Sunday, December 4, 2016

कविता के देश मे ( मेडीलिन पोइट्री फेस्टीवल , कोलम्बिया).







by Rati Saxena on Wednesday, 27 July 2011 at 09:46 ·



कविता के देश मे ( मेडीलिन पोइट्री फेस्टीवल , कोलम्बिया)


हालांकि मुझे आज तक नहीं मालूम कि मेडिलिन जैसे मशहूर फेस्टीवाल के लिए मेरा नाम उन तक कैसे पहुँचा, क्यों कि सरकारी तन्त्र से तो पहुंचा नहीं होगा, लेकिन आज जब उस फेस्टीवल के लिये उत्सुक कवियों को देखती हूँ तो लगता है कि मेरे जैसे लोगों के साथ भी अच्छा हो जाता है , अधिकतर लोगों को साहित्य अकादमी आदि से टिकिट मिल जाते हैं, लेकिन मैं भारत की स्थिति जानती हूँ, इसलिए कल्पना भी नहीं की। कभी कदार..टिकिट आ गए थे, हालाँकि उन्हे खरीदने में भी बड़ी हिम्मत जुटानी पड़ी थी। इतने महँगे टिकिट देख कर होश फाख्ता ही हो गए थे, लेकिन बेटी ने कहा, यदि आप सोचती है कि ये यात्रा सार्थक है तो मौका मत खोइये। लेकिन अब सबसे बड़ी समस्या थी यात्रा की लम्बाई अंगद की पूँछ से कम नहीं थी। पूरे दुनिया का चक्कर लगा कर मेडिलिन जाना हो पा रहा था। मेडिलिन, जो साउथ अमेरिका के राज्य कोलम्बिया का शहर है, मेडिलिन जो कुछ वर्ष पहले तक  ड्रग माफिया के लिए इतना कुख्यात था कि अमेरिका वासियों को उस देश में ना जाने की सलाह दी गई थी। मेडीलिन जो दुनिया का सबसे खतरनाक देश माना जाता रहा है। उस देश में विश्व का सबसे मशहूर कवितोंत्सव, मन मे उत्सुकता रही। इस बार विश्व के फेस्टीवल डायरेक्टरों को विशेष रूप से आमन्त्रित किया गया था, एक विशेष योजना के तहत। आमन्त्रण मिलना भी सौभाग्य था, क्यों कि कृत्या मे भाग लेने वाले सभी कवियों की सलाह रही है कि एक बार तो जीवन में मेडिलिन पोइट्री फेस्टीवल में भाग लेना चाहिए, दुनिया के किसी देश में कविता के प्रति इतना जुनून नहीं देखा गया होगा।
 

बस उसी जुनून से रुबरू होने में चल पड़ी थी। लेकिन ये यात्रा कम कठिन नहीं, त्रिवेन्द्रम से मुम्बई, मुम्बई से अर्मस्टडम, अर्मस्टडम से करसावा द्वीप और वहाँ सात आठ घण्टे के रुकने के बाद मेडिलिन, वह भी रात के १२ बजे। मैंने घण्टे गिनने की कोशिश की, लेकिन जब जिन्दगी का ही हिसाब नहीं रख पाती तो समय का कैसे रख पाती... वैसे भी गिनती उलटी जा रही थी। मेडिलिन भारत से कम से कम ग्यारह घण्टे पीछे है, और यह पीछे चलने की यात्रा भी आसान नहीं। इस वक्त मैंने एक काम किया जो अक्सर ऐसे मौके पर करती हूँ, जब मैं समय का हिसाब नहीं
रख पाती तो समय को उतार कर रख देती हूँ, बस मैंने अपनी घड़ी उतार कर पर्स के भीतर रख दी। यही यात्रा की मेरी सबसे बड़ी तैयारी थी।

त्रिवेन्द्रम से मुम्बई तो अपना घर था, लेकिन मुम्बई में इमीग्रेशन आदि का झंझट कम नहीं था, लेकिन मुझे हर कहीं सहायता मिल ही जाती है। अकेली यात्राएँ अधिकतर अकेली नहीं होतीं। देश से बाहर निकलने से पहले एक दिन तो पूरा हो गया। अर्मस्टडम तक की यात्रा भी ठीक ठाक ही थी। यात्राओं के दौरान मुझे लगता है कि मैं कहानी लिखना जानती तो कितना अच्छा होता, क्यों कि यात्राओं में अनजान लोग ना जाने कितनी जिन्दगी साँझा कर लेते हैं। सहयात्री ने पहले अपनी नीन्द पूरी कर ली, फिर अपनी रामकथा अविराम सुना डाली, कैसे शादी हुई, कैसे बच्चे, कैसे तलाक भी, फिर अपने मोबाइल पर चित्रकथा भी दिखा डाली, अब तो मेरे पास उनकी जिन्दगी सचित्र थे, बस परेशानी यही थी कि मैं दो घण्टे भी नहीं सो पाई थी।

अर्मस्टडम में जो सुरक्षा चौकसी देखी तो महसूस हुआ कि मुम्बई की सुरक्षा कितनी ढीली ढाली है, लेकिन मुम्बई में सुरक्षा एजेंन्सी में मानवता झलकती है, लेकिन तो यहाँ पत्थरी चेहरा लिए , ऊँचे ऊँचे कुत्तों को थामे पुलिस वेशभूषा के लोग इस तरह से घूरते हैं कि खुद पर से विश्वास उठ जाता है, और अनजाना सा भय रीढ़ की हड्डी पर से दौड़ जाता है।

अर्मस्टडम में मैं दाँत साफ कर मुँह धोना चाहती थी, लेकिन इन यात्राओं मे अपने
सामान को ढो कर बाथरूम के भीतर रकना मुझे रुचता नहीं था, तभी वह युवक दिखगया जो मुम्बई में चेकिंग के वक्त मेरे साथ खड़ा था, बेहद चुप्पा सा। मैं उस गेट को खोज रही थी जहाँ के लिए मुझे करसावा के लिए फ्लाइट लेनी थी। वह पास आकर बोला..मैडम,  क्न्फ्यूस्ड हो रही हैं क्या, मैंने कहा,,, हाँ वह तो है, फ्रेश भी होना चाहती हूँ। उस अनजाने ने कहा , तो जाइए, पहले मैं आपका सामान देखता हूँ, फिर आप मेरा... अनजानी जगहों पर अनजाने लोग बड़े अपने से लगते हैं.. मैं चुपचाप सामान छोड़ कर वाशरूम चली गई। वापिस आई तो वह भी कुछ वक्त के लिए गया ओर बोला कि यह आपका गेट है, आपको यहीं से फ्लाइट मिलेगी, मैं अब अपने गेट की ओर चलता हूँ। मैं चुपचाप बैठी थी कि कुछ अनाउंसमेन्ट सुना, निसन्देह वह डच भाषा में था, उसे सुनते ही लोग जल्दी से दूसरी ओर भागने लगे। मैं चौकन्नी तो थी, एक सुरक्षा कर्मचारी से पूछा तो उसने कहा कि गेट चेन्ज होगया है। मैं घबरा गई, और भीड़ का पीछा कर चलने की कोशिश करने लगी... इतनी लम्बी यात्रा के बाद पाँव सुन्न हो गए थे, चलना भारी लग रहा था... किसी तरह अगले गेट पहुंची तो फिर वही सुरक्षा की कवायत... इस बार मेरे साथ एक कालेज स्टूडेन्ट थी। जो अर्मस्टडम में फिजियोथेरोपी की पढ़ाई कर रही थी, और अंग्रेजी जानती थी। उससे पता चला की करसावा द्वीप मालद्वीप की तरह यात्रियों के कारण जीवित है। यूरोप के करीब होने के कारण अधिकतर यूरोपीय यहाँ के सागरी तटों पर सर्दियों से बचने के लिए पहुँचते हैं। मैंने उससे उसके खाने आदि के बारे में पूछा तो कहने लगी कि उसकी माँ सूरीनाम की है, इसलिए वे रोटी , सब्जी नाती है। मुझे आश्चर्य हुआ। मैँने पूछा कि क्या माँ भारतीय हैं?लेकिन उसे ज्यादा जानकारी नहीं थी। पिता अफ्रीकन मूल के थे, बाबा चीनी मूल के और माँ सूरीनाम की। मैंने उसे सूरीनाम की कथा सुनाई कि किस तरह भारतीय भी वहाँ कुली के रूप में पहुँचे थे।

करसावा में पहुँचते ही भाषा का झंझट और कड़ा हो गया। अंग्रेजी जानने वाले अधिकारी एयरोड्रम पर ना के बराबर थे। मैंने ट्रान्जिस्ट की ओर जाने की कोशिश की बात की तो वहाँ खड़ी जबरदस्त तो जान्दरुस्त अफ्रीकन मूल की महिला ने मुझसे कहा.....नो नो, .... इमीग्रेशन....

 
मैंने कुछ लोगों से बात करने की कोशिश की, लेकिन हर कोई झटक कर चला गया। अन्त में एक यूरोपियन महिला ने कहा कि इमीग्रेशन की लाइन में खड़े हो जाओ, शायद आफिसर अन्ग्रेजी जानता हो। मूझे लगा कि हमारे देश में इससे ज्यादा भला व्यवहार होता है, लेकिन आतंकवाद से जितने भयभीत यूरोपीय हैं, उतने भारतीय नहीं।

इमीग्रेशन काउन्टर पर पहुँच कर मैंने आफीसर को अपनी समस्या बताई तो उसने मुझे बैठने को कहा और ट्रांजिस्ट से किसी महिला को बुलाया, वह मुझ से कहने लगी कि आप केलम की फ्लाइट की बात कर रही हो, लेकिन यह तो कोपा की है। दरअसल भारत से केलम ही सारी फ्लाइट डील करता है, दक्षिण अमेरिका की फ्लाइट के बारे में कुछ जानकारी तो थी नहीं... खैर इस बार उनके व्यवहार में मानवीयता थी... शायद भाषा भी एक कारण हो सकती है। ट्रांजिस्ट तक मुझे लेजाकर उसने ट्रांजिस्ट फीस भरने को कहा और एक थोड़ी बहुत अंग्रेजी समझने वाले आदमी के हवाले कर गई
। इस व्यक्ति ने मुझे सुरक्षा चक्र से पार करवाया और एयरोड्रम का नक्शा समझा दिया। मुझे सात घण्टे गुजारने थे। एक घण्टा तो इस गफलत में गुजर गया, अब बाकी वक्त मैं कभी काउच पर बैठती, या घूमती रहती। मुझे लगा कि अंग्रेजी के अलाव थोड़ी बहुत स्पेनिश, डच आदि भी आये तो कितना अच्छा हो। समय किसी तरह बीतता जा रहा था। मैं फ्लाइट को लेकर चौकन्नी थी, भूखी भी थी, क्यों कि 250 रुपये की काफी और 200 रुपये की आधा लीटर की पानी की बोतल पर गुजारा किया था।

मेडीलिन के लिए रवाना होने पर चेन की साँस ली, लगा कि अब तो मंजिल करीब है। जहाज में बैठे यात्रियों का व्यवहार भी यूरोपीय यात्रियों से भिन्न था, ये लोग भारतीयों की तरह ही जोर जोर से बाते कर रहे थे, और हँसी मजाक करते सीटें बदल रहे थे। थकावट से मेरी आँके बन्द होने लगी, और जब खुली तो जहाज में तालियाँ बज रही थीं। पूछने पर पता चला की मेडिलिन आ गया है और यात्री खुशी जाहिर कर रहे हैं। मूझे उनका तालियाँ बजाना बेहदद अच्छा लगा, काश हम भी अपने देश के लिए ये भावना रखते। इमीग्रेशन से निकलते निकलते एक घण्टा और बीत गया था और बाहर निकलने निकलते ही एक व्यक्ति मेरे नाम का फ्लैग लिए खड़ा दिखा....

यहाँ फिर भाषा की समस्या, किसी तरह से पता चला कि कुछ और लोगों का इंतजार किया जा रहा है। करीब एक बजे हम एयरपोर्ट से रवाना हुए, मैं चौकन्नी रास्ते को देख रही थी, बेहद खुबसूरत सरसराती सड़के, सुन्दर वादी , बेहद सुहाना मौसम.. रास्ते में चेक पोस्ट आई तो मैं दंग रह गई कि वहाँ दो लड़कियाँ और एक जवान तैनात थे, रात के दो बजे, चेक पोस्ट पर लड़की, दिल्ली होती तो गायब हो गई होतीं... क्या यह शहर वस्तब में खतरनाक है.....


 



कविता के देश में , मेडिलिन कवितोत्सव, कोलम्बिया....भाग‍ २.


by Rati Saxena on Thursday, 28 July 2011 at 03:25 ·







भाग‍ २



यूँ तो मैं मुम्बई से  एक जुलाई को निकली और मेडिलिन एक जुलाई को ही पहुँच गई, लेकिन यह गणित जिन्दगी के गणित की तरह पेचीदा था। क्योंकि मुझे घर से निकले करीब पचास घण्टे बीत गए थे। लेकिन मेडिलिन में रात के दो बजे भी अपने कमरे में खाना और जूस देखा तो मन भर आया। इतने घण्टो के बाद बिस्तरा देखा तो मन खुश हो गया। मेडिलिन का मौसम बेहद हसीन था। ना गर्मी , ना ठण्ड, कमरे में पंखा तक नहीं, मेज पर एक टेबल फेन रखा था, लेकिन उसकी जरूरत कभी नहीं पड़ी।

बिस्तरा तो बढ़िया था, पर नीन्द का अता पता नहीं, शायद इतने वक्त में मैं लग कर सोना ही भूल गई थी। भाषा की समस्या को मेजबान ने बड़ी कुशलता से सहज करने की कोशिश की थी। एक पैकेत थमा दिया गया था, जिसमें अनुवादक , पाठक आदि के नाम के साथ पूरे दस दिनों का ब्यौरा था। ना जाने कैसे मैं पेकेट में रखे खत को देख नहीं पाई, और यह समझ ही नहीं पाई कि प्रेस रीलीज सुबह दस बजे आरम्भ हो गया। हालाँकि होटल की लाबी में कई युवा अनुवादक चहलकदमी कर रहे थे, जो स्पेनिश ना जानने वाले कवियों को देखते ही सहायता के लिए लपक पड़ते। मै दो सिम कार्ड मोबाइल साथ ले गई थी, लेकिन एक भी काम नहीं कर रहा था। लेपटाप झे करने की कोशिश की तो देखा कि ना तो यूरोपियन प्लग पाइंट है, ना ही एशियन। मुझे बताया गया था कि इन्टरनेट सर्विस  मुफ्त है, इसलिए उसका प्रयोग करना चाहती थी। होटल के किसी कर्मचारी को अंग्रेजी नहीं आती थी, तभी एक युवा लड़का सहायता के लिए आया। उसने अपना नाम बताया " जर्मन" ,और मुझे बाजार ले गया। जर्मन काजोल का प्रशंसक था, और हिन्दी बालीवुड फिल्मों दिवाना। उसकी पत्नी आमीर खा की दीवनी। होटल शहर के केन्द्र में स्थित था, अतः दूकाने दूर नहीं थीं। हम कुछ दूर तक गए, जहाँ हार्डवेयर और बिजली के सामान की दूकाने थीं, लेकिन मुझे यह देख कर आश्चर्य हुआ कि अधिकतर दूकानो पर लोहे की शटर थी जो ग्राहक और दूकानदार को अलग करती थी़ दूसरे शब्दों में दूकानदार कटहरे में बैठ कर दूकानदारी करते थे। संभवतः लूटपाट से बचने का उपाय था। मतलब की यहाँ के लोग बुरे समय की स्मृति से उबर नहीं पाएं हैं। सड़के साफ, लेकिन किनारे में भिखमंगों की तरह सोये हुए लोग थे, जिनसे लोग बच रहे थे. संभवतया माफिये के लोग रहे होंगे जो जीर्णावस्था में पहुँच गए। जर्मन ने बताया कि उनकी वर्तमान सरकार बेहद कठोर है माफिया के प्रति, इसलिए ही मेडिलिन बुरे वक्त से बाहर निकल पाया है, हालाँकि अभी लोगों के मन में भय है कि कब ये गैंग पुनः सक्रिय हो जाएं।


होटल में लौट कर लेपटाप चालू हो गया, लेकिन प्रेस रिलीज में भाग नहीं ले पाई। दुपहर के दो बजे हमें कार्यक्रम के शुभारंभ में भाग लेने के लिए जाना था। कवितोंत्सव का शुभारंभ एक खुले आडीटोरियम में था, जहाँ हजारों की संख्या में दर्शक बैठे थे, यहां स्त्रुगा की तरह टीम टाम तो नहीं, लेकिन भव्यता थी। मंच पर सभी सौ से ऊपर कवि , कलाकार और डायरेक्टर और टीम के कुछ लोग। बेहद सादा सा शुभारंभ, आरंम्भ में अफ्रीकन लोक गायकों द्वारा प्रस्तुति हुई। डायरेक्टर फेस्टीवल ने संक्षिप्त भाषण पढ़ा, और फिर चुने हुए कवियों का कविता पाठ आरम्भ हुआ। मैं आश्चर्य चकित थी, ना किसी नेता का भाषण, ना ही कोई अन्य तड़क भड़क, जनता और कविता के बीच कोई बाधा नहीं। संभवतया यहीं कार्यक्रम की भव्यता थी। मैं जनता के भावभंगिमा देख कर आश्चर्य चकित थी। वे हर कविता को ध्यान से सुन रहे थे, दाद दे रहे थे। ऐसा नहीं कि कविताएँ मंचीय थीं, अधिकतर तो उनके पास अनुवाद के जरिये ही पहुँच पा रही थीं। लेकिन फिर भी कविता का मन उनके पास था। मैं कविता के स्तर को देख कर अभिभूत थी, लेकिन श्रोताओं के चेहरे मुझे यह विश्वास करने ही नहीं दे रहे थे कि ये असली दुनिया का हिस्सा हैं।

कविता संभवतया उनकी स्मृति पर छपे दागों पर फाहे का काम करती है... पता नहीं.... मैंने यह जुनून कहीं नहीं देखा... और अब देखा तो भूल नहीं पाऊँगी।

रात को नाच गाने और पीने का कार्यक्रम था, मैंने इस वक्त को सोने के लिए उपयुक्त समझा .... लेकिन रात के दो बजे शोरशराबे से नीन्द खुली तो भाग कर हाल में पहुँची... नाचगाना अपनेजुनून पर था। इरान की रीरा अब्बासी जोर दार ठुमके लगा रही थीं। कारागार में जरा सी भी सेंध मन के पंख खोल देती है...

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दूसरे दिन एशिया के कवियों का पाठ म्यूजियम पार्क में था। हम लोग दस बजे तैयार होकर निकल पड़े थे। हर कवि को एक एक पाठक दिया गया था, जो कवि के साथ स्पेनिश में कविता का अनुवाद पढ़ता था। और एक अनुवादक, जो कि तत्काल अनुवाद कर दर्शकों और कवियों में सूत्र स्थापित करता था। एशिया के हम पाँच कवि थे, जापान, बर्मा, इरान,अफगानिस्तान और भारत से मैं। म्यूजियम पर पहुँच कर हमने देखा कि मंच पर एक टीम थी, जो जोकराना अन्दाज से कवि सम्मेलन की जानकारी दे रही थी। कुछ लोग थे, लेकिन मैदान खाली ही था। मेरे चेहरे पर प्रश्न चिह्न देख कर अनुवादक डेनियल के  कहा.. मेडिलिन के लोग आखिरी मौके पर ही पहुँचते हैं, जैसे ही कार्यक्रम शुरु होगा, भीड़ आ जाएगी, और वही हुआ। हमसे करीब २० कवितायें अनुवाद के लिए मांगी गईं थी, और हर कार्यक्रम में करीब बीस मिनिट का वक्त दिया गया था, जिसमें हमे अनुवादक के साथ कविता पढ़नी थी। मैंने हर पाठ के पाँच छोटी छोटी कविताएँ रख ली थी। कविता पाठ में दर्शकों की प्रतिक्रिया बेहद उत्साहवर्धक थी। मजा तो तब आया, जब हम लोगों के मंच से उतरते ही हस्ताक्षर लेने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी। मैंने अपनी पूरी जिन्दगी में कवियों के साथ ऐसा वर्ताब नहीं देखा.. सच मुझे लगा कि मेरी यात्रा सार्थक हो गई....

साधो, रहना बस इसी देस... मेडिलिन ,, तुम्हारे जख्म अभी हरे हैं,,, संभवतया यही तुम्हे कविता की समझ देता है, काश तुम्हारे जख्म भरे, लेकिना कविता का जुनून खत्म ना हो.....





क्रमशः

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