अब मैं एडिनबरा के म्यूजियम में घुस गई, दरअसल यहाँ आने की वजह ठण्ड से बचना था, इतने कपड़े लादने पर भी कंपकंपी नहीं रुक रही थी। लेकिन भीतर आते ही लगा कि सही निर्णय था। जहाँ सड़के खाली थी, यह जगह गहमागहमी से भरी, लगता है कि आधा शहर यहाँ है। खासतौर से बच्चे वाले लोग, एक तो यहाँ कोई टिकिट नहीं, दूसरे बच्चों के लिये खास इंतजाम, जैसे कि उनके लिये चित्र बनाने के लिये पेपर पेंसिल, क्राफ्ट कक्ष और खेल के छोटे छोटे खिलौने।
हर देस की कला और संस्कृति के नमूने यहाँ रखे गये थे। मैं बस
एक के बाद एक कक्ष में घूमती हुई कलाकृतियों का जायजा लेती रही, विचित्र घण्टेघर, आकृतियाँ ,मिस्र् की ममि से लेकर विन्टेज
गाड़ियाँ, ओह, दीमाग में कितना रखा जा सकता है भई, आखिर में बस केमरा क्लिक होता और दीमाग सुप्तावस्था में चला गया। बस एक दुख था कि भारत का कोई कक्ष नहीं था, ना जाने हम लोग अपनी संस्कृति के नाम से इतने आश्वासित रहते हैं किकुछ करना ही नहीं चाहते।
मुझे और भी घूमना था, भूख भी लगने लगी थी, बेटी ने बताया था कि The peoples Story नामक
जगह जरूर देखना, मैं इसी जगह को खोजने बाहर निकली, अन्ततः इस म्यूजियम में आ पहुँची। यह भी अपने तरीके का संग्रहालय है जिसमें आम आदमी की कथा कहती है। यहाँ उस काल की कहानी है जब बेहद गरीबी में आम आदमी रहते थे, और जीविका के संघर्ष करते थे। यहाँ समाज के एक बड़े तबके का संघर्ष दिखाई देता है। एक एक
चित्र या प्रतिमा के साथ लिखी कथा पढ़ते पढ़ते काफी वक्त बीत गया। कस कर भूख लगी तो मुझे जर्मन बर्गर की याद आई, मैं म्यूजियम से बाहर निकल कर एक खाली बेंच में बैठ कर खाने लगी। भूख और ठण्ड में जंग छिड़ी थी, भूख कहती थी कि रुको मत खाये जाओ, ठण्ड कहती
बस करो, क हीं अन्दर जाओ, वास्तब में बर्गर स्वादिष्ट था, और बड़ा भी। बगल में एक बालकनी दिखाई दे रही थी, कहा जाता है कि
यहीं से स्काटलैन्ड की आजादी का आह्वान हुआ था।
सामने एक पीली इमारत थी, जिसका नाम था, म्यूजियम आफ एडिनबरा, मैंने उसी में घुसने में भलाई समझी, ये म्यूजियम तो निशुल्क था,लेकिन एडिनबरा के बारे में फिल्म के दाम देने होते थे। मैं म्यूजियम में घुस गई। दरअसल यह स्काटलैण्ड की युद्ध की कहानी थी, कौन युद्ध का नायक किस युद्ध में क्या जीता आदि का विस्तार से वर्णन था। बेगपाइपर के लिये युद्ध की वेशभूषा का महत्व हुआ करता था, लेकिन स्काटी ढ़नी केवल दो डालर सालाना मुहैया करवाते थे। कहा जाता है कि ड्रेस की मारामारी के सैनिक किसी ना किसी तरह से वेशभूषा हथियाना चाहते थे। कभी कभी तो साथी सैनिक के मरने पर पहले उसकी पौशाक हथियातेफिर
उसके शव के बारे में सोचते।
युद्ध हमेशा सेनिकों की सहायता से जीते जाते रहे हैं, लेकिन वे ही सबसे ज्यादा उपेक्षित रहते रहे हैं, युद्ध का इतिहास हर तरीके से कठोर है।
शाम होने लगी थी, मैंने बाहर निकल कर कैमरे को क्लिक क्लिक करना शुरु कर दिया, मैं कोई खास फोकस नहीं करती, बस क्लिक करती जाती हूँ.....
आज मेरा सीजन टिकिट खत्म हो चुका था, तो सरकारी बस पकड़नी थी, इसलिये लौतने की जल्दी नहीं थी, सबों विदा जो कहना था, कल फिर सुबह की फ्लाइट से लौटना है, गेस्टहाउस मालकिन ने अगेल दिन के लिये टैक्सी का इंतजाम कर दिया था, लेकिन मजेदार बात यह थी कि उन्होंने मुझसे कहा कि चाभी मेज पर रख कर दरवाजा बन्द करके चली जाऊँ। यानी कि विदा के वक्त कोई नहीं होगा गेस्टहाउस में।
रात को सामान पैक करने के
लेटने के बाद नीन्द लेना मुश्किल था, क्यों कि टैक्सी सुबह पाँच बजे आनी थी, और यहाँ टैक्सी वाले इंतजार नहीं करते, आप सड़क पर खड़े है तो ठीक, नहीं तो चले जायेंगे।
निसन्देह सामान लगाते लगाते वक्त लगा, बस फिर तो झपक ही ली, क्यों कि सामान तीसरी मंजिल से खुद ही उतार कर लाना था।
सुबह मैं चार बजे से ही नीचे थी, और साड़े चार बजते ही सड़क पर खड़ी हो गई, इतनी सुबह, इतनी ठण्ड में खड़े होना मेरे लिये चमत्कार से कम नहीं था....
अन्ततः टैक्सी ठीक पाँच बजे आ पहुँची...
टैक्सी ड्राइवर भी खूब बातूनी था, लगातार बाते कर रहा था़ किसी छोटे गाँव का था और एडिनबरा में टैक्सी चलाता था। मैंने चलते चलते उससे भी यही सवाल दागा, स्काटलैण्ड की स्वतन्त्रता के लिये वोट करंगे या नहीं?
वह एक क्षण को
चुप हुआ फिर बोला, मुझे राजतन्त्र में विश्वास है।
हवाई अड्डा आ पहुँचा था, मैं चुपचाप दाम चुका कर पउतर गई..
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