Tuesday, January 3, 2017

Villa Walabreta - Andechs Abbey

अपने जर्मनी प्रवास के बारे में सोचने बैठती हूँ तो पूरा वक्त चलचित्र सा आँखों के सामने गुजर जाता है। एक खुशनुमा चित्र, ...

जब मैं वालब्रेटा में  अपने अपार्टमेन्ट में पहुँची तो लगा कि फिल्म की रील धीरे ‍- धीरे खुल रही है, लेकिन बहुत स्पष्ट नहीं है़ । ऐसी स्थित  मेरे साथ हर यात्रा में होती है,  हर बार नये पन्ने खुलते हैं,लेकिन किताब के खुलने में वक्त लगता है। तभी युवा शोरलेट्टे मेरे कमरे में आईं, और बोली कि, कल हम लोग - Andechs Abbey  जाने वाले हैं, यदि मैं चाहूं तो साथ चल सकती हूँ, उस वक्त मैं इतनी थकी थी कि मुंह से आवाज तक नहीं निकल रही थी, लेकिन मैंने धन्यवाद देते हुए कहा कि मैं सोचती हूँ कि मैं चल सकूंगी, बस आज अच्छी तरह से आराम करना पड़ेगा।
आप मुझे वक्त बता दे, जब मुझे तैयार होना है, उन्होंने कहा कि हम लोग 8  बजे तक विला से निकल जायेंगे, साथ में जापानी कलाकार हिसाको भी है। मैंने अगले दिन मिलने का वायदा किया और सोचने लगी कि किस तरह से अपने को तैयार करना है।
मेरा अपार्टमेन्ट मेरे लिये ड्रीम हाउस था। झील और बालकनी की तरफ खुलता बेडरूम, और लम्बा सा स्टडी, जिसके एक तरफ लम्बी सी बालकनी थी। बालकनी के दरवाजे से कमरे के भीतर तक आती हुई  धूप,कुनकुनी सी सर्दी, अपने बचपन की रजवाड़ी सर्दी का अहसास दिलवाती हुई, , मैंने धूप के सामने अपनी रजाई फैला ली और उस पर सो गई. ना जाने कितना अर्सा बीत गया था धूप में सोए हुए, इसलिये सोना जारी रहा।

देर शाम को उठी तो जरा बहुत कमरा लगाया , सामान अलमारियों मे जमाया, क्यों कि चार पाँच दिन बाद चीन की यात्रा थी, इसलिए वो कपड़े अलग किये जो साथ लेजाने थे, क्यों कि इस बार मैं छोटा वाला सूटकेस ही साथ लेजाने का विचार कर चुकी थी। एनरेटे नें सुबह शापिंग करवा ही दी थी, तो रसोई में जाकर खाना बनाना ही रह गया था। जिस तरह के बर्तन थे, उनमें भारतीय खाना बनाना मूर्खता ही होती तो ब्रेड के साथ फल सब्जिया काट कर आराम से भोजन किया और फिर सो गई, लेकिन अब तक अगले दिन  Andechs Abbey जाने की ताकत आ गई थी। यूरोप के बारे में मुझे एक बात की जानकारी तो थी कि यहाँ मौसम मिनिट- मिनिट में बदलता है, लेकिन कल का मौसम क्या होगा, Andechs Abbey कैसी जगह है, वहाँ किस तरह के कपड़ों की जरूरत होगी, समझ नहीं पा रही थी।

अपने साथ केवल 23 किलों सामान ला सकती थी, जिनमें कपड़ों के साथ किताबें भी थीं, तो गरम कपड़ों के नाम पर एक कोट और एक स्वेटर ही साथ था, कपड़े के जूते भी साथ नहीं रख पाई थी, इसलिये सोच विचार में तो थी, लेकिन फिर सोचा , जो होगा देखा जायेगा, दूसरे दिन के लिए कुछ कपड़े निकाल कर फिर सो गई। दूसरे दिन तड़के ही नीन्द खुल गई, सुबह आठ बजे तक नीचे इकट्ठे होने की बात थी, तो मुझे नहाने धोने और तैयार होने में वक्त नहीं लगा।
शोरलेट्टे  जर्मन मूल की है लेकिन आर्मस्ट्रंग की वासी  कलाकार है, जो बेहद अनूठी कलाकारिता के कारण मुझे पसन्द आईं। वे अपने मंगेतर के साथ कार में आई थीं, और मंगेतर दो दिनों में वापिस लौटने वाले थे, तो शायद कार के सही उपयोग के लिए उन्होंने मुझे और अन्य जापानी कलाकार को भी अपनी यात्रा में शामिल कर लिया था।

हम लोग वक्त पर रवाना हो गये, शोरलेट्टे और उसके मंगेतर , और जापान की हिसाको।
Andechs Abbey  एक तीर्थयात्रा स्थल ही माना जा सकता है जो स्तानबर्ग नामक झील के करीब पहाड़ी पर स्थित है। लेकिन मजे की बात यह कि यह स्थल अपनी बीयर के भी लोकप्रिय है। यह बीयर चर्च में बनाई जाती है, लोग कहते हैं कि लोग यहाँ बीयर और जर्मनी का लोकप्रिय खाना भुना पोर्क बेहद पसन्द किया जाता है।

मेरे लिए  सब कुछ अनजाना सा था, कोई भी राह समझ में नहीं आ रही था। हम लोग एक पहाड़ी के नीचे पहुँचे, और वहाँ से पैदल चलना शुरु किया। यूरोप में भी तीर्थ स्थानों में पैदल चल कर पहुँचने का रिवाज है, अनेक तीर्थस्थल पहाड़ियों पर स्थित हैं।
संभवतया  प्रकृति के करीब पहुंचना देव के करीब पहुंचने का पर्याय ही तो है।
हम लोग खरामा - खरामा चढ़ाई चढ़ने लगे, बीच बीच में रुकते, पेड़ पत्रियों को परखते, घाटी से झांकते, और फिर चल देते। यही अन्तर होता है कलाकारों के साथ की गई यात्रा और सामान्य यात्रियों में। हम चारों लोग चार क्षेत्र के थे, शोरलेटे के मंगेतर मूलतया फोटोग्राफरथे, तो उनकी निगाह फोटोजनिक दृश्यों कों खोजती। हिसाकों का सम्बन्ध सुगनधों से था,  वे हर खुशबू को पहचानने की कोशिश करतीं। शोरलेटे का विषय चित्रकारिता और धातु कला थी, और आकृति ही उनके लिये प्रधान थी, इसलिये, वे हर आकृति को देखती, मैं उन तीनों की दृष्टि का लाभ अपने विषय में खोज रही थी।

काफी देर तक हम आनन्द लेते चलते रहे, लेकिन बाद में सीढ़िया आ गई, मेरे साथ सबसे बड़ी समस्या सीढ़ियों की होती है, मैं सीढ़ी चढ़ते ही बुरी तरह हाँफने लगती हूँ, जिम जाना भी इस परेशानी को खत्म नहीं कर पाया है।
निसन्देह ऊपर तक पहुँचते पहुँचते मेरी सांस धौंकनी की तरह चल रही थी। लेकिन हम अब तक चर्च पहुंच चुके थे।

ये चर्च संभवतया रोमन काल का है , और साधारण बनावट का है। इसकी छत से म्यूनिख शहर दिख सकता है, लेकिन मेरी और सीढ़ियां चढ़ने की हिम्मत ही नहीं हुई। मैं खिड़की पर बैठ कर वातावरण का अनुभव लेने लगी। अगर इतिहास और विश्वास को दरकिनार कर दूं तो यह चर्च बेहद साधारण लगा, खास तौर से इसलिए कि मैं मैं रोम, वेनिस अदि के बेहतरीन चर्चों को देख चुकी थी।  फिर मुझे लगा कि यह साधारण इमारत ही इसकी खासियत है, यह निसन्देह प्रार्थना केन्द्र रहा होगा, जहाँ भव्यता या चमक से प्रार्थना को अधिक महत्व दिया जाता रहा होगा। बाद में कुछ लोगों ने यह भी बताया कि लोग यहाँ की बेहतरीन बीयर से आकर्षित होकर आते हैं, यहाँ सात तरह की बीयर मिलती हैं। बात सच भी लगी, क्यों कि जब हम चर्च के करीब भोजन स्थल में पहुँचे तो देखा कि जगह ठसाठस भरी थी। लोग बीयर और पोर्क का आनन्द उठा रहे थे, भुना पोर्क जिसकी आकृति एक साबुत मुर्गे सी तो होगी, कई तश्तरियों में दिखाई दे रहा था।

हम लोगों अपने अपने खाने की लाइन में लग गए , मैंने खास बावेरियन चिकन का एक दुकड़ा और ब्रेड ली। सबने अपनी अपनी पसन्द का खाना लिया। खाने का आनन्द यहीं पर दिखाई दिया। मैंने देखा कि लोग आपस में खूब घुलते -मिलते हैं, और खूब गप्पबाजी भी करते हैं। ऐसा लगा कि यहाँ हर कोई हर किसी को जानता है,

हंसते खिलखिलाते लोगों के साथ बैठ कर खाना खाना अच्छा अनुभव होता है ।जब शाम होने लगी तो हम लौटने को तैयार हुए,,,,,
लौटते वक्त हम लोग बीयर लाकर में गए, जहाँ बीयर के बड़े बड़े ढोल की आकृति के बर्तन रखे थे, वहा पर बकायदा लाकर थे, जिसमें लोग अपने बीयर पीने के जार के साथ अपनी बीयर भी रख सकते हैं। उस लम्बे से हाल में बीयर को सुरक्षित रखने वाले जो बर्तन थे, वे पुरातन काल के ज्यादा लग रहे थे। निसन्देह यह चर्च ऐसी जगह बन गया है जहाँ लोग हर सप्ताह आकर बीयर आदि का आनन्द उठा लें... विश्वास में आनन्द भी शामिल हो तो क्या बात है।
सीढ़ियों कपर  चढ़ने पर मेरी सांस फूलने की स्थिति को देख शोरलेट्टे चिन्तित थीं, उन्होने पूछा कि मैं चाहूं तो मैं यही इंतजार कर सकती हूँ, और वे लोग कार लेक र मुझे लेने आ जायेंगे, लेकिन मैंने मना कर दिया, क्यों कि मैं जानती थी कि उतरना मुश्किल नहीं होता है।
लौटते वक्त मैं और शोरलोट्टे साथ थे, हम लोग राजनीतिक स्थितियों की बात करने लगे। मैंने कहा कि युद्ध के बाद जर्मनों के साथ जो कुछ हुआ, वह भी दुखद था, क्यों कि समस्या किसी एक राजनेता ने उत्पन्न की थी।

तो शोरलोट्टे ने जवाब दिया.. "जब जनता किसी गलत नेता को चुनती है तो वह उसके पाप में बराबर की भागीदार बन जाती है,,,,"

"निसन्देह, लेकिन जनता भीड़तन्त्र के साथ चलती है",,,,,

"फिर भी गलती तो है ही", शोरलेट्टे का जवाब था।

गलती का पता जब तक लगता है, अकसर देर हो जाती है, मैं कहना चाहती थी, लेकिन चुप रही।

जर्मनी के हिसाब से बेहतरीन मौसम था, और मेरे लिए सुन्दर दिन

क्रमशंः


10.8.1016