यात्रा -- 2
20 मार्च, 2013
आज तड़के ही
कमारथन के लिये गाड़ी पकड़नी है। कमारथन का विश्वविद्यालय वेल्स के प्रमुख विश्वविद्यालयों
में से एक है, और यहाँ मैना एल्फिन Menna Elfyn क्रिएटिव लिट्ररेचर विभाग की अध्यक्षा
है। मैना वैल्स की नामीगिरामी कवि हैं जिनकी पहचान पूरे विश्व में है। मैं उन्हीं से
मिलने निकली हूँ। ऐसे वक्त भारत अच्छा लगता है, घर से निकले नहीं कि रिक्षा आटो आदि
मिल गया। यात्रा अधिक मंहगी भी नहीं होती। यहाँ यरोप में बसों के किराये बेहद ज्यादा
हैं. टैक्सी के बारे में सोचना भी कठिन लगता है। बसों का फिक्स समय और दूोरी होती है,
छुट्टी के दिनों में तो शाम छह बजे के बाद बस मिलना मुश्किल हो जाता है। अब यहाँ घर
से बस लेकर रेलवे स्टेशन तक जाना था, फिर कहीं गाड़ी पकड़नी थी। रेलवे किराया यदि पहले
से बुक ना हो तो बहुत ज्यादा होता है, हमारे देश जैसे फिक्स नहीं होता। जब मैंने कमारथन
जाने वाली गाड़ी देखी तो आ गई, मात्र दो डिब्बे
की रेलगाड़ी। यूरोप में मैंने अन्य जगहों पर भी रेल यात्रा की है लेकिन इतनी
कभी नहीं देखी। निसन्देह साफ सुथरी थी, टिकिट
चैकर भी बेहद तमीजदार, शुक्रिया , कृपया के बिना कोई वाक्य नहीं.....
कार्डिफ से
कमारथन की यात्रा करीब तीन घण्टे की थी, चाय चाय, समोसा, भज्जी सुने बिना
रेल यात्रा हम भारतीयों को सूनी लगती
है। पिछले सालों करीब हर सप्ताह दो बार यात्रा करनी पड़ी थी, त्रिवेन्द्रम से कालडि
तक, सो रेल और स्टेशन की भीड़ भड़क्का जिन्दगी से काफी करीब से वाकिफ गई। इस यात्रा का सारा आनन्द खिड़की के बाहर था।
बिना रुकावट नजारों को देखते जाना, कहीं बर्फ तो कहीं धूप, कहीं लम्बे लम्बे चारागाह,
और खुबसूरत घर.... रेल का रुकना, चलना और हर स्टेशन के
अन्ततः कमारथन
आ पहुँचा,गाड़ी समय से कुछ पहले ही थीम। लेकिन मैना एल्फिन स्टेशन पर इंतजार कर रही
थी। Menna Elfyn में नन्ही बच्ची जैसी फुर्ती और सरलता है, हालांकि वे उम्र में साठ
ऊपर है।मैना कहती है कि हम सीधे विश्वविद्यालय चलते हैं, हालांकि मेरा भाषण शाम को
है, लेकिन दुपहर से पहले का वक्त कैसे बिताना है, सोचेंगे। हम लोग सीधे विश्वविद्यालय
जाते हैं, भव्य इमारत खूबसूरत परिसर, लेकिन बेहद शान्त, लगता है कि छात्र कहीं छिपे बैठे हैं। मैना का हैकमरा छोटा लेकिन
किताबों से लदालद भरा , अहाते साफ सुथरे और
पुस्तकालय आधुनिक है। मैना मुझे पुस्तकालय
ले जाती हैं, मैं कई किताबे खोल कर देखती हूँ, पत्रिकाएँ आदि सजी है। पुस्तकालय में
कुछ वक्त बिताने के बाद हम यूनीवर्सिटी के कैंटीन में आते हैं। मैना मुझे बाहर रैस्टोरेन्ट
ले जाना चाहती है, लेकिन मेरी इच्छा विश्वविद्यालय परखने की है इसलिये कैन्टीन चलने
की बात कहती हूँ। अभी अभी जरा सी धूप खिली है, मैं खुश हो जाती हूँ , लेकिन साथ ही सोचती हूँ कि कुछ दिनों पहले मैं केरल की कड़रकड़ाती धूप से परेशान
थी, और अब हालात ऐसे बदले कि अंजुरी भर धूप मन खिला रही है। कैन्टीन में कुछ छात्रा
दिखाई देते हैं, बेहद आत्मलीन से, चहचाहट से कोसो दूर, यह कैसा अनुशासन है, लेकिन तभी
कुछ आवाजे आई, छात्रों क एक समूह.. बाहर निकला, लेकिन रंग बता रहा था कि ये यूरोपीय
है, एक छात्र के माथे पर लम्बा वैष्णवी तिलक लगा था। मैना ने तुरन्त उन्हे रोक कर पूछा
कि वे कहाँ से आये हैं? जैसा मेरा अनुमान था, वे पाकिस्तान, बंगलादेश और भारत के छात्र
थे। तिलकधारी गुजरात के थे। मेनेजमेन्ट के छात्र थे, और लण्डन विश्वविद्यालय में पढ़
रहे थे। स्टडि टूर के तहत कमारथन विश्वविद्यालय आये थे।
कैन्टीन में
तकनीक का प्रयोग अच्छा था। धुली तश्तरियाँ आटोमेटिक चलन ट्रे के द्वारा बाहर आती जाती हैं और जूठी तश्तरियों को
दूसरी चलन ट्रे पर रख दिया जाता है। मैना मुझसे खाने की सामग्री पसन्द करने को कहती
है, मैं लैम्ब करि और चावल ले लेती हूँ, मैना
ने बेहद अल्प भोजन लिया है। खाने के वक्त हमारी कई लोगों से मुलाकात होती हैं, कुछ
भारतीय और श्री लंका मूल के अध्यापक भी मिलते हैं। वैल्श में अनेक भारतीय, श्रीलंकन महायुद्ध के वक्त से हैं, युद्ध के वक्त जांबाज सैनिकों को इंगलैण्ड
में रहने की छूट मिल गई थी तो अनेक लोग वहीं
बस गए थे। मैना बतलाती है कि पहले उनके पास सुविधाएँ कम थी, लेकिन अब वे यूरोपियों जैसे समृद्ध
हो चुके हैं और सरकार से अपने हक की लड़ाई भी
लड़ते हैं। मुझे एक महिला मिलती है जो व्हील चेयर पर
हैं, जब उन्हें पता चलता है कि मैं केरल से हूँ तो वे मिलना चाहती हैं, क्यों
कि वे माँ अमृता की भक्त है। वे अमृता के बारे में बात करना चाहती हैं, लेकिन मेरे
पास इस विषय पर कुछ ज्यादा कहने को है नहीं
है, ना मैं इस विषय में रुचि ले पाती हूं।
यू तो कामरथन
शहर वैल्स राज्य के प्राचीनतम शहरों में से एक है, लेकिन मुझे बेहद सूना लगता है, ना
ही सड़कों पर मीलों तक बस या कार की आवाजाही दिखाई देती है, ना ही बसों की, मैना प्रस्ताव
रखती है कि चलों शहर घूम कर आते हैं, मैं खुशी खुशी तैयार हो जाती हूँ, और उसे कहती हूँ कि मुझे यहाँ की भेड़
के ऊन से बना गरम कोट चाहिये, इण्डियन कोट में मेरी सर्दी रुक ही नहीं पा रही है। मैना
हँस कर कहती है कि .. हाँ तुम्हे देखते ही लगा कि तुम ठिठुर रही हो। मैना मुझे शहर
के केन्द्र में ले जाती है, जब, बाहर से सुनसान लगने वाला शहर यहाँ तो काफी चहक रहा
है। एक बेहद बड़े कम्पाउण्ड के भीतर अनेक दूकाने
थी। इसे बड़ी माल ही कह सकते हैं, लेकिन दूकाने
कुछ इस तरह थीं, जैसी हमारे यहाँ लाजपत नगर आदि शापिंग काम्पलेक्स में होती रही। मेरी आदत है कि मैं बाजार एक खास लक्ष्य लेकर
ही जाती हूँ, व्यर्थ में मंडराना मुझे थका देता है। मैंने मैना से माल कल्चर के बारे
में पूछा, तो कहने लगीं कि हाँ ये नया कल्चर लोगों की जेब पर ज्यादा बोझ डाल रहा है़
वेल्श लोग स्वभाव से कम फैशन वाले होते हैं और बेहद शान्त जीवन पसन्द करते हैं। फ्रान्सीसी और रोमन तो प्राचीततम काल से वेशभूषा के प्रति सजग थे, ब्रिटेनो में अंग्रेजो ने रोमनों से यह
कला सीखी, लेकिन वैल्श ज्यादातर सरल लोग हैं, वैसे भी वैल्स में कोयला खान ज्यादा होने
के कारण लोग उसमें काम करते थे, तो जीवन शैली के बारे में सहज रहना आसान था, लेकिन
माल संस्कृति लोगों की जेबें ढीली कर रही है। हम दूकाने दर दूकाने घूमते रहे, लेकिन
सर्द जाड़े के कपड़े दूकानों से गायब थे, दूकाने देख कर लग था कि गर्मी आ गई, जब कि कड़ाके
की ठण्ड थी।
मैना कहती है
कि शादी का सीजन आ गया है, युवा लोग मौसम नहीं फैशन देखते हैं, तो कितनी भी ठण्ड हो,
वे ऐसे ही कपड़े पहन कर जायेंगे...
वैसे भी आजकल
कपड़े छरहरे लोगों के लियेही बनते हैं, मेरे आकार के नहीं, मैं थोड़ी निराश होती हूँ
तो मैना कहती है कि कोई बात नहीं, यहाँ कोट नहीं मिलेगा तो हम पारम्परिक दूकानों में
जायेंगे...
यह हमारी आखिरी
दूकान थी, जिसमें कुछ उम्मीद थी, और यहाँ मुझे दूकान के आखिरी छोर पर भेड़ की ऊन से
बना एक काला कोट दिख ही जाता है, जिसका माप भी सही था।
मैंना को भी
एक स्वेटर मिल गया। अब हम लोग रात के खाने
का कुछ सामान खरीद कर यूनीवर्सिटी वपिस आते है। मैं तुरन्त अपने को काले कोट के हवाले कर देती हुँ। मैना के साथी मुझे
वह पोस्टर ला कर देते हैं, जो उन्होंने विभाग की के लिये बनाया था। मैना कहती है कि हम लोग भाषण में भीड़ पसन्द
नहीं करते, इसलिये पोस्टर केवल विभाग में लगाते हैं, मैं बस मुस्कुरा देती हूँ, क्यों
कि हम तो भीड़ संस्कृति के लोग है, किसी भी कार्यक्रम की सफलता भीड़ से मापते हैं।
अब मीटिंग का
वक्त आ गया, अब तक मैंने यह निश्चित नहीं था
कि बोलना क्या हैं, मेरे पास बोलने के लिये एक घण्टे से ऊपर का वक्त था, मेरे लिये
वाचनक्रिया लेखन क्रिया की अपेक्षा सहज है।
मैंने निश्चय
किया कि मैं कुछ कला और कविता की वर्तमान वैश्विक स्थिति और कुछ अनुवाद बात करूंगी,
क्यों कि मैं फिलहाल मैना की कविताओं का अनुवाद भी कर रही हूँ। अपनी कुछ कविताएँ तो
पढ़नी ही थीं।
छोटे से कमरे
में चलने वाली मीटिंग काफी अच्छी चली, सवाल जवाब भी हुए, ना कोई चाय आई, ना ही बिस्कुट,
बस एक फोटोग्राफर था, जो विश्वविद्यालय की तरफ से नियुक्त था। मुझे याद आया कि कृत्या
उत्सव में हमने शाम को खाली चाय दी तो एक बड़े
कवि की शिकायत थी कि चाय के साथ बिस्कुट तक नहीं थे, कविता कितनी थी, इससे उन्हें मतलब नहीं था।
मैंने कविताएँ
हिन्दी में पढ़ी और मैना ने अंग्रेजी अनुवाद पढ़ा, मुझे अच्छा लगा जब उन्होंने भारतीय
कविता और उसके पाठन की विधि के बारे में सवाल किये। यूरोप में कविता के साथ संगीत का
काफी महत्व है, हमारे देश में भी मलयालम कविता में भी संगीत का महत्व था, लेकिन मुख्यधारा
से जुड़ने के मोह ने गद्य का प्रवेश करवा दिया। निसन्देह विचारात्मकता तो रेखांकित हुई,
लेकिन गैयता को धक्का लगा। यही स्थिति वैल्स की रही है, यहाँ संगीत और कविता का नाता
रहा है, लेकिन यूरोप अपने भूत को कम ही नकारता है।
काफी लम्बा
सैशन था, लेकिन अच्छा लगा, सवाल जवाब भी हुए, हँसने का मौका भी मिला। सैशन के बाद कुछ पुस्तकें भी बिकीं, लेकिन
अच्छा लगा जब फोटोग्राफर ने कहा कि वह अलग से कुछ फोटो लेना चाहता है... शाम गहराने
लगी, और हम दोनों घर लौट आये, मैना बता रही थी कि वैल्श लोगों के जीवन में परिवार की
अहम भुमिका रहती है, वह सप्ताह में दो दिन अपने नातियों की बेबी सिट करती है, जिससे
उनकी बेटी अपना काम कर सके, मैंना की बेटी भी लेखिका और गायिका है, फिल्मों में भी
काम करती है़ जी हाँ वैल्श भाषा में भी फिल्में बनती हैं, और लोग देखते हैं। मैना के
पति सरकारी अधिकारी और वकील हैं जो राजधानी कार्डिफ में रहते हैं इस वक्त तीन मंजिला
घर में मैना अकेले ही रहती है। मैंने हँस कर कहा कि मैना और मैं एक सा जीवन जी रहे हैं।
यूरोपीय अपने घरों को बहुत सजा कर रखते हैं, प्रकृति की कठोरता
उन्हें घर के निकट करती है, मैंना का घर भी
काफी अच्छी तरह से सजा था, लेकिन अपने व्यस्त कार्यक्रम के चलते वे उसे सहेज नहीं पा
रहीं थी, लाइब्रेरी, पठन कक्ष, बैठक, रसोई और बच्चों के कमरे, यूरोपीय मापदण्ड में
इसे हवेली माना जा सकता है, मैंना बताती हैं कि घर बनाते वक्त बच्चे छोटे थे, तो घर
भरा भरा लगता था, लेकिन अब सब अपने घर जा चुके हैं, तो अब लगता है कि फ्लैट में जाना
पड़ेगा। फ्लैट संस्कृति पूरी दुनिया में हावी हो रही है। मैना के घर में हर जगह चीनी
मिट्टी की केतलियाँ सजावटी सामान की तरह रखी हुई थीं। मैना कुछ असहज है, वह बाहर खाना
खिलना चाहती है, लेकिन मैं घर में ही कुछ साधारण खाने के पक्ष में हूँ, हम लोग चाय पीते हुए बाते करते हैं, मैना वैल्श लोगों के भाषा
आन्दोलन से जुड़ी रही है, वे कहती हैं कि हमने
भाषा को अपनी अस्मिता से जोड़ा। मैना की कई कविताएँ जेल के केदियों के बारे में हैं.
जिनसेस वे अपने जेलवास के दौरान मिली थीं।
मैना ने साहित्य के साथ साथ समाज के अराजक माने जाने लोगों के अध्ययन से समन्धी शोध
भी किया है, विशेष रूप से किशोर क्रिमिनल के
बारे में लम्बे शोध का हिस्सा रहीं, वे बताती हैं दुष्कर से दुष्कर व्यक्तित्व के भीतर
कलाकार मन अवश्य रहता है, मैना ने शोध के सिलसिले में एक ऐसे किशोर के साथ काफी वक्त
बिताया जिसे होपलेस केस मान लिया गया था, लेकिन जब उस किशोर के सामने पियानों आता तो
वह पूरा देवदुत लगने लगता था। मैना अपने भाषा आन्दोलन के बारे में बताती हैं कि आन्दोलन
गुरिल्ला रीति से शुरु किया गया था, जिससे युवाओं को खुब मजा आया था। हम लोग रात को
चुपचाप सारे अंग्रेजी बोर्डो पर स्याही पोत आते, और वैल्श भाषा में लिख आते, सुबह सरकारी
कर्मचारी सफाई कर अंग्रेजी में लिखते, जेल भरों आन्दोलन हुआ, हम लोगों के लिये जेल
जाना पिकनिक जाने जैसा था। लेकिन जेल ने मैना को अनेक पात्रों को नजदीक से देखने का
मौका दे दिया। मैना बताती हैं कि हमने गाँधी के अंहिसा सिद्धान्त का पालन किया था।
निसन्देह इस अहिंसा आन्दोलन का फायदा भी हुआ, और वैल्स की भाषा को मान्यता मिल गई,
अब वैल्श भाषा का अपना बीबीसी है, सरकारी कामकाज में यह भाषा प्रयोग में लायी जाती
है और बच्चों को भी वैल्श भाषा की जानकारी दी जाती है। मैना की शिक्षा वैल्श माध्यम
में हुई थी, लेकिन बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा मिली, फिर भी उनकी बेटी और
बेटा वैल्श भाषा में लिखते हैं। मैंना के पिता चैपल मे मिनिस्टर यानी कि पादरी थे,
और माँ पारम्परिक गृहिणी, इसलिये मैना के जीवन में सामाजिक अच्छाइयों के प्रति जागरुकता
स्वभाव से है।
वैल्श समाज
के बारे में बात करते हुए वे बताती हैं कि स्वभाव से वैल्श लोग हँसमुख और सामाजिक होते
हैं, लेकिन उनकी बाडी लैंग्वेज पारम्परिक है, यानि कि चुम्बन या गले मिलने की बजाय
वे बस हय्या कहना पसन्द करते हैं, जबकि इंगलिश लोग बात कम करते हैं, मुस्कुराते भी
काम भर का लेकिन चुम्बन और गले मिलना आवश्यक समझते हैं, मैं अधिकतर दौरे पर रहती हूँ,
तो कभी कभी भूल जाती हूँ, किसी से अनायास गले
मिलती हूँ तो वे पूछते हैं कि इंग्लैण्ड से लौटीआफि हो क्या?
यहाँ वैवाहिक
परम्परा आज भी जीवित है, और तलाक समाज में पसन्द नहीं किया जाता, जीवन भर विवाह निभाना
सामाजिक आचार है, लेकिन अब यह आचार टूट रहा है। विवाह लड़के लड़की की पसन्द से होते हैं
लेकिन नौकरी पेशे को खास महत्व नहीं दिया जाता। कई कम पढ़े लिखे युवकों की शिक्षित लड़कियों
से शादी हुई है। लेकिन गाँवों और खदान इलाकों में वाइफ बीटिंग भी काफी चलती है, कभी
कभार महिलाएँ भाग कर किसी हेल्प लाइन का सहारा लेती हैं, लेकिन जब पति रोता गिड़गिड़ाता
है, बच्चों का वास्ता देता है तो वापिस पुरानी जिन्दगी में लौट जाती हैं। लेकिन ये
ही महिलाएँ वेल्स की स्वत्रन्त्रता का अहम हिस्सा रही हैं, वैल्स में स्वास्थ्य सहायता,
सर्वशिक्षा अभियान में स्त्रियों ने विशेष योगदान दिया। शिक्षा के क्षेत्र ीमें भी
महिलाएँ आगे रही है, इतिहास में भी कई उदाहरण हैं, जैसे Frances M organ ब्रिटेन की
दूसरी महिला थी, जिन्होंने १८७० में मेडिकल साइंस में ग्रेजुएट किया। Elizabeth
Hughes cambrige Traning college की पहली प्रिंसीपल थीं। उन्नीसवीं सदी में वेल्स कि
कोयना उत्पादन फल फूल रहा था, इसलिये दूसरे देशों से भी खदान मजदूरों का आगमन शुरु
हो गया। कोयले और लोह के निर्यात के कारण रेल और जहाज सेवाओं का विस्तार हुआ तो महिलाओं
को कुछ ज्यादा स्वतंत्रता मिली। लेकिन वेल्स राज्य को अपनी मूलभूत सेवा के लिये काफी
संघर्ष करना पड़ा, लेकिन आज यहाँ स्वास्थ्य सेवाएँ निशुल्क है, और व्यायाम , शिक्षा
आदि पर भी खास ध्यान दिया जाता है. सरकारी स्कूलों में शिक्षा निशुल्क है, लेकिन नर्सरी
के नाम पर जो प्राइवेट स्कूलों की खेप बढ़ी है, वह जम कर पैसा बनाती है। कोयला खदान
समय में प्रिन्टिंग पब्लिशिंग आदि का चलन बढ़ा, लोगों ने बच्चों को वेल्स नाम देने शुरु
कर दिये। वेल्स का राष्ट्रीय गीत और झण्डा आदि भी इसी कल की देन है। वेल्स रग्बी में
का प्रचलन भी बढ़ा और वेल्स टीम के लिये इंग्लैण्ड टीम को हराना गौरव की बात बन गई।
लेकिन वेल्स चेपलों में केथोलिक कट्टरता के स्थान पर लोकधर्मिता हावी थी, जो इंग्लैण्ड
की चिन्ता का विषय बनी। जब प्रथम विश्वयुद्ध शुरु हुआ तो वेल्श फ्रन्ट लाइनर थे, इसलिये
कई जाने गई, और जीवन में अस्तव्यस्तता आई, तो स्त्रियाँ से बाहर निकली, पढ़ाई कर के
नर्स, ड्राइविंग, पोस्ट आफिस यहाँ तक महिला सेना में काम करने लगीं। युद्ध के उपरान्त
दूसरी समस्या यह आई कि व्यापार क्षेन्त्र में मन्दी छा गई, जिसका असर कोयले की खदानों
पर भी पड़ा। वैश्विक मन्दी ने कोयले की खदानों के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया, धार्मिक
हिंसा और महामारी भी खतरा बनी हुई थी। यह वक्त वेल्श भाषा के लिये भी नुक्सानदायक
साबित हुआ, क्यों कि मन्दी की मार के कारण लोगों का पलायन बढ़ा और बाहर जाने के लिये
अंग्रेजी की अनिवार्यता महसूस की जने लगी।हालांकि वेल्श साहित्य में नई कविता की शुरुआत
१९०० से ही हो गई थी। दूसरे विश्वयुद्ध के वक्त वेल्श लोगो के जीवन में और परेशानियाँ
लाया। बच्चे स्कूल छोड़ कर गाँवों में पलायन कर गए औरत और मर्द दोनों को खदानों , जमीन
खुदाई और सेना में काम करनापड़ा। बच्चे ब्लूबेरी और रोसबेरी तोड़ कर ब्रिटिश सेना के
लिये जाम आदि बनाने में लग गए। युद्ध के उपरान्त हजारों की संख्या में पोलिश शरणार्थी
आ कर बस गए। १९४५ में वैल्स में पुनःपरिवर्तन की आँधी आई, १९५१ में कार्डिफ को सरकारी
तौर पर वेल्स की राजधानी का दर्जा मिल गया। वेल्स राजनितिक तौर पर भी सक्रिय हो गया।
यहाँ से वेल्स भाषा को भी राजनैतिक तरीके से लड़ाई लरनी पड़ी। १९७९ में तो इंगलैण्ड की
महारानी ने वेल्स भाषा के लिये अलग बी बी सी चैनल बनाने की घोषणा कर दी, लेकिन मार्गगेट
थैचर की सरकार इस बात को निबाहने को तैयार नहीं थी। तब वेल्स भाषा सोसाइटी के सदस्यों
ने सालों लड़ाई लड़ी। Gwynfor Evans ने माँग पूरी ना होने पर आमरण अनशन की ठानी। सरकार
को माँग माननी पड़ी, क्यों कि उन्हें डर था कि भाषा का मसला वेल्स को जला देगा तो १९८२
में कुछ वेल्स चेनाल शुरु कर दिये गये। १९८४ में कोयला खदान के मजदूरों की हड़ताल शुरु
हुई तो थैचर ने कई खदानें बन्द करवा दीं, संभवतया उन्हें भय था कि इस तरह वेल्श लोग
स्वतन्त्र होते जायेंगे। वेल्स की कोयला खदानें सदियों पुरानी है, उनके बन्द होने से
हजारों लोगों की नौकरी चली गई। आज वेल्स के पास बस एक चालू खदान है, अरबों की सम्पत्ती
जमीन में पुनः दफ्न हो गई। मैना बता रही थी कि कई मजदूरों की पत्नियों ने घर चलाने
के लिए पढ़ाई की और स्कूलों कालेजों में नौकरियाँ की। क्यों कि उनके पति अवसाद के कारण
नशे में डूब गये। आज भी कई घाटी के कस्बाई घरों में मर्द घर में बैठा है, पत्नी पढ़
लिख कर नौकरी कर रही है।
कोयला हड़ताल
को करीब करीब मुम्बई कपड़ा मिल की हड़ताल की तरह दबा दिया गया था, और जैसे कि इस विषय
को हिन्दी फिल्म का मुद्दा बनाया गया उसी तरह वेल्स की कई फिल्मों की कहानी कोयला दमन
पर आधारित है।
यही कारण है
कि मार्गरेट थैचर को वैल्श लोग कभी पसन्द नहीं कर पाये।
मैना के पास
अनेक कहानियाँ है, वह बताती है कि किस तरह वह वियतनाम डाक्यूमेन्ट्री बनाने गई, और
किस तरह गुरिल्ला युद्ध के लिये बनाई गई सुरंगों में फँस गई। मैना की खासियत है कि
वह जीवन जुड़ी हर कथा को कविता मे अनुदित कर देती है।
हम नीन्द आने
तक बाते करते रहते हैं,
दूसरे दिन मैं
नाश्ते के बाद टीफी झील के किनारे घूमने निकल जाती हूँ, मैना के घर के एक सामने यह
खुबसूरत वादी है, इस वादी की खुबसूरती अनुपम है इसे बस महसूस किया जा सकता है, एक पावन
अनुभव, शब्द से परे
वापिस लौट कर
हम पुनः अनुवाद और कविता पर चर्चा करते हैं, और दिन के भोजन के बाद लांग ड्राइव पर
निकल जाते हैं। दोनो तरफ चरागाह, और उनमें चरती भेड़े, बतखें...... कहीं कहीं पर घोड़े
भी दिखाई देते हैं, लेकिन सड़क पर भीड़ ना के बराबर है। मैना बताती है कि कमारथन यूनिवर्सिटी
में अमेरिकन छात्र भी काफी संख्या में आते हैं, लेकिन मन्दी के इस दौर में विदेशी छात्रों
की संख्या कम हो गई है। बसो की आवाजाही ना के बराबर थी, छात्र कैसे काम चलाते होंगे,
सबके लिये कार खरीदना संभव भी नहीं है। मेना कहती है कि हाँ यही समस्या है, यहाँ अपनी
गाड़ी ना हो तो यातायात कठिन है, मैं सड़कों पर बेहद बूढ़ों को भी कार चलाते देखती हूँ....
लेकिन आसपास का वातावरण इतना खुबसूरत है कि हम प्रकृति पान कर रहे थे
हम पुनः कमारथन
विश्वविद्यालय के दुसरे खण्ड में आ पहुँचते है, यहाँ नयी और पुरानी इमारते साथ साथ
है, चर्च जैसी भव्य इमारत देखने योग्य है.
वेल्स भाषा
के लेखक , जिनका नाम मैं भूल रही हूँ, लेखन वर्कशाप चला रहे हैं, वे पहले अपनी बाल कथा साहित्य की किताब पढ़ते है, फिर सबकों एक एक
चिट दे कर चिट पर लिखे वाक्य को आधार बना कर कुछ लिखने को कहते हैं। दरअसल यह क्रिया
अंग्रेजी के छात्रों को वेल्श भाषा के साहित्य से जोड़ने का उपक्रम है। मेरी लौटने का
वक्त करीब आता है.....
मैना और मैं
दो दिनों से इतना साथ है कि छूटने का दुख होता है....
मैं पुनः कार्डिफ
की ओर चल पड़ती हूँ....
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