रेशम में बुने सपने
इतना आरामदायक कमरा, और मेरी आँखों में नीन्द ही नहीं... ना वक्त का भान था. ना ही वक्त कट पा रहा था, एक दम सन्नाटा, थोड़ी बहुत सोई तो फिर नीन्द खुल गई, अब मैंने नहा धोकर तैयार होने की ठान ली, मेरी कलाई में बंधी घड़ी भारतीय वक्त दिखा रही थी। नहा धोकर नीचे आई तो भोजन कक्ष में सन्नाटा पसरा था। एक दो बैरे थे, लेकिन वे अंग्रेजी जानते नही, इसलिए कुछ कह नहीं पाए। मैं वापिस अपने कमरे में आ गई। नई जगह जाकर पढ़ना लिखना मुझसे सम्भव नहीं हो पाता है। फिर मैंने अभी नेट एक्टिव भी नहीं किया था। मेरा फोन यहाँ काम नहीं कर रहा था।
वक्त जैसे खिंचता जा रहा था, इस बार नीचे गई तो बढ़िया नाश्ता लगा था, लेकिन कवियों में से कोई दिखाई नहीं दिया। मैने नाश्ता किया और कैमरा लेकर होटल में घूमने लगी। होटल में तुर्क के नामी कवियों की मूर्तियाँ लगी हुई थीं। एक छोटी सा पुस्तकालय था, जिसमें कविता की पुस्तके शीर की आकृति में बने शेल्फो में सजी थी। इसके उपरान्त सभागार था, जिसमें तुर्क के ही नहीं विश्व के बड़े बड़े कवियों के चित्र और उनकी कविताएँ जब बड़े कवियों का नाम हो तो टैगोर को उपस्थिति तो लाजमी है। क्यों कि मुझे इस कवितोंत्सव में अमन्त्रित किया गया था, इसलिए मेरी कविताए और चित्र भी वहाँ उपस्थित था, निसन्देह मुझे खुशी होती, लेकिन थोड़ा अटपटा जरूर लगा कि मेरे साथ यानीस रित्से का चित्र था, मुझे अपने बौनेपर का भान शिद्दत से होने लगा।
दुपहर के ग्यारह बजे तक हम सब तैयार थे. वेन में बैठ कर चलने को। हमारे साथ अंग्रेजी में बोलने वाला गाइड था, जो खास तौर हम चार कवियों के लिए था। डेन्जिली प्राचीन अन्तोलिया का एक हिस्सा है जो तीन चीजों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। मुर्गा, सूती कपड़े और खूबसूरत औरतें। हमारि बस सबसे पहले एक पहाड़ी पर चढ़ी, यह खुबसूरत पहारी बेतरतीब हरियाली से ढ़ँकी हुई थी। नए नाम और नए उच्चारण दीमाग में आसानी से नहीं चढ़ते, इसलिए मुझे उस पहाड़ी का नाम तो याद नहीं है, लेकिन हमें बताया गया कि यहाँ से निकलने वाली नदी में बेहद उम्दा खनिज होते हैं। हमे बताया गया कि एक बार इस पहाड़ी सोते से खनिज युक्त मिट्टी उयाने के लिए कोई कम्पनी आगे आई, लेकिन यहां कि जनता ने उसके विरुद्ध मुहीम छेड़ दी। हजारों लोग इस सोते को घेर कर खड़े हो गए और कई दिन तक अपना घेरा नहीं तोड़ा। अन्ततः उस नदी का खनिज यहाँ के प्रवासी पक्षियों के लिए बच गए। हम सबने उतर कर उस सोते के सामने फोटौ खिंचवाई और जनता के विश्वास को प्रणाम किया। मुझे केरल की खारी झीलें याद आ गईं, जहाँ से दिन दहाड़े रेत निकाली जाती है, और यह रेत इन खाड़ियों के चारों तरफ के मकानों , पेड़ों को नष्ट करते रहते हैं।
इसके उपरान्त हमे कारपेट विलेज जाना था। बाहर से बेहद साधारण सी इमारत के भीतर कदम रखते ही खूबसूरत कालीन बनाती महिलाओं दिखाई दीं। बेहद तल्लीनता से कालीन बुनती वे स्त्रियाँ बिल्कुल कश्मीरी स्त्रियों सी खुबसूरत लग रही थीं। हमे बताया गया कि एक रेशम के कालीन बनाने के लिए दो स्त्रिया कम से कम तीन वर्ष काम करती हैं । दो स्त्रियाँ इसलिए कि एक स्त्री को तीन घण्टे से ज्यादा काम नहीं करने दिया जाता है। अगले कक्ष में रेशम के कीड़े बनाने की प्रक्रिया दिखाई गई थी।
रेशम के कीड़ों को देख कर रेशम पहनने की इच्छा मर जाती है। लाखों कीड़े बस इसलिए जान खो बैठे कि एक इंसान उनके तन से कुछ वक्त के लिए अपना तन ढँक ले....यहाँ एक नई बात मालूम पड़ी कि रेशम के कीड़ों की खोल को स्त्रियों के मेकअप का सामान जैसे लिपिस्टिक आदि बनाने के लिए भेज दिया जाता है।
अगले कक्ष में रेशम के धागों को रंगने का काम होता था। ये सारे रंग प्राकृतिक होते हैं। कालीन विलेज का संचालन केवल एक परिवार के लोग करते हैं, यह परिवार बहुत बड़ा है, हर सदस्य अपने अपने हिस्से का काम कर लेता है, और कारखाना आसानी से चल जाता है।
खाना बेहद लजीज था, शायद उनके घर में बना था। मुझे बिल्कुल भूख नहीं थी, लेकिन इतना लजीज खाना हो तो कौन नहीं खाएगा।
भोजन के बाद हमे डेन्जिली सिटी घूमने जाना था, लेकिन अतौल ने कार्यक्रम बदल दिया। उन्हे यूनीवर्सिटी में आमन्त्रित किया गया था, तो उन्होंने मुझसे और रकेल से उनके साथ यूनीवर्सिटी चलने को कहा। निसन्देह हम सहर्ष तैयार थे।
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