Friday, November 25, 2016

"अलविदा एडिनबरा! जीते जागते म्यूजियम!



यात्रा ३.एडिनबर्ग ,स्काटलैण्ड

"अलविदा एडिनबरा! जीते जागते म्यूजियम!
युद्ध, रोमांच, द्वैष, प्रेम, विछोह के लावे पर खड़े एडिनबरा,

तुम खूबसूरत हो, ब्यूटिपार्लर में सजे बालों की तरह। लेकिन हवा के साथ लहराना तुम्हे अभी तक आया नहीं। लगता है कि तुम्हारी धड़कनों को बहना नहीं आया!
 
तुम इठला रहे हो राजकीय मुकुट में मोती की आब में! वह मोती, जिसका नाता लहरों में खिलखिलाती सीपी से कब का टूट गया। लेकिन तुम अपनी आब को कब तक अपना कह पाओगे......"

एडिनबरा के हवाई अड्डे में मेरी कलम नन्ही सी डायरी पर यह उकेरती जा रही है, एडिनबरा को प्रत्यक्ष से स्मृति में बदलने में अब ज्यादा वक्त बाकी नही, मेरी लौटने की यात्रा की शुरुआत हो चुकी है।

अभी सोमवार 25 मार्च को ही तो स्काटलैण्ड के लिये रवाना हुई थी, तमाम जद्दोजहद के साथ, निकलने से एक दिन पहले तबियत नासाज थी। एसिडिटी और गजब की थकावट,,,,

लेकिन मन में ठान लिया था कि कैसे भी हो जाना है,,,,,, मत चूक चौहान, एक बार मौका गया तो....

वही लम्बा रूट, घर से बस स्टैण्ड तक, बस स्टैण्ड से ब्रिस्टल बस अड्डे फिर वहाँ से ब्रिस्टल हवाई अड्डे और फिर एडिनबरा हवाई अड्डे से एडिनबरा सिटि सेन्टर एयर पोर्ट बस से फिर सिटी सेन्टर से  अरामुडा गैस्ट हाउस.... मेरे पास सारे पते लिखे हुए थे, और ना जाने क्यों मन में विश्वास था कि कुछ अनहोनी नहीं होगी...

टैक्सी ड्राइवर के सही जगह उतारा, सामान ज्यादा नहीं था, जो कुछ भारी था, यानी कि कोट , स्वेटर आदि, वह तन पर था हाथ में हवाई नियमों के अनुरूप एक छोटी सा सूटकेस, और कुछ नहीं.... कम सामान होना कितना सुविधाजनक होता है, मुझे महसूस हो रहा  था।

आरमुडा गेस्ट हाउस में एक वृद्ध महिला स्वागत करती हैं, मुझे देखते ही कहती हैं कि आपका इंतजार ही कर रही थी। फिर दूसरी मंजिल में कमरा दिखाने ले चलती हैं, ना कुछ लिखा पढ़ी ना कुछ पूछताछ, बेटी ने नेट से रिजर्वेशन करवा दिया था, और फोन पर बात कर ली थी, उनके लिये इतना काफी था।

यूरोपीय होटलों में भी सामान उठाने के  सहायक नहीं होते तो यह गैस्ट हाउस है, अपना बैग लेकर में उनके साथ चली तो चक्करदार सीढ़ी से चढ़ने में वक्त लगा।

कमरा छोटा सा था, लेकिन आरामदायक बिस्तरा, अलमारी हैंगर, पढ़ने की मेज , साइड मेज , चाय की केटली, चाय चीनी, दुध के नन्हें नन्हें रेपर, टेलिविजन  और साइड में छोटा सा वाशबेसिन.... यह जगह तो स्वर्ग है मेरे लिये, मैंने सोचा...
गेस्टहाउस मालकिन ने मुझे नाश्ते की लिस्ट दिखा कर पसन्द का नाश्ता सलेक्ट करने को कहा, मैं एसिडिटी से त्रस्त थी तो बस दूध और फ्लैक्स वाले नाश्ते पर टिक कर देती हूँ।
वे गुड नाइट कह कर चली जाती हैं.

मैं सुबह चार बजे की उठी थी और लगातार चल रही थी, सिवाय हवाई जहाज में तीन घण्टे बैठने के,  कपड़े बदल कर बिस्तर पर लेटी और एडिनबरा के पेम्फलेट देखने लगी। मेरी आदत है कि मैं अपने पैरों को रास्ता खोजने को छोड़ देती हूँ बहुत खास प्लानिंग पर विश्वास नहीं करती, जबकि मेरी बेटी ने मेनेजमेन्ट किया है तो वह हर बात की प्लानिंग पर विश्वास करती है। उसने मुझे तमाम निर्देश लिख कर दिये हैं, लेकिन मैं उन पर ज्यादा गौर नहीं कर रही थी। भटकने का अपना मजा होता है।
 
दूसरे दिन सुबह उठ कर स्नान आदि करके मैं तैयार हो नीचे नाश्ते के लिये आती हूँ तो देखती हूँ कि मेजे सजी हैं, कप, प्लेट आदि से, हालांकि कोई और दिखाई नहीं दे रहा है। अलमारी में फ्लेक्स के छोटे छोटे डिब्बे हैं, वे महिला मुझे एक डिब्बा लेने को कहती है,और जग में दूध रख देती हैं, साथ ही चार टोस्ट सैंक ले आती  है। वे मेरे पास बैठ कर पूछने हैं कि मेरा क्या प्लान है और क्या क्या देखना चाहूँगी....
खिड़की के बाहर हल्की सी धूप दिखाई देती है तो वे कहती है,,,आज दिन बेहतर है तुम लकी हो,,,,,मैं बस मुस्कुरा देती हूँ।

वे मूझे बताती हैं कि मुझे चाबी से दरवाजा खोल खुद आना है और भीतर से अच्छी तरह से बन्द फेर देना है, सब आटोमेटिक है, दरवाजे को ताले की जरूरत नहीं...

जब मैं बाहर निकलती हूँ तो हबा  का झोंका सा आता है और उसके साथ रुई के नन्हें नन्हे टुकड़े भी, मुझे लगता है कि शायद कुछ गन्दगी है जो उड़ कर आ रही है सड़क बेहद  ठण्डी हैं, सूरज का नामोनिशान नहीं...दो स्वेटर, लांग कोट, दस्ताने टोपी..... बाप रे इतने कपड़े तो कभी पहने नहीं फिर भी ठण्ड मिट नहीं रही....
 
मुझे मालूम है कि यूरोपीय देशों में सिटि सेन्टर होता है जो शहर की धड़कन होती है, पर्यटकों को सारी जानकारी यहीं मिलती है।

मैं सिटि सैन्टर कहाँ है पूछती हूई चल पढ़ती हूँ, हालाँकि मेरे हाथ में नक्शा है, लेकिन नक्शे देखकर चलना मुझे अभी तक नहीं आया, पूछ कर चलना  सबसे सहज प्रवत्ति लगती है

गैस्टहाउस मालकिन ने मुझे बताया था कि सिटी सैन्टर जाने के लिये 15 मिनिट लगेंगे, लेकिन मैं चालीस मिनिट से चल रही हूँ, इस वक्त चलना अच्छा लग रहा है, मैं देख रही हूँ कि यह शहर सीधी सड़को से बनाया गया है, बीच में काटने वाली गलियाँ भी । हर गली का कोई ना कोई नाम है, जैसे कि ब्रेड स्ट्रीट आदि, मुझे पुराना जयपुर याद आया जिसे चौसर के आकार में बनाया गया था और गलियों के नाम थे,ठठेरों की गली, रंगरेजों की गली, आदि....
चालीस मिनिट होने पर मैं घबरा गई कि कहीं कुछ भटक तो नहीं गई़ सामने एक टूर आपरेटर का आफिस दिखाई दिया, वहाँ से मुझे सही रास्ते का पता मिला,,,, रास्ता गलत नहीं, पर कुछ और चलना था

अन्ततः मैं पर्यटक सहायता केन्द्र पहुँच जाती हूँ और अपनी बारी की प्रतीक्षा करती हूँ। मैं उससे सीनियर सिटिजन के टिकिट के लिये पूछती हूँ जिसमें बस  सेवा के साथ साथ तीन चार स्थानों के टिकिट शामिल थेू। यूरोप में एन्ट्री फीस काफी ज्यादा होती है, लेकिन यदि नेट पर देख कर सुविधाओं का पता लगा लें तो कुछ सस्ता पड़ जाता है । काउण्टर पर खड़ा युवक मुझ से सीनियर सिटिजन होने का ना तो कोई प्रमाण माँगता है, ना ही कुछ पूछता है, बस टिकिट हाथ में देकर मुझे समझा देता है कि मुझे निकट के बस अड्डे पर जाना है, वही से बसे मिलेंगी।

बस अड्डे पर खड़े ड्राइवर, कण्डक्टर आदि बड़ी मित्रता से बात करते हैं और तुरन्त मेरे टिकिट को दो दिन के पास में कन्वर्ट कर सकते है, अब मैं पुरे चौबीस घण्टे पर्यटन बसों में मुफ्त में चढ़ सकती हूँ। रुक कर  रुकबर्फबारी हो रही है, फाये जैसी रूई रीढ़ तक कंपकंपा देती  है। इसलिये बस में बैठना बेहद अच्छा लग रहा है,मैं अपने मन को समझाती हूँ कि आराम के चक्कर में ना पड़े..... बस का पहला स्टाप किला है और मैं बहीं उतर गई....

एडिनबर्ग का किले सही मायने में किला है,सोई हुई ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठे इस किले का राजनैतिक, सामरिक और सांस्कृतिक महत्व रहा है. जो किले के भीतर छोटे -छोटे म्यूजियमों में देखने को मिलता हैं। स्काटलैण्ड का इतिहास निश्छल आदिवासियों को छलने का इतिहास है। सीधे साधे आदिवासी, जो कि सामुद्रिक जीवों और जंगलों  पर निर्भर रहने वाले जन थे, किस तरह से नाथ लिये जाते हैं। हालाँकि आरम्भ में स्काटलैण्ड के अपने राजा भी रहे, जैसे कि Alexander III of Scotland, जो अन्तिम स्वतन्त्र स्काटिश राजा माने जा सकते हैं, लेकिन उनकी पौत्री Margaret, Maid of Norway की असमय मृत्यु से स्काटिश राज्य अनाथ सा हो गया जिसका फायदा उसके ही पड़ोसी ब्रिटनों ने उठाया। एक समय जो शैली रोमनों की थी, वही ब्रिटनों ने अपने पड़ोसियों  के लिये अपनाई। यही किलों के कील गाढ़ने का वक्त था। ब्रिटन, नोर्मेन आदि जहाँ आक्रमण करते वही किले बना देते, ये किले उनकी सैनिक छावनियाँ थे , आरम्भ मे ये छावनियाँ लकड़ी की बनी होती थी, जिन्हे पहाड़ियो या ऊचे स्थानो पर बनाया जाता था, लेकिन ज्यादातर स्थानीय लोगो से मुठभेड़ के बाद इन्हे जला दिय जाता था, तो पत्थर की मजबूत सीमा चौकी बना दी जाने लगी। सुरक्षा के लिये नये नये इतजाम जैसे कि किले आसपास प्राकृतिक या कृत्रिम झील, विशाल दरवाजे दुहरी दीवारे, गुप्त मार्ग आदि का उपयोग होने लगा। समय के साथ किला जीतना किसी राज्य को जीतने का प्रतीक बन गया।
एडिनबरा का किला भी बेहद मजबूत किला माना जाता है, यह किला ज्वालामुखी के ठण्डे होने पर बनी पहाड़ी के मुहाने  पर बना है। यूरोपीय इतिहास के अनुरूप इस जगह के पहले पहल बाशिन्दे रोमन ही रहे है, ऐसा माना जाता है, जिन्होंने ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी मे छावनी की नीव रखी गई थी, लेकिन यह भी संभव है कि इससे पहले यहाँ के आदिवासियों ने डेरा जमाया हो। जो भी हो, स्काटलैण्ड के स्वतन्त्रता युद्ध में इस किले का उपयोग किया । स्काटलैण्ड के महान स्वतन्त्रता सेनानी William Wallace की मूर्ति बड़े सम्मान के साथ आज तक लगाई गई है। William Wallace के किस्से स्काटियों की जबान और जीवन से इतने जुड़े हैं कि वे  इस गौरव पुरुष को भुला ही नहीं सकते। William Wallace ने सबसे पहले Freedom का  अर्थ बताया था। William Wallace ने यह भी सिखाया कि युद्ध केवल बहादुरी से नहीं बल्कि दीमाग से लड़ा जाता है। यहाँ संख्या का नहीं बल्कि भावना महत्व रखती है, आस्कर जीतने वाली ब्रेवहार्ट फिल्म का महत्वपूर्ण वाक्य है,,, इतिहास उन्होंने लिखा है जो आतयायी रहे, इसलिये नए इतिहास की जरूरत है। William Wallace की संवतन्त्रता की चिनगारी काफी वक्त तक चली। ब्रिटेन राज ने William Wallace के शरीर के चार टुकड़े किये और देश के चारों कोनों में टाँग दिये, सिर लण्डन टावर पर लटकाया गया, लेकिन वे आज तक स्काटलैण्ड के सबसे बड़े हीरों हैं।
स्वतन्त्रता के बाद किला स्काटिश राजाओं के कब्जे में आया, लेकिन राजमहल की राजनीति भी चालू रही। १५ वीं सदी में फिर से अंग्रेजो ने चढ़ाई की लेकिन कामयाब नहीं हुए तो William Crichton को  Keeper of Edinburgh Castle बनाया गया। लेकिन राजनयिक कूटनीतियाँ, यह किला उस घटना को भी याद करता है जिसे Black Dinner कहा जाता है, दस साल आयु वाले James IIकी उपस्थिति में William Douglas, 6th Earl of Douglas, और उनके छोटे भाई  David को भोजन पर आमन्त्रित किया गया । १५ वी सदी में यह किला युद्ध के सामान निर्माण की फैक्टरी का काम भी करता रहा
एडिनबर्ग में जो कहानी बार बार सुनाई दी थी वह रानी मेरी की थी, King James V ( 1513–1542)पाँच साल की आयु में ही किले में सुरक्षा की दृष्टि से रखे गये। २५ वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई, उस वक्त उनकी बेटी Mary महज सात दिन की थी, जिसका राजतिलक कर दिया गया और फ्रांसिसी माँ के घर पेरिस भेज दिया गया। तब तक उनकी माँ मेरी राजकाज सम्भालती रहीं। १६ साल की उम्र में उनका विवाह Dauphin of France, Francis से हो गया दो साल बाद ही वे  विधवा हो गईं.। इस बीच अंग्रेज आक्रमण करते रहे, और विरोधियों के सिर उठने शुरु हो गये. किशोर रानी मेरी का विवाह कैथोलिक धर्म से हुआ तो स्काटलैण्ड के प्रोटेस्टेंट अनुयायी राजनयिकों मेंविरोध के स्वर उठे। वापिस आने पर उनका विवाह अपने रिश्तेदार  Henry Stuart, Lord Darnley किया गया जो पूरी तरह से असफल रहा। जब मैं होलीवुड राजमहल देखने गई तो वह कमरा दिखाया गया जहाँ मेरी अपनी सहेलियों के साथ ताथ खेल रही थीं, उनके साथ उनके बचपन का फ्रांसिसी मित्र भी था। मेरी के पति ने मेरी को बालों से पकड़ कर खींचा और बड़ै कमरे तक ले आये, जहाँ उन्हें तब तक पीटा गया जब तक वे बेहोश ना हो गईं। उस वक्त मेरी गर्भवती थी और अपने पूरे समय से थी। रजनीति के घिनौने इतिहास में औरत को रानी होने पर भी नहीं छोड़ा जाता....
कुछ वक्त बाद राजभवन में आग लग गई और हेनरी मृत पाये गए। मेरी ने James Hepburn, 4th Earl - Bothwell से विवाह कर लिया तो राजनयिको ने जेम्स को हेनरी का हत्यारा मानते हुए मेरी को मारना चाहा। मेरी का इंगलैण्ड से भी नाता था, क्यों कि उस वक्त अधिकतर राजघराने फ्रांस की राजयुवतियों से विवाह करना अच्छा मानते थे, फलस्वरूप हर देश की रानियों में कोई ना कोई रक्त सम्बन्ध होता था.
अन्तिम दिनों में मेरी इंगलैण्ड की जेल में रहीं...कई राजनैतिक उठापटक के बाद उन्हें फाँसी की सजा दी गई।
एडिनबर्ग किले की खासियत यह है कि यहाँ हम ना केवल किला देखते हैं बल्कि उस काल के इतिहास से भी परिचित होते हैं। यहाँ छोटे छोटे म्यूजियम बना दिये गये हैं जहाँ राजनैतिक कहानियों को मिट्टी के माडलों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।
बेहद सर्दी थी, इसलिये लोग इन म्यूजियमों में घुसना पसन्द भी कर रहे थे। पाइप संगीत स्काटियों की खासियत है, और एक पूरा कमरा इन बैगपाइपर कलाकारों की कहानी वीडियों और माडलों द्वारा बता रहा था। कथा की यह प्रस्तुति एक आम आदमी को इतिहास समझने में मदद करती है। बैगपाइपरों को बाद में ब्रिटिश सेना में बहुत महत्व दिया गया था, ये सेना के आगे आगे चलते थे, मैं समझ नहीं पाती कि इतना मीठा संगीत आक्रोश कैसे जगाता होगा? जो भी हो, उनकी प्रस्तुति आज भी शानदार लगती है।
म्यूजियम के बाहर आते ही हवा तीर सी लगती है, लेकिन स्कूली बच्चें पंक्तियों में खड़े दिखाई दे रहे हैं, इस नन्ही आयु से इतिहास को समझना अगली पौध के लिये आवश्यक भी है, जो हम नहीं जानते...
एक म्यूजियम में वह खदान है, जहाँ स्काटिश मुकुट छिपाया गया था, किसी आक्रमण के वक्त यह मुकुट कोयलों में दबा दिया गया जिससे आक्रमणकारियों के हाथ ना लग जाये। एक पूरे म्यूजियम में राजा के कर्मचारियों, मुकुट निर्माताओं आदि की प्रस्तुति के लिये एक पूरा एक कक्ष है। राजकीय परम्परा देखने में जितनी भव्य लगती है, हकीकत में आम जन के लिये उतनी ही कठिन होती है। पूरा कि पूरा समाज मक्खियों की तरह रानी मक्खी यानी कि राजनीति के लिये मधु सर्जन में रत हो जाता है।
सबसे भयानक जगह थी, वे गुहा समान कारागार जिनमें दर्दम कैदी रखे जाते थे, सीलन भरी काल कोठरियों में चैन से बाँध कर जानवरों से बदतर स्थिति में। इन कालकोठरियों को ऊपर से देखने की व्यवस्था की गई है लेकिन भीतर जाते ही
 मन व्यथित हो जाता है। इसके बाद वे कारागार भी दिखाये जाते हैं जहाँ राजनेतिक कैदी रखे गये, खास तौर से अमेरिकन नौसैनिक। यह कैद अमेरिका कों स्वतन्त्र राज्य देने की स्थिति से पूर्व का था। इस कैद में कैदियों के सोने के लिये झूले से लटके थे, उनके मनोरंजन के लिये चौसर आदि भी बिछे रखे  थे। उनकी खुराक का चार्ट दीवार पर टंगा था, और मजेदार बात यह थी कि कई काठ खण्डों पर कैदियों ने अपने जहाजों के चित्र बड़ी खूबसूरती से खोद खोद कर उकेरे हुए थे। क्रूरता और कला का भी नाता हो सकता है़ कहा जाता था कि ये कैदी खूब हल्ला गुल्ला करते और समय बिताने के लिये शर्त बदते रहते, कभी कभी तो नाली से निकले चूहे पर भी शर्त लग जाती कि वह दाहिनी तरह मुड़ेगा या बाई तरफ। सभी म्यूजिमों में साउँण्ड लाइट और प्रेजेन्टेशन के माध्यम से बड़ी अच्छी प्रस्तुति है, जिससे रुचि खत्म नहीं होती। अन्त में सिविल जेल भी थी, जिसमें कभी नागरिक तो कभी कर्मचारी रखे जाते थे, यहाँ क्रूरता की मात्रा कम थी। किले के सभी म्यूजिमों में घूमते चार बज गये थे, इसलिये सबसे ऊँची दीवार पर चढ़ने की जगह बाहर निकलना ठीक समझा। कुछ देर तक किले से शहर को निहार में किले से नीचे उतरने लगी और दूकानों आदि को देखती  हुई एक ऊन के कारखाने में घुस गई। यह कारखाने के साथ साथ संग्रहालय भी लग रहा था। इतना बड़ा कि इसमें पूरी तरह से घूमने के लिये दो घण्टे तो लगेंगे। यहाँ ऊनी कपड़े की खरीददारी भी  की जा सकती है। एडिनबर्ग वुलन मिल के लिये भी बड़ा प्रसिद्ध है। दुनिया के सबसे महंगे ऊन cashmere wool की यहाँ अनेक दूकाने हैं। स्काटिश ऊनी कपड़े काफी गरम भी  होते है
किले से उतरते ही भव्य सिटि सेन्टर आ जाता है, और लोगों का हुजूम, यह यात्रा का मौसम नहीं, फिर भी रेल पेल है, सीजन में क्या होता होगा....
मैं भूत की  क्रूरता की निशानी किले से नीचे उतर कर आती हूँ, तो बस अड्डे पर मुस्कुराते हुए स्काटिश चेहरे मिलते है, निगाह मिलते ही लोग मुस्कुराते हैं। हर कोई सहायता के लिये तत्पर दिखता है। मेरे हाथ में गेस्ट हाउस का कार्ड है , जिसमें उनका पता और नक्शा है, मैं सोच ही रही थी कि क्या करूँ तभी बस कन्देक्टर मुझ से पूछते हैं कि क्या मैं सहायता कर सकता हूँ...... मैं कार्ड दिखा कर पूछती हूँ तो वे  बताते है मैंक्स बस सर्विस की गाड़ी इस स्थान के करीब ब्रेड स्ट्रीट तक जायेगी, आखिरी गाड़ी पाँच बीस पे है, आप उस से चले जाए, वहाँ से पैदल जाया जा सकता हैं, मैने घड़ी देखी पाँच बज गये हैं, हालांकि मैं अपने टिकिट से शहर का टूर ले सकती हूँ , लेकिन फिर ठिकाने पर लौटने में समस्या होगी। सुबह से मेने नाश्ते के बाद कुछ खाया भी नहीं है, जल्दी से मैक्दोनल की लपकती हूँ, यूरोप में सब वे,मैक्डोनल सबसे सस्ते खाने हैं...
पाँच बीस की टूर गाड़ी पूरी खाली हैं, कण्डेक्टर और गाइड दोनों महिलाये हैं। जब मैं ब्रेड स्ट्रीट लौटने की बात कहती हूँ तो गाइड निराशा से  कहती है कि आज तो गाड़ी खाली  ही जायेगी, आप चाहें तो आपका टूर करवा दें, लेकिन यह आखिरी गाड़ी है । मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहती, क्यों कि मुझे लौटने का रास्ता जो मालूम नहीं है, यदि समय पर चलूँ तो रास्ता समझ सकती हूँ। मैं उससे कहती हूँ कि मैक्स टूर कल लूंगी,म आज वक्त से पहुँचना चाहूँगी। जब उन्हें मालूम पड़ता है कि मैं इण्डिया से हूँ तो कण्डेक्टर लड़की कहती है कि वह एक बार गोल्डन टूर ट्रैवल के साथ इण्डिया गई थी। मैंने पूछा कि कैसा लगा, तो वह बताती है कि---.बहुत अलग है, सपने जैसा लगता है... मैने कहा की भीड़ भाड़ के कारण.
मुझे तो लण्डन भी भीड़भाड़ वाला लगता है तो इण्डिया की बात अलग है, फिर भी काफी अलग है दुनिया से....
आज की स्थिति में स्काटलैण्ड काफी महत्वपूर्ण है, चिकित्सा के क्षेत्र में एडिनवर्ग ने जो दुनिया को दिया वह अविस्मरणीय है, James Young Simpson द्वारा एनिस्थिसिया की जो देन है वह  आधुनिक मेडिकल साइंस को बहुत बड़ी  देन मानी जाती है़ आज भी दुनिया के छात्र यहाँ मेडिकल साइंस की शिक्षा के लिये  आते हैं। sir Ronald Ross ने मलेरिया को मच्छर से जोड़ा। इसके अतिरिक्त इन्सुलिन, पेनिसिलिन के अविष्कार को भी स्काटिश देन मानी जाती है। विश्व की नामी हस्तियाँ एडिबर्ग में रह चुकी हैं।
किले को छोड़ दे तो यह शहर सात पहाड़ियों पर बसा है। मध्यकाल में तो यह शहर बड़ा व्यवसायिक केन्द्र था, सामरिक शक्ति का केन्द्र भी था। Edinburgh International Book Festival, the Science Festival, Film Festival and Jazz and Blues Festival.आदि विश्व प्रसिद्ध हैं। UNESCO ने इसे City of Literature in   2004.में ही घोषित कर दिया था।
सन् 1707 में Treaty of Union in के अनुसार एडिनबर्ग ग्रेट ब्रिटेन का हिस्सा बन गया था, 1997 इसे पूर्ण स्वतन्त्ता मिलनी थी। लेकिन इस वक्त स्काटिश पार्लियामेन्ट तो है, लेकिन पूर्ण स्वतन्त्रता नहीं है। हालाँकि लण्डन के बाद यह
सबसे महत्वपूर्ण शहर है। २०१३ में जनमत के आधार पर स्वत्वन्त्रता की स्थिति का निर्धारण होगा। मैं गाइड से इसके बाबत पुछती हूँ कि स्काटिश लोग क्या चाहते हैं। उनका जवाब सुन कर मुझे आश्चर्य होता है कि जन सामान्य स्वतन्त्रता के पक्ष में है ही नहीं। अधिकतर लोग विपक्ष में मत देंगे, क्यों कि उन्हें डर है कि स्काटलैण्ड का राजनैतिक नैतृत्व ठीक नहीं हुआ तो जन जीवन  अस्त व्यस्त हो जायेगा। मुझे आश्चर्य होता है, क्यों कि जब आप को तश्तरी में सजा कर स्वतन्त्रता भेंट की जाये और आप उसका फायदा भी नहीं उठा पाये,,,,, ब्रेड स्ट्रीट आने पर मैं उतर गई और पूछते पूछते अपने डेरे पहुँच गई, अभी छह ही बजे थे, तो उजाला था, इसलिये देख पाई कि जहाँ मेरा गेस्ट हउस था, उस गली का नाम इण्डिया लेन लिखा हुआ था, वहाँ कई इण्डियन स्टोर भी थे, पंजाबी  वेषभूषा में एक दो महिलायें भी दिखाई दीं। दो दूकानों में पंजाबी कपड़े लटके दिखाई दिये, मैं रात को खाने के लिये कुछ फल लेने एक स्टोर में घुसी तो समोसे रखे हुए थे। पंजाबी तड़का ब्रिट्रेन में खास लगा है़। कुछ कीवी खरीद कर में डेरे पहुँची तो कोई खटपट नहीं, लगा ही नहीं कि कोई भीतर है..... मैं अपने कमरे जा कर बी बी सी खोल कर लेट गई....
पहाड़ों पर जम कर बर्फबारी दिखाई जा रही थी, इस बर्फबारी में कई भेड़े बर्फ में दब गई, लोग पारम्परिक रीति से बाँस खोद कर अपनी भेड़ों को खोज रहे थे

ओह तभी,,,, आज सारे दिन बर्फ के फाये गिरते रहे....
मेरा पहला दिन अच्छा बीता....
क्रमशः

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