आज दूसरा दिन है, एक अजीब सा आत्मविश्वास आ गया है,

ना ज्यादा मुड़ाव ना झुकाव,,, हर गली का कोई ना कोई नाम, मुझे जयपुर का पुाना शहर याद आया, जो शायद इसी तरह बसाया था।
हर गली खास सड़क पर खुलती है,
अब तक मुझे
पता चल गया था कि गली से बाहर निकलो तो किंग्स सिनेमा घर के बाईं ओर मुड़ने पर चलते चलते ब्रेड
स्ट्रीट आयेगी, और वही दाहिनी ओर मुड़ कर चलते चलो तो किले के पीछे पहुँच जायेंगे। यही से ट्यूरिस्ट बसे मिलेंगी जिनमें मैं दो दिन तक सिटी टूर ले सकती हूँ।


Abby के ठीक
विरोधाभास में था राजमहल, जिसका उपयोग स्काटलेण्ड की रानी मेरी से लेकर आज तक किया जाता है। यह राजमहल नई इमारत में ऊपर के हिस्से में सीमित हो गया है। वर्ष में दो महिनों के अलावा यात्रियों के लिये खुला रहता है। एक तरह से यह इंग्लैण्ड की महारानी का ग्रीष्म अवकाश में रहने
के लिये होलिडे होम भी है। राजमहल को दिखाने के लिये राजमहल के कर्मचारी जिस तत्परता से जुटे हुए थे, देखने
लायक थी, हालांकि आज के सन्दर्भ में ये राजकीय शानशौकत कुछ मायने नहीं रखती, क्यों कि इस तरह की सुविधा बड़े होटलों में भी दिखाई दे जायेगी। ब्रितेन आज भी राजकीय परम्परा का मान रखता है इसलिये लोग बेहद दिलचस्पी और समादर से देख रहे थे। देखना मुझे भी बुरा
नहीं लगा, लेकिन इतना खास भी नहीं जितना कि Abby का खण्डहर।
राजकीय शान शौकत के साथ राजमुकुट को भी यहाँ खास महत्व दिया जाता है, शयद यही शासकीय परम्परा का प्रतीक है।
राजकीयता और प्रतिबद्धता घूटन को जन्म देती है, लेकिन यही घूटन कला को विस्तार देती है। घुटन से उपजी कला और जीवन संघर्ष से उपजी कला में बेहद अन्तर होता है़। एक में प्रत्येक रेखा
प्रत्येक बिन्दु
वृत्त के भीतर कैद होता है, तो दूसरे में असीमित। मैं ना चाहते हुए भी राजमहल का आनन्द नहीं उठा पा रही थी। लेकिन नियमानुसार हर कमरा पार करना जरूरी था, हर कमरे की कहानी थी , जिसे हम रिकार्डेड सुन सकते थे, इससे वक्त ज्यादा लगता था। जब वह कमरा आया जहाँ मेरी रानी अपने मित्रों के साथ ताश खेला करती तो जो कहानी सुनाई गई उससे मन खिन्न हो गया कि किस तरह उनके बचपने के फ्रांसिसी मित्र और अन्य सहेलियों के साथ ताश खेलते वक्त पति ने बाल पकड़ कर खींचा और बड़े कमरे
में लाकर पिटाई की, उस वक्त मेरी पुरे समय से थीं। सन्देह, शक और कूटनीतियाँ राजमहल की राजनीति का अंग हैं, मेरी का यह संघर्ष काफी लम्बा चला है, यहाँ तक कि अन्ततः
उन्हें लण्डन में मौत की सजा दी गई।
मेरी की कहानी सुन कर मेरा मन आगे जाने को बिल्कुल नहीं था, लेकिन बाहर निकलने का निश्चित मार्ग था, इसलिये मैं चुपचाप बाहर निकलने लगी। और किसी तरह से सीढ़ियों तक पहुँच पाई।
मेरी की चीखें मेरा अब तक पीछा कर रही थीं, राजगद्दी बचाने के लिये सिंहासन पर बैठी एक युवती को भी अपमान और प्रतारणा सहनी पड़ती है तो सामान्य जन की क्या बिसात?

दो विकल्प थे, या तो किसी बस का सहारा लो, या फिर सामने की नई पार्लियामेन्ट बिल्डिंग में घुस जाओ। युरोपीय देशों में प्रवेश फीस बहुत ज्यादा होती है, और मेरा टिकिट तीन दिन के लिये रियायत वाला था। सड़क पर मरम्मत का काम चल रहा था, अक्सर बर्फबारी के बाद सड़को की मरम्मत जरूरी हो जाती है तो बता गया
कि बस कुछ आगे जाकर खड़ी होगी। मैं असमंजस में थी कि एक दरबान ने मेरी समस्या हल की,, आप पार्लियामेन्ट बिल्डिंग रन्जरूर देखें, फ्री एन्ट्री है। सुन कर मैं तुरन्त प्रवेश द्वार की ओर बढ़ी। निसन्देह अच्छी तरह से तलाशी ली जा रही थी। लेकिन भीतर जाते ही बड़े बड़े अहाते, बैठकें दिखाई देने लगी।Garden Lobby तो बेहद खुबसूरत थी, छत पर पत्तियों की आकृति के झरोखे थे। यहाँ भी कई
लोग आराम से बैठ कर काफी आदि का लुत्फ ले रहे थे। मुझे आगे भी यात्रा करनी थी तो सीधे सीधे पार्लियामेन्ट हाउस की ओर
बढ़ी। हाउस खाली था। लेकिन विचित्र आकृतियाँ थी। Enric Miralles द्वारा बनाई ये इमारत आरम्भ से विवाद का विषय रही है। एक तो इस बिल्डिंग में
चीन का पत्थर लगवाया गया, जबकि स्काटलैण्ड का पत्थर भी अच्छा माना जाता है। ऊपर से इसे बनवाने में वक्त भी काफी लगा और लागत भी जबरदस्त आई £414 million।
मुझे दो बातों ने प्रभावित किया , पहली यह कि सारी कुर्सियाँ और खिड़कियाँ साइड में बन्धे पर्दे के आकार की थीं, जो इस बात का द्यौतक हैं कि राजनयिकों, विचारकों को नये विचारों की हवा भीतर ४ने लिये दीमाग की खिड़की के पर्दे खोल कर रखने चाहिये। दूसरी बात यह कि यह इमारत स्वतन्त्र स्काटलैण्ड को कल्पना में रख कर बनाई गई थी, जैसा कि Enric ञalles ने स्वयं कहा है.
“
We don't want to
forget that the Scottish Parliament will be in Edinburgh, but will belong to
Scotland, to the Scottish land. The Parliament should be able to reflect the land
it represents. The building should arise from the sloping base of Arthur's Seat
and arrive into the city almost surging out of the rock. Enric Miralles, 1999
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसे जनता के लिये खुला
रखा गया है। यही लोकतन्त्र की विजय है।
मेरी लिस्ट में अगला पड़ाव था, रायल याच, यानी की राजकीय जहाज, मेरा विचार था कि मुझे जहाज यात्रा करने का मौका मिलेगा। लेकिन यह भी लण्डन के प्रिंस का व्यक्तिगत विशाल जहाज है, जिसे पर्यटन के लिये खोल दिया गया है। बा हर अभी भी बरफ पड़ रही थी। मैं यूरोपीय लोगों की राजभक्ति को देख कर अचम्भित हूँ, जहाँ राजकीयता आती है, वे बेहद संजीदा हो जाते हैं। जहाज में अधिकतर लोग बड़े आदर से हर चीज को देख रहे थे, जैसे की राजकुमार की खाने की मेज, खानसामों की वेशभूषा, राजकुमार
की वेशभूषा, चान्दी के बर्तन आदि आदि, एक कक्ष से दूसरे कक्ष तक यही सब दिखाई दिया,,,, कक्ष में घूमने के नियम थे, इसलिये यात्रा बीच में बन्द नहीं की जा सकती थे़ मुझे तो कपड़े इस्त्री करने की विशेष मेज के अलावा कुछ देखने में मजा नहीं आ रहा था, बार बार खिड़की से झांक कर समन्दर को देखती। शाम
के पाँच बजते बजते यात्रा पुरी हुई और मैंने जहाज के ऊपरी सिरे से निकल कर चैन की साँस ली। जहाज से निकल कर मैं माल में घुस गई, क्यों कि अब तक नाश्ते के बाद कुछ नहीं खाया था। ना जाने क्यों जब भी मैं बाहर जाती हूँ, मेरा पेट सत्याग्रह कर देता है़ इसलिये मुझे बस सलाद और ब्रेड की जरूरत थी। कुछ ताजा जूस भी खरीदा, पानी और जूस एक ही भाव, तो जूस ही पीयों ना....
केरल में व्यवसायिक मानसिकता इतनी खराब है कि यदि कोई भी दूकानदार मीठी बात करता है तो बेहद खुशी होती है, मैंने जब अल्पाहार की दूकान पर शाकाहारी सेण्डविच की माँग की तो उसने मुझे इण्डियन समझ कर सोचा की मैं शाकाहारी होने के कारण य मांग रख रही हूँ, लेकिन जब मैंने उसे अपने खराब तबियत के बारे में बताया तो उसने सलाह दी कि मै ब्रेड और सलाद अलग अलग खरीदू, जिससे ताजी सब्जियाँ मिल सके और ब्रेड भी मनपसन्द। मेरा मन खुश
हो गया। सामान पैक करते वक्त उसने दुआ सी दी, आशा है आपका स्वास्थ्य बेहतर होगा, आप अपनी यात्रा का आनन्द ले पायेंगी।
मैं बाहर निकली तो हल्की
सी धूप
खिली थी, हालांकि हवा तेज और तीखी थी, मैंने यूँ ही घूमते हुए तस्वीरें खींचनी शुरु कर दी। लेकिन ठीक सवा छह बजे अपनी गली की ओर जाने वाली कर में बैठ डेरे लौत गई।
कितनी जल्दी आदमी घर बसा लेता है, और कितनी जल्दी अनजान जगह अपनी लगने लगती है। गेस्ट हाउस में आज भी सन्नाटा था।
मैं अपने कमरे में आकर लेट गई और बीबीसी के चैनल बदल बदल कर देखने लगी, निसन्देह कई बेहद अच्छे कार्यक्रम थे।
सर्द कमरे में आवाजें गर्माहट भर देती हैं, और नीन्द के लिये रास्ता बन जाता है...
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