उनसे मुलाकात
भी एक अजब इत्तेफाक था, मैंने बस स्टेंड पर स्ट्रीट फेस्टीवल का नोटिस देखा, जो था
तो जर्मन में, लेकिन कुछ अलग सा लगा, तो मैंने एक मैंने इन्टरनेट से जानने का विचार किया, और पता चला कि म्यूनिख में
एक खास तरह का फेस्टीवल होता है, जिसे स्ट्रीट फेस्टीवल होता है काफी कुछ हमारे पुराने
जमाने के मेले ठेले सा। Odeonplatza के करीब सड़क को रोक कर Ludwig I !- street life
festival मनाया जा रहा था। वहाँ तरह तरह के खेल तमाशे , नाच गाना, खाना पीना होता है।
मैं पता लगा कर वहाँ पहुँच गई , ओर सच कहूँ मजा भी, शहर और गाँव दोनों मिल गया था।
कहीं पर ग्रामीण वातावरण तो कहीं पर ठेठ पश्चिमी। मैं घूम रही थी, कि देखा कि एक टैण्ट
में एक वृद्ध महिला मिट्टी गूंध रही थीं। मैं रुक कर देखने लगी तो उन्होंने मुस्कुरा
कर मेरी तरफ देखा और कहने लगीं कि बच्चों ने मिट्टी से खेला तो यह जरा कड़ी हो गई, ठीक
कर रही हूँ। फिर मुस्कुरा कर पूछने लगीं, तुम कुछ बनाना चाहोगी क्या?
मैं उनकी मुस्कान
से इतनी आकर्षित हुई कि जाकर कर मेज पर बैठ गई़ हालांकि मुझे पाटरी का काम कुछ नहीं
आता। मिट्टी बेहद चिकनी , खूबसूरत थी। वे कहने लगी कि ये मेरे बगीचे की है, जिस तरह
जापानी लोग मिट्टी को सालों सालों तैयार करते हैं
वैसे ही मेरे बगीचे की मिट्टी सदियों पुरानी लगती है,
मुझे समझ नहीं
आ रहा कि क्या बनाऊ, मुझे याद आया कि मेरे बचपन में शादी ब्याह में आटे के शिव पार्वती
और गणेश बनाये जाते हैं, मुझे उस काम में बहुत मजा आता था, तो मैंने गणेश बनाना शुरु
कर दिया, उसी अनघड़ तरीके से जिस तरीके से आटे के बनाये जाते थे। मिट्टी इतनी मुलायम
थी कि मुझे लगा कि मेरे मन की सारी मलिनता मिट्टी की तरह मृदुल हो गई।
उन महिला का
नाम Hennette Zilling था। उन्होंने मुझे अपना पता दिया और कहा कि महिने के अन्त में
मेरे घर मे गाने का कार्यक्रम होने वाला है, चाहो तो आ सकती हो। मैंने पता ले लिया,
लेकिन मैं जानती थी कि मुझे रास्ता समझ नहीं आयेगा, क्यों कि बस ट्राम आदि सभी जगह
मात्र जर्मन में लिखा जाता है़।
खैर फिर उनका
कलात्मकता से बना इन्विटीशन मिला तो सोचा कि कोशिश करने में क्या बुराई है, लेकिन पता
चला कि कलाकार की मां की तबियत खराब हो गई तो कार्यक्रम स्थगित हो गया़ लेकिन हेनेत
ने मुझे मेल भेजा कि यदि तुम चाहो तो हम नेशनल थियेटर के करीब मिल सकते हैं , तुम १९
नम्बर की ट्राम लेकिन आ जाओ। यह आसान था। जब मेरी ट्राम थियेटर बस स्टाप पर पहुंची
तो वे सामने खड़ी थी़ । आज मैंने ध्यान दिया, वे सतर्क और सीधी खड़ी थी, चेहरे पर भर
झुर्रियाँ लेकिन बेहद खूबसूरत मुस्कान, लेकिन चलने में बच्चो सी चपलता। खूबसूरत गोरा
रंग, नीली आँखें, कुछ छोटा कद, पतली छरहरी। बेहद जर्मन व्यक्तित्व। उन्होंने मुझ से
पूछा कि क्या देखना चाहती हो? नया म्यूनिख या पुराना? मैंने कहा कि मुझे पुराने में
ज्यादा रुचि है। हम शहर के दिल में ही थे, और हर सड़क और हर गली कुछ कहानी कहती है।
यह इलाका Graggenau ,कहलाता है़ वे मुझे गलियों में ले गई और हर गली और सड़क से जुड़ी
कहानिया बताने लगीं, जैसे कि यह इमारत पहली
रेजिडेन्सी थी,इस इमारत का इतना हिस्सा
टूटा लेकिन इतना नहीं, वे बताने लगी कि पुरानी इमारतों मे कुछ नई खिड़कियाँ है कुछ पुरानी,,,
और वे उनका अन्तर बताने लगी। वे मुझे बहुत पुरानी बेकरी में ले गई, जहाँ रोटी की आकृति
की सूखी रोटिया सी थी, उन्होंने बताया कि ये पारम्परिक ब्रेड हैं, जिसमें ईस्ट नहीं
होता है। उन्होंने तरह तरह की रोटियां खरीदीं।
मैं उनकी जिन्दगी
के माध्यम से इतिहास को भी पढ़ना चाहती थी, मैंने पूछा कि आप कब से म्यूनिख में हैं,
वे बताने लगी कि मैं दस साल की उम्र में म्यूनिख आ गई थी, उन्होंने कहा कि उनका जन्म
कस्बें मे हुआ जिसका नाम था,
Bayreuth , यह इलाका बावेरियन राज्या
के उत्तर में था king Friedrich II
ofPreussen का एक खूबसूरत Residenz है, और
कस्बे के बीचोंबीच एक औपरा हाउस भी था। एक
बगीचा था करीब सौ साल पुराना, जिसका नाम था Eremitage. जिसे
King Ludwig II of Bavaria ने बनवाया था।
उनके पिता डाक्टर थे। युद्ध के बाद उनके पिता की
अचानक मृत्यु हो गई तो मां ने म्यूनिख आने का सोचा, क्यों कि उनके माता पिता म्यूनिख
में थे़। वे १९५३ में म्यूनिख आ गई थी, उस वक्त उनकी उम्र दस साल की थी, और जब वे दो
साल की थी, पिता की मृत्यु हो गई थी। निसन्देह उनकी माँ ने काफी वक्त तक सम्भलने की
कोशिश की होगी। मैं युद्ध की बात करने में हिचकिचा रही थी,क्यों कि जर्मन हिटलर के
बारे में बात करना पसन्द नहीं करते। फिर भी मैंने पूछा कि क्या आपके मन में युद्ध की
कुछ यादें हैं, तो वे बताने लगी कि मुझे बम गिरने की याद है, जब बम गिरते थे, तब हम
सुरंगों में चले जाते थे, लेकिन तब हम एक शब्द भी नहीं बोलते थे, क्यों कि डर था कि
कहीं कोई सुन तो नहीं रहा है।
उनके इस वाक्य
ने ही मुझे आम जनता में तानाशह के भय की जानकारी दे दी।
बाद में हेनेत
की माँ म्यूनिख में आकर स्कूल में अग्रेजी पढ़ाने लगी ।
मैंने पूछा
कि काफी वक्त तक जर्मनी विभिन्न देशों के अधीन रहा, वह वक्त कैसा था, तो वे कहने लगी
कि यह भावना ही कि कोई आप पर नजर रखे हैं, आसान नहीं होती है। बावेरियन इलाके में अमेरिकन
सरकार का हस्तक्षेप था, तो हमें वह सब करना था, जो वे चाहते थे।
मैंने पूछा
कि कैसे जर्मनों ने यह चमत्कार कर लिया कि वे यूरोप की सबसे बेहतर अर्थव्यवस्था वाला
देश बन गया। वे कहने लगी, ये रास्ता बहुत लम्बा था, बहुत धीरे धीरे हुआ , लेकिन बड़ी
मेहनत से हुआ़ हम सभी इसी में जुड़े।
हेनेत बड़ी खुबसूरत
रही होंगी, तो मैंने पूछा कि क्या आपकी शादी हुई, वे कहने लगी कि नहीं, पता नहीं क्यों,पर
शादी हुई नहीं। मैंने पढ़ा था कि युद्ध का लोगों
पर बहुत तरह से प्रभाव पड़ा़ ज्यादातर पुरुष मारे गए थे, अनेक बच्चे लावारिश थे, अनेक
महिलाओं के रेप चाइल्ड थे। मैंने देखा कि अनेक
वृद्ध महिलाओं के पति अन्य यूरोपियन देश के
हैं।
हेनेत के कोई
भाई बहन भी नहीं थे, तो निसन्देह माँ के बाद वे नितान्त अकेली हो गई होंगी, हालांकि
उनके पास अपने दादा दादी की अच्छी स्मृतियाँ रहीं है।
हेनेत के सा्थ
समस्या यह थी कि वे बीच बीच में जर्मन में बोलने लगती थीं, लेकिन मैं उन्हें बिल्कुल
नहीं टोक रही थी।
वे नेशनल थियेटर,
म्यूजियम आदि के बारे में जानकारी देती रही थी कि यहां पुराने जमाने में कलाकारों को
रखा जाता था, या यहाँ मिनिस्टर रहते थे, आदि आदि, मेरे लिये इमारतों में भेद करना जरा
कठिन ही था, इतनी इमारते, इतनी मूर्तियां और चौराहे कि सब कुछ गड्मड्ड हो रहा था।
अन्त में उन्होंने
पूछा कि क्या मैं और घूमना चाहती हूँ या उनके घर चलना, मैंने कहा कि घर चलना चाहती
हूं।
हेनेत का घर
कलाकार का घर था, खूबसूरत सा घर और बेहद छोटा सा बगीचा। यह शहर के बीच ही था, और महत्वपूर्ण
इलाका लग रहा था। हेनेत ने बताया कि उन्होंने यह मकान बेच दिया है, बस इतना है कि उनकी
मृत्यु के बाद ही खरीददार इस पर कब्जा कर सकता है़ हेनेत के चेहरे में ना मौत का डर
था, ना भविष्य का। घर में बेहद खूबसूरत कलाकृतियां रखी थी, जो निसन्देह जगह जगह से
खरीदी गई थीं, उन्होंने बताया कि उन्हे कुछ सामसग्री दादा दादी से मिलीं, कुछ पिता
की एक मात्र बहन से, घर की गैलरी में सून्दर मूर्तियाँ थीं जिसे उनकी आण्टी ने खरीदा था़ पूरा घर बेहद कलात्मकता
से सजाया गया था। जगह जगह पर छोटी छोटी चीजे, कहीं कहीं पर जानी बूझी बेतरतीबी, हम
लोगों ने साथ चाय पी, और खाखरे जैसी रोटी भी खाई, फिर उन्होंने अपने बगीचे मे उगे सेव
की पाई निकाली, जो काफी स्वादिष्ट बनीं थी।
वे अपने खानपान
के बारे में बताने लगी कि किस तरह वे एक बारतीय डाक्टर के निर्देशों का अनुपालन कर
रही हैं, उबली मैथी, काली मिर्च अदरक आदी के सा् अश्वगंधा का सेवन,
मैंने पूछा
नहीं कि उनका डाक्टर एलोपैथिक है या आयुर्वेदिक, क्यों कि भारत में तो इस तरह के नुस्खे
बहुत पापुलर हो रहे हैं, वे मुझ से अश्वगंधा के बारे में पूछने लगी तो मैंने कहा कि
जहाँ तक मुझे ज्ञात है यह हिमालय में शिलाओं पर चिपका एक द्रव हैं, लेकिन जिस तरह से
इसकी बिक्री हो रही है, समझ नहीं आता कि ये प्राकृतिक तत्व टनों की मात्रा में कैसे
प्राप्त हो सकता है, क्यों कि यह कोई फसल तो है नहीं कि उगाया जा सके।
हाँ मैथी दाना,
काली मिर्च, सौंफ आदि के टोटके बहुत पुराने हैं, उन पर सन्देह नहीं कर सकते।
अन्त में वे
अपने स्टूडियों ले गई, जो कि अण्डर ग्राउण्ड हैं, मुझे आश्चर्य हुआ कि ७६ की उम्र में
वे इतने नवीन प्रयोग एक सा् कैसे कर सकती है एक कागज का लैम्पशेड जैसा तैयार हो रहा
था, जो उनके करीबियों के पत्रों से बना था। कुछ टाइपराइटर से टाइप किए गये थे, तो कुछ
हाथ से लिखे, सबकों जोड़ कर वे एक मेमन्टो तैयार कर रही थीं, दूसरी ओर तारो की एक टोकरी
अधबुनी रखी थी, वे शिकायती लहजे में कह रही थी मुझे इस गर्मी में पुरी कर लेना था,
क्यो कि सर्दियंो में उंगलिया एंठ जायेगी कि बुनाई नहीं हो पायेगी, लेकिन यह बी अधूरी
रह गई़ इस तरह उनके कई प्रोजेक्ट अधूरे पड़े थे, कुछ मिट्टी के बर्तन ज्यादा जल गये
थे, यानी उम्र ने कला पर प्रभाव डालना शुरु कर दिया था, लेकिन वे भविष्य के बारे में
जरा भी चिन्तित नहीं थीं.
मुझे याद आया
कि मेरे अपने देश में मुझे लेकर सभी कहते हैं, अकेले क्यों रहती हो, अकेले क्यों जाती
आती हो, अब क्या करोगी आदि, आदि,, हेनेत के आगे तो कोई भी सगा नहीं है, फिर भी वे अपने
कर्म में जुटी हैं, बिना यह चिन्ता कए कि आगे क्या होगा।
जब हम लौटने
को हुए तो कहने लगी कि रति, मैं बताउ कि मैं साइकिल से आई थी नेशनल थियेटर तक, और साइकिल
वहीं रखी है, तो मैं तुम्हे वहा छोड़ दूंगी और साइकिल लेकर आ जाऊंगी, मैंने जरमन महिलाओं
को साइकिल चलाते देखा है, लेकिन कोई ७६ की उम्र में साइकिल चला॓एगा, इसकी कल्पना तक
नहीं की,
मैं लौट आई,
लेकिन मैं नहीं सोच सकती कि इससे ज्यादा शान्त और सुन्दर शाम कुछ हो सकती है,,,,
मुझे समझ में
आने लगा कि कैसे इस देश ने अपने को सम्भाला, और कैसे ये आगे बढ़ा।