उगते
सूरज के ऐन नीचे
तीन
परिन्दे
डैने
पसार छूट चले हैं
खुले
आसमान में
खुलते,
सिकुड़ते
फिर
खुल जाने को फड़फड़ाते
समझ
लिया डैनों ने दिशाओं का विस्तार
मुड़
गए पंजे बिछुड़ी दिशा की ओर
पंखों
ने समझ लिया
सफर
का पड़ाव
लक्ष्य
की ओर
मुड़
गया समूचा आसमान
तभी
टपक पड़ा नन्हा सा पर
जड़
में खूनी रंगत लिए
सफर
की सफलता का
क्या
कोई ओर सबूत चाहिए?
2002
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