सुबह पाँच बजे ही कंपकंपी सी लगने लगी, हाथ निकाल कर देखा तो कमरा और बिस्तरा सब बेहद ठण्डा, जल्दी से हीटर के पास गई, अरे, यह क्या, बिल्कुल ठण्डा पड़ा है, कोई ना कोई तो गड़बड़ी हुई है मैं तेजी से सीढ़ियाँ उतरते नीचे जाती हूँ और उस कमरे में खटखटाती हूँ जहाँ पहली बार गेस्टहाउस मालकिन को देखा था। लेकिन जिस दरवाजे को हाथ लगाओं, खुल जाये। ओह तो यह गेस्ट हाउस भी एकदम खाली है? अचानक थरथरी बढ़ गई, मैंने सोचा तक भी ना था कि अनजाने देश के अनजाने शहर में अनजानी इमारत मे मैं अकेले ही रह रही हूँ़ सुबह मालकिन आती है, और नाश्ते का कमरा खोलती हैं, बस...
वापिस कमरे में आकर रजाई में बैठने की कोशिश करती हूँ, करीब आठ बजे हीटर गर्म होता लगता है, मैं जल्दी से नहा धोकर कपड़े पहन कर खाने के कमरे में आती हूँ, जहाँ गेस्टहाउस मालकिन दिखाई देती हैं। मै भड़भड़ा कर हीटर आन ना होने की बात कहने लगती हूँ। वे मेरा कंधा थपथपा कर कहती है कि रात को हम हीटर आफ कर देते हैं, क्यों कि सारे दिन आन रहता है,,, लेकिन पिछले दो दिन तो आन था... मैं पूछती हूँ.
वे बताती है कि दो दिन से हीटर खराब था, इसलिये आन रखना पड़ा था,
मुझे उनका जवाब सन्तुष्ट नहीं करता , लेकिन कारण समझ में आ रहा था कि केवल एक अतिथि के लिये हीटर आन रखना महंगा पड़ता होगा शायद,,
आज मुझे निकलते निकलते देर हो गई, यही नहीं आज मेरा पैदल घूमने का विचार था। मैंने बस राइड का पेमेन्ट तो किया था, लेकिन एक बार भी पूरा टूर नहीं ले पाई थी। मैं जल्द जल्द ब्रेड स्ट्ीट पार कर बस स्टेण्द तक पहुँची ०र आस पास की फोटो खींचने लगी
मेरा फोटो खींचने का तरीका बेहद आरामदायक होता है, ना फोकस करती हूँ ना लेंस से देखती हूँ, बस कैमरा का मुँह घुमा कर क्लिक करती रहती हूँ, जितनी बेतरतीब तस्वीरे खिंचती हैं उतनी अच्छी लगती है। सम्भाल के ली गई तस्वीरें फैशन परेड में निकलती माडलों सी लगती हैं।
तभी बस आ जाती है, चलो पहली बार इस जीती जागती गाइड बस का लुफ्त उठाया जाये। बस एकदम खाली है। गाइड नीचे आ कर मेरा स्वागत करता है, और कहता है कि आप भाग्यवान है कि आपकों बस के किराये में टैक्सी का आनन्द मिल रहा है। मैं मुस्कुराती हूँ, चलों बेमौसम आने का कोई तो फायदा हुआ। बस पूरी खाली है, गाइड कहता है कि आप ऊपर के हिस्से में चलें, वही से शहर अच्छी तरह दिखाई देगा। ऊपर ठण्ड ज्यादा है, लेकिन शहर देखना है तो चलना ही पड़ेगा।
अब गाइड बड़े आराम से एक एक सड़क और इमारत की कहानी कहने लगा। किसी वक्त एडिनबर्ग .स्काटलैण्ड इतना भी खूबसूरत
नहीं था। स्काटी लोग मेहनती और युद्ध में पारंगत जरूर रहे हैं, किन्तु गरीबी की विभीषिका को भी सहा है। यहाँ पुराना और नया टाउन एक साथ दिखाई देगा। यूँ तो यह स्थान सदियों की गाथा रखता है, लेकिन इसे सन 1437से स्काटलैण्ड की राजधानी का मिला। एडिनबर्ग ठण्डे पड़े ज्वालामुखी के पहाड़ पर बना है। यहाँ बड़े बड़े विद्वान रहे हैं, चिकित्सा के क्षेत्र में काफी काम हुआ, लेखकों के लिये सदैव से आकर्षण का केन्द्र रहा है। इस दृष्टि से Sir Walter Scott का नाम सबसे पहले लिया जा सकता है। Princes Street,इस शहर की मुख्य धमनी है, अन्य स्ट्रीट नगर का अलग अलग अवलोकन करवा देती हैं। पुरानी नगरी और नई नगरी एक दूसरे में गुंथी पड़ी है। किसी पुराने हिस्से से अचानक नया हिस्सा उगता सा दिखाई देता है। पुलों की भरमार है। आज भी Old Town के
अवशेष के रूप में चोटी छोटी गलियाँ मूख्य सड़क को काटती दिखाई देती है। बड़ी बड़ी इमारतों के बीच संकरी सीढ़ियाँ दीख पड़ेगी। मैं बस के भीतर से शीशे की तरफ मुँह कर केमरे को बस क्लिक क्लिक करती जाती
हूँ और गाइड के संवाद को सुनती जा रही हूँ, चलती बस से इतने सारे नाम याद रखना
बेहद मुश्किल हैं, लेकिन पुलों के जाल और पुलों के बने पुलों और नीचे से सींकचो के भीतर गुजरती पतली गलियों को देखना मजेदार लगा। गाइड बता रहे थे कि ना जाने कितने आयरलैण्डवासी बेघर होने पर इन सुरंगों जैसी गलियो का सहारा लेते थे। कहां जाता है कि अट्ठारहवी सदी में सारे मकान मूख्य सड़ँक की ओर खुलते थे, और उनमें से पतली पतली सीढ़ियाँ भीतरी गलियों की ओर जाती थीं। एकइमारत बहुमंजिली होती थी, जिसमें सभी तबके
के लोग एक साथ रहा करते थे, लेकिन उनके रहने का तरीका एक अलिखित नियम का पालन करता था। सबसे नीचे गरीब कामगार
सिलोग रहते थे। मध्यम श्रेणियों में डाक्टर, मजिस्ट्रेट ,लेखक आदि सभ्य जाने वाले लोग रहते थे और उनके ऊपर दूकानदार, नृत्य शिक्षक, क्लर्क आदि । सबसे ऊपर की बुखारी चौकीदार आदि को दी जाती थी, हालाँकि सबके लिये समान सीढ़ी का प्रयोग होता था। सामाजिक चेतना की दृष्टि से इस की सराहना की जा सकती है, लेकिन यदि ध्यान दिया जाये तो सामाजिक
असामनता को बड़ी चतुराई से उपयोग में बदल दिया गया था। हर जरूरत की मदद घर में या आसपास मिल जाती, ऊपरी बुखारी से घर की रखवाली भी हो जाती। उन दिनो रात के दस बजे के बाद सड़क से निकलना मुश्किल था, दस बजते ही मकानों की खिड़लियाँ खुलती और लू कहते हुए घर का कूड़ा कड़कट, गन्दा पानी खिड़की से गिरा दिया जाता था। पुरानी फिल्मों मे इस तरह के दृश्य दिखाई देते हैं। Lord Provost George Drummond. Elliotने इस तरह के दृश्यों को दर्शाया है-
Placed
upon a ridge of a hill, it admits but of one good street, running from east to
west, and even this is tolerably accessible only from one quarter. The narrow lanes
leading to the north and south, by reason of their steepness, narrowness and
dirtiness, can only be considered as so many unavoidable nuisances. Confined by
the small compass of the walls, and the narrow limits of the royalty, which
scarcely extends beyond the walls, the houses stand more crowded than in any
other town in Europe, and are built to a height that is almost incredible
उसके उपरान्त स्काटलैण्ड का नया टाउन बनना शुरु हो गया, और नगर पूरी तरह दो भागों में विभाजित हो गया, पुराना टाउन मतलब गरीब लोग, नया टाउन मतलब अमीर सभ्य लोग। एडिनबर्ग नामी गिरामी विद्वानों का गढ़ बन गया।
मैने बीच में रोक कर गाइड से वही सवाल किया, आप स्काटलैण्ड की स्वतन्त्रता को वोट देंगे या फिर ब्रिटेन से जुड़ा रहना पसन्द करेंगे। यह सवाल सुन वह कुछ अचकचा गया। फिर कहने लगा..देखो हम इण्डिया पाकिस्तान नहीं होना चाहते, उसका मतलब साफ था कि ब्रिटेन के छोड़ने पर पाक अविकसित ही रह गये। फिर कहने लगा कि फायदा क्या है स्वत्रंता का? ये केवल रोमानटज्म हैहम वैश्विक नागरिक हैं। फिर अचानक उसने पूछा, आप कहाँ की हैं? मैंने कहा कि इण्डिया की, तो पूछने लगा, क्या आप स्वत्रता से खुश हैं? मैंरा जवाब था कि सौ फीसदी खुश हूँ, तो कहने लगा कि क्या आप नहीं सोचती कि ब्रिटिश शासन रहता तो देश ज्यादा तरक्की करता?
मैं उसे निराश नहीं करना चाहती थी, कि यदि ब्रिटिश शासन रहता तो हममे से अधिकतर आपके जैसे गाइड, बस ड्राइवर या क्लर्कं रहते, जो इंजीनियरों की खेप हमने बोई है, तैयार नहीं होती।
बाते करते हुए हम लोग नगर परिक्रमा पुरी कर चुके थे़ आज के दिन मैं स्ट्रीट वाक करना चाहती थी, तो होलीलीरुड वाली सड़क पर चलने लगी। एडिनबर्ग में हर इमारत कोई ना कोई महत्व रखती है। सड़कों पर मरम्मत का काम चल रहा था। सड़क पर चलना आसान नहीं था, साथ में कड़ाके की ठण्ड थी, बस में तो हवा से बचत हो जाती है लेकिन सड़के तो खाली होती है़ तो हवा का कोई रुकाव नहीं।
मैंने एडिनबरा आर्किटेक्टर कालेज देखा तो उसमें चली गई़ लेकिन यूरोपीय देशों में शिक्षण संस्थानों में बहुत चौकसी होती है, अनजान व्यक्ति को प्रवेश वर्जित है, तो मैं अहाते की कलाकृतियों को देख कर लौट आई, बाहर निकली तो एक ठेला देखा, जिस पर जर्मन के बर्गर का बोर्ड लगा था, एक हँसमुख नौजवान बकायदा बर्तन ठनठना कर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहा था, जैसा कि हमारे यहाँ पाव रोटी बेचने वाले ठलेवाले तवे कढ़ाई ठनठनाते हैं, मुझे देख कर उसने अंग्रेजी में कहा कि बहुत अच्छे बर्गर हैं, दाम भी ज्यादा नहीं, खा कर देखें। मै रुक कर देखने लगी़ । अपने पेट की स्थिति देख कर मांसाहारी भोजन से बच रही थी। उसने मुझे असमंजस में देख कर कहा, एक ट्राई करो, अच्छा लगेगा़ मै लालायित हो गई, बड़ा लालच उसके बारे में जानने का भी था। मैंने पूछा कि स्काटी हो क्या तो कहने लगा, नहीं जर्मन का हूँ,
तो फिर यहाँ क्या कर रहे हो,
तो बोला कि मैंने एम भी ए किया है एडिनबरा से ही, अब दो उपाय है, या तो पीएच डी करूं, या फिर अपना व्यापार शुरु करूं, तो यह मेरा व्यापार,,,
मैं दंग थी, कि एम बी ए कर के ठेला चलाने का व्यापार, वह कहने लगा, हाँ बहुत अच्छा है यह, ट्यूरिस्ट सीजन में पूरे साल की कमाई हो जाती है, मैं ये सास खुद जर्मन तरीके से बनाता हूं, सासेज जर्मनी से मंगवाता हूँ और लोगों को बेहद पसन्द आते हैं।
हो सकता है कि कुछ समय में मेरे पास अपनी दूकान हो, फिर अपनी फूड चेन
हो,,, हू नोस? उसने बड़े दार्शनिक होते हुए जवाब दिया।
हालांकि मैंने पूरे शहर में भारतीय नौजवान देखे जो मेक्डोनल या सब वे में पढ़ाई के साथ नौकरी भी करते हैं लेकिन एम बी ए ठेले वाले को पहली दफे देखा,,,,
मैंने कहा एक पोज , और वह बड़े शान से कमर पर हाथ रख कर खड़ा हो गया, मैंने उससे एक बर्गर पैक करवाया और आगे चल दी।
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