकाब के साथ शोकेस में सजी थी। मेरी अनुवादिका ने बताया कि शहरी महिलाएं सफेद गाउन का प्रयोग करती हैं, लेकिन गाँव की महिलाएँ पुरानी अरबी पौशाकों की ओर झुक रही हैं। विकसित तुर्क धीमे धीमे परम्परा के नाम पर कट्टरता की ओर बढ़ रहा है।
रास्ते में कई मस्जदे दिखाई दी, जो गहरे नीले रंग की ञिनारों से सजी हुई थी। हमारा गन्तव्य डेन्जिली की पुरात किबाब वाली दूकान था, जहाँ पारम्परिक किबाब मिलते हैं।
किबाबचि छोटी सी दूकान थी। जब किबाब आये तो मैं चकित रह गई, क्यों कि एक बड़े से लम्बी ट्रे जैंसे बर्तन में माँस के छिले से टुकड़े प्यास और हरि मिर्चियों से सजे हुए रखे थे। यानी किबाब माँस की टिक्की नहीं, बल्कि नफासत से पकाई माँस की छीलन सी है, जो मुँह में रखते ही घुल जाती है।
मजे की बात यह है कि ये बिना नमक के पकाये जाते हैं, और खाने वाला अपनी रुचि के अनुसार नमक छिड़क लेता है। यहाँ अरबी संस्कृति के अनुरूप एक ही बर्तन में खाना परोसा गया था। खाते वक्त ने एक तुर्की कहावत सुनाई , जिसका अर्थ था कि कबाब- हौले छुओ, हौले से छुओ, हौले से छुओ औरत और किबाब को...
तुर्कियों में अरबियों के समान ही मजाक करने का अच्छा माद्दा होता है।
इसके बाद हम अर्ट गैलरी गए, जहाँ Celal Gunaydin नामक कलाकार के शिष्य की कलाकृतियों का प्रदर्शन था। मैंने देखा की तुर्की कला माडर्न आर्ट से ज्यादा प्रभावित नहीं, अधिकतर कलाकृतियाँ वाटर पेन्ट से बनाई गईं फूलों और स्त्रियों के चित्र थे। Celal Gunaydin ने हमें अपने स्टूडियों में आमन्त्रित किया। उनके स्टूडियों में नग्न स्त्रियों के चित्र बहुतायत से थे, लेकिन मैंने उनकी कलाकारा पत्नी को देखा, वे सिर पर परदा लि हुई थी। एक कलाकार अपनी पत्नी से पर्दा क्यो करवाता है, मुझे कुछ समझ नहीं आया। मैंने पूछा कि तुर्क में
कला की स्थिति क्या है़अभी भारत में माडर्न आर्ट के नाम पर कचरा कूड़ा बिकते हुए
मैंने देखा था। वे कहने लगे कि तुर्क में पेन्टिंग के क्षेत्र ज्यादा माड्रन नहीं हो पाया है, इसलिए यहाँ इस क्षेत्र में अन्य देशों के समान धन नहीं है।
मैं वहाँ से बाहर निकली थी, कि मेरा पैर फुटपाथ से सरक गया और मैं दाहिनी कनपटी के बल धड़ाम से गिर पड़ी, तुरन्त दूकानों से लोग निकल आये, मेरे लिए कुर्सी और बर्फ आया, पानी पिलाया गया। मैं उन्हे ठीक से शुक्रिया भी नहिं कह पाई... चोट को सहलाती अपने मेजबान के साथ बाहर निकल पड़ी।
अब मेरी घूमने की हिम्मत पस्त हो गई थी, मैं होटल में आकर सो गई, दूसरे दिन सुबह छह बजे हमे निकलना जो था।
लौटने की यात्रा अवसाद भर ही देती है... कुछ छूटता जाता है, कुछ साथ चला आता है।
By Rati Saxena
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