Wednesday, November 23, 2016

अस्मिता की लड़ाई और भाषाई भूमिका, वैल्श से ज्यादा कौन सिखा सकता है।





12,मार्च 2913, मै लण्डन होते हुए कार्डिफ आ पहुँची हूं, कार्डिफ जो कि वैल्श की राजधानी है, और वैल्श वह एक मात्र राज्य जो आज के युग में भी, अंग्रेजी के  एकदम करीब  होते हुए भी अपनी  भाषा को दृढ़ता से सम्भाले हुए है।
यूरोपीय प्रान्त वैसे भी खूबसूरत होते हैं, लेकिन मुझ भीड़भड़क्के के आदि को सोये सोये लगते हैं।
कार्डिफ कुछ अलग सा लगता है, यहाँ लोगों के चेहरों पर मुस्कान दिखाई देती है। हवाई अड्डे से बस की यात्रा बेहद आरामदायक रही। बस बेहद आरामदायक है, और हवाई यात्रा की तरह सुरक्षा आदि के प्रति सजग है। बिना बेल्ट  लगाये बस में बैठना  मना है। बस के भीतर ही हवाई जहाज के तर्ज पर शौचालय भी।
शहर में प्रवेश रात के वक्त होता है, यह यूरोप है अमेरिका नहीं। दूकानें छह बजे ही बन्द हो जाती हैं। शाम का वक्त मात्र उनका होता है जो पबों में जाकर आनन्द उठाना चाहते हों। 
इस वर्ष पिछले ७८ वर्षों का रिकार्ड टूट गया है सर्दी में। बस के भीतर या घर के भीतर सब ठीक है, लेकिन बाहर निकलते ही सर्द हवाएँ बर्छी सी  चुभती हैं। मैंने सालों से सर्दी का मजा ही नहीं लिया, और अब सर्दी वास्ता पड़ा तो इतना जबरदस्त।
फिर भी मैं घर से बाहर निकलना चाहती हूँ, और करीब के पहाड़ों को देखना चाहती हूँ।



मुझे पता नहीं कि कितने देशों में पब्लिक  लाइब्रेरी लोगों के लिये मुफ्त में किताबें देती है, मैंने पढ़ाई के दिनों में भी किताबों के बीच से पन्ने गायब देखें है, लेकिन यहाँ पब्लिक लाइब्रेरी है, बेहद साफ सुथरी, सुन्दर जिसमें बच्चों के लिये अलग विभाग है। मैं लाइब्रेरी में घूम घूम कर किताबें देखती हूँ। अधिकतर कहानी और उपन्यास हैं, लेकिन वैल्श के इतिहास और नगरों के इतिहास और संस्कृति की जानकारी वाली किताबों की भी कमी नहीं....
पुस्तकालय का इंतजाम सरकार की जिम्मेदारी होती है, और उसके नियमों का पालन जनता की। यह काम कार्डिफ में दिखाई दे रहा है। काश हमारे देश के सार्वजनिक पुस्तकालय भी इसी तरह देखे रखे जाते।
करीब ही जिम है, यह भी सरकारी है। बेहद मामूली सी फीस दे कर इसका लाभ उठाया जा सकता है। मैं जिम के भीतर देखती हूँ, हमारे देश के पाँच सितारा जिम की तरह बेहद साफ सुथरी और सुन्दर जिम है, जिसमें हर आयु वर्ग  लोग व्यायाम कर रहे हैं। स्वास्थ्य लोगों का ही नहीं देश का भी धन है, और इसके प्रति इतनी जागरुकता समझी जा सकती है। एक बात खलती है कि यहाँ भी अमेरिकन फूड एजेन्सियों ने पाँव जमा लिये है, मैक्डोनल , सब वे कोस्टा  पाँव जमाये बैठे हैं।

मैं ठण्डी हवाओं की चुभन बर्दाश्त नहीं कर पा रही हूँ। देश से लाये दो स्वेटर और और एक चेस्टर हवा को रोक नहीं पा रहे हैं, उंगलियाँ सुन्न हो रही है, मैं करीब के माल में घुस कर कुछ गरम कपड़े तलाशती हूँ, लेकिन  वाह भाई वाह , दूकानदारी के नियम के अनुसार बसन्त आ गया गया है तो सारे कपड़े बसन्तकालीन है..... बस एक ही तरीका है बस का इंतजार कर सीधे घर जाऊँ....

यूरोपीय बसे गर्म और आरामदायक हैं, छात्रों और वृद्धों के अलावा मैंने किसी को देखा नहीं, बस में घुसते ही ड्राइवर हय्या यानी कि हाय कहता है, कण्डक्टर की जरूरत नहीं, घुसते ही पैसा दीजिये, टिकिट लिजिये और उतरते  वक्त ड्राइवर को धन्य
वाद देना ना भूले, नहीं तो बदतमीजी समझी जायेगी। इन साम्राज्यवादी देशों में श्रम की महत्ता जिस तरह से आँकी जाती है, साम्यवादियों के लिये सीखने की चीज है। लम्बी रूट की बसों में ड्राइवर ही सामान डिक्की के भीतर भी रखता है ।

लेकिन किराया.... इतना ऊँचा कि यदि सर्दी कम होती तो मैं पैदल चलना बेहतर समझती, सोचिये कि कुछ किलोमीटर के लिये चार पौण्ड यानी कि रुपये देना पड़े तो हम भारतीय बस में जायेंगे, यहाँ तो महिने भर की गैस का  सिलेण्डर ४०० से ८०० हो जाये तो हाय तौबा मच जाये। 
मैं अपने दीमाग को समझाती हूँ, भई एक पौण्ड को एक रुप्पया ही समझो, यह क्या झट से गुणा भाग में लग  डरा देते हो। बस यह तरीका कुछ कामगार लगता है।

बस  से दिखते घर, बाजार आदि, ना जाने कैसे एक स्ट्रीट के सभी घरों का चेहरा मोहरा एक सा क्यों है? लेकिन लगते कितने खूबसूरत हैं,,,,,, गुड़िया के घरों जैसे छोटे छोटे खूबसूरत..... इतना प्राकृतिक असन्तुलन भी इनके चेहरों को क्यों नहीं बिगाड़ पाता। इसलिये कि इनके वासी अपने देह वाद के प्रति सजग हैं, किसी भी इमारत का पुरानापन यहाँ महत्वपूर्ण माना जाता है, घरों को बाहर और भीतर से सजाये रखना जिन्दगी का चलन  है।
कहा जाता है कि 54 य 55 ईसा पूर्व ने रोमनों ने खास तौर से जूलियस सीजर ने एक ऐसे द्वीप का उल्लेख किया है, जो दूध औेर माँस पर निर्भर रहते हैं, खाल पहनते  हैं, और अपने चेहरे को नीले रंग से पोतते हैं। दरअसल अनाज औकाम वाद मन अपनी महानता को जताने के लिये अधिकतर यूरोपीय आदिवासियों को किसी ना किसी तरह निम्नतर बताने का काम  करते थे। रोमनों ने इन द्वीपों को लम्बे लाभ का विषय  बनाने के लिये यहाँ किले खड़े किये ार छिपी प्राकृतिक संपदा को पहचाना। रोमन आये, आदिवासियों को जंगलों में खदेड़ते हुए यहाँ की सम्पदा को हथियाने का कार्यक्रम बनाने लगे। उस वक्त इस द्वीप में प्रमुख रूप से तीन जनजातियाँ थीं, दक्षिण पूर्व में युद्ध प्रेमी Silures, दक्षिण पश्चिम  मेंस  शान्तिप्रिय Demetae, और मध्य और उत्तर में Deceangli और  cornovii . इनकी  भाषाएँ केल्टिक परिवार की थीं  रोमनों ने  सैनिक छावनियों के लिये किलों का निर्माण और लोह और कोयले आदि खनिजों कों ढ़ोकर अपने  देश ले जाने के लिये सड़के , पुल और बन्दरगाह बनाने शुरु किये। ब्रिटनों में से अधिकतर रोमन सेना के हिस्से  बन गये, कुछ ब्रिटन रोम में जाकर लेटिन आदि सीख कर अपने साथ ब्रिट्न भाषा के में  लेटिन शब्द ले आये,,,,
लेकिन वेल्श के आदिवासी अपनी केल्टिक भाषा से जुड़े  रहे और अपनी जीवन शैली में शान्तिप्रिय होने के कारण प्रकृति से जुड़े रहे। रोमनों का ध्यान मात्र  प्राकृतिक सम्पदा ढ़ो कर ले जाने में था। लेकिन जब रोमन का शासन सुस्त  पड़ा तो पुनः
कबिलों के योद्धाओं ने बागडोर सम्भाली।

वेल्स की अपनी कोई प्राकृतिक सीमारेखा नहीं थी, अतः वे ब्रिटनी कबिलों के द्वारा शासित किये जाते रहे, जब जर्मन भाषी सेक्सन ब्रिटनों मे राज्य करने आये तो उन्होंने इन शान्तिप्रिय आदिवासियों को वेल्श नाम से पुकारा, वेल्श का मतलब है.. अजीबोगरीब strangers हालांकि वेल्स के लोग अपने को ब्रिटन ही मानते रहे, लेकिन यह अजीबोगरब नाम वेल्श लोगों के साथ चिपक कर रह गया। आज भी ब्रिटेनवासी वेल्श लोगो को मसखरा, मुर्ख और आलसी मानते हैं, संभवतया उनके लोक से जुड़े जीवन के कारण। किसी वैल्श, से बात करना आसान हैं बनिस्पत कि अंग्रेज के। ये भारतीयों की तरह अपरिचितों को देख कर मुस्कुराते हैं, बातें भी करते हैं, और गले मिलना, सार्वजनिक चुम्बन आदि से परहेज करते हैं।

यूरोपीय देश भारतीय राज्यों की तरह हैं जिनका आपस में कोई ना कोई सम्बन्ध है। इसलिये इन्हें पूरी तरह से अलग करना कठिन ही है। आपसी युद्ध ‌और धार्मिक प्रभाव यूरोपीय देशों की गाथाओं में है, ब्रिटेन के क्षेत्र से ईसाईधर्म के प्रासार में भी लोकधर्मिता का प्रभाव पड़ा, जिससे एक ही धर्म के विविधता और स्थानीयता आ गई।  वेल्स के चर्चों में अन्य यूरोपीय चर्चों से भिन्न आाचार प्रचलित हुए। इसी जद्दोजहद के उपरान्त जो भाषाएँ निकल कर आईँ, वे थीं. Welsh. cornish और  Breton।वेल्स भाषा अपने मूल के काफी निकट थी। वेल्श  लोगों ने अपने लिये अपना नया नामकरण किया Cymry यानी की एक स्थान के लोग।
वेल्श राज्य अपने राजा थे, लेकिन अधिकतर उन्हें इंगलिश राजाओं के अधीन रहना पड़ा। वेल्श भाषा को आज यूरोप की प्राचीमनतम जीवित भाषा का दर्जा दिया जाता है, हालांकि कि समयानुसार इसमें अन्य यूरोपीय भाषाओं का प्रभाव पड़ता रहा। वेल्श का राजकीय इतिहास उठापटक का इतिहास रहा। कहा जाता है कि  वेल्स अंग्रेजों की  पहली कालोनी थी। लेकिन आज भी वैल्श भाषा विश्व की उन गिनी चुनी भाषाओं में मानी जाती है, जिनका उपयोग आधुनिक काल में बढ़ा है, घटा
नहीं, जिसने अपनी अस्मिता की लड़ाई भाषा को मुद्दा बना कर लड़ी है, जिसने अंग्रेजी के बगल में  रहते हुए उसे चुनौटी दी है। आज वैल्श में सोलह साल की आयु तक अपनी भाषा पढ़ना आवश्यक है, और आज वैल्श भाषा का साहित्य किसी भी साहित्य के टक्कर लेने को तैयार है।

यूरोप का करीब करीब पूरा इतिहास युद्ध लिखा गया है, और युद्ध की यादगारें हैं किले। बचपन चितौड़गढ़ के किले के नीचे पनपा, लेकिन उस वक्त यह किला स्वतन्त्रता और गरिमा की मिसाल लगता था सैनिक छावनी नहीं। चित्तौड़गढ़ का किला जहाँ महाराणा प्रताप के शौर्य को बखान करता था तो वही पद्मिनी के सौन्दर्य को भी। वहाँ मीरा के भजनों की लहरियाँ गूंजी  तो महान जौहर की राख भी  उड़ी। संभवतया किसानों को छोड़ कर सारा जनजीवन किले में समाहित लगा। लेकिन यहाँ के अधिकतर किले सैनिक छावनियों के प्रतिरूप रहे। जब रोमन आये तो उन्होने किले बनाये अपनी बची हुई सेना के लिये, पहले पहल किले लकड़ी के होते थे , लेकिन जब छुटपुट युद्धों के उपरान्त उन्हें जलाया जाने लगा तो पत्थर के बनाये जाने लगे। आरम्भ में ये मात्र सैनिक चौकी का काम करते थे। यानी कि जब किसी प्रदेश पर चढ़ाई की जाती तो एक सैन्य अधिकारी के साथ सैनिकों को किले में छोड़ दिया जाता, जिससे वे लगान वसूली के साथ साथ उस प्रदेश की सम्पदा को विजित शासक के पास पहुँचाते रहे। ये किले ही दमन के दर्शक होते थे, जहाँ अपने देश से बिछुड़े सैनिक अपनी दमित भावनाओं को दमन से जागृत करने की कोशिश करते रहते। जब कभी दमित जन भी इन किलों को जीतने की कोशिश में रहते। यानी कि ये किले भावनात्मक स्वतन्त्रता के प्रतीक थे। लेकिन शनैः शनैः किले शासकीय शान के प्रतीक बनते गये और शासक स्वयं अपन  प्रदेश में किले बनाने लगे। किलों का आरामगार के रूप में  उपयोग इसके बाद की स्थिति है जो आजतक जारी है। आज भी ब्रिट्रेन की महारानी वर्ष में दो महिने के लिये स्काटलैण्ड के किले में आराम करने जाती हैं।

 १९ मार्च २०१३
कार्डिफ में सबसे पहले मैं कैफिली किले ( Caerphilly Castle )  की सैर करने जाती हू। अब तो इसे सैर ही कहना चाहिये, नहीं तो जिस तरह की कठोरता इस भग्नावेश में दिखाई देती है, वह सैरगाह शब्द के लिये उचित नहीं दीखता। कफिली किला बूढ़े दैत्य की तरह है जो अपने टूटे दाँतों के बावजूद अपनी शान को रखे रहना चाहता है। अजीब सी ठण्ड है, सीलन भरी, कड़कड़ाती सूखी ठण्ड से तो निपटा जा सकता है, लेकिन ये बरसाती ठण्ड जान निकाल लेती है। टैक्सी हमें किले के पिछवाड़े छोड़ कर चली जाती है। Rhymney Valley की तलहटी में  Rhymney नदी से के करीब बने इस किले में घुसने से पहले अपने आप को तैयार करना बेहद कठिन काम लगा। नदी पर खूबसूरत बतखें तैर रही थी, चित्रलिखित सा चित्र, लेकिन चित्र सर्दी को नहीं दिखा सकता, और यहाँ दाँत क्या हाड़ भी कंपकंपा उठे। ये बतखे जैसे जीव तो मानों किले के सैनिकों की आत्माएँ हैं, क्वैक  क्वैक करती चली आ रही हैं, लगता है कि अब  चोंच मार कर हाथ का सामान छीन लेंगी, अपने मन्दिरवासी बन्दरों की तरह। किले की  गुम्बदों में से एक ऊपर से खुल कर काफी झुक गई है, जो अपने आप में अदभुत नजारा पेश करती है।
जब हम किलों की बात करते हैं तो उन शासकों की बात करते हैं, जिन्होंने इन्हें खड़ा किया, उन विजेताओं को याद करते हैं, जिनकें पास जीत का तमगा था। लेकिन उन मजदूरों की बात नहीं करते, जिन्होंने पत्थर तराशे, और मीनारों पर चढ़ाये। आम सैनिक और आमजन से तो दासों सा व्यवहार होता रहा होगा। बाद में मैंने स्काटलैण्ड के एक म्यूजियम में नोट पढ़ा था कि स्काटिश सैनिकों को पौशाक बनाने के लिये सालाना एक पौण्ड मिला करता था, जिसे भी नगर सेठ दिया करते थे। इससे वर्ष में एक पौशाक मुश्किल से बन पाती, अधिकतर कोट फटने के बाद कोटी बना ली जाती। स्थिति इतनी बदतर होती गई कि जब उनका अपना साथी युद्ध में धाराशाही होता तो अपने ही सैनिक जल्द से जल्द उसके कपड़े उतार साथी की  लाश नंगी छोड़ देते। तो सोचिये कि उन लोगों का क्या हाल होता होगा जिनसे बेगार लिया जाता है? निसन्देह इन किलों को बनाने के लिये स्थानीय बन्दी सैनिकों और आम जनों का सहयोग लिया जाता होगा, जो किले की किसी भी दीवार पर अंकित नहीं है।
हम लोग अपने को गर्माने के लिये सिटी सेन्टर की ओर जाते हैं, जहाँ पर पर्यटक केन्द्र है। यहाँ काफी चाय आदि के साथ पर्यटन सम्बन्धी सूचनाएँ भी प्राप्त की जाती हैं। गर्मी आते ही हम किले के मुख्य द्वार की ओर बढ़ते हैं। यह किला भी
Anglo-Norman शासक 1263, Gilbert de Clare, जिसे "Red Gibert" भी कहा जाता है , द्वारा बनवाया गया है। उसका प्रबल विरोधी अन्तिम वेल्श शासक  Llywelyn the Last था, जिसने वेल्श की  स्वतन्त्रता के लिये और बेहद मेहनत की।  Llweyln को इंगलैण्ड की  civil war का कारण भी माना जाता है।
30 एकड़ के भूभाग में फैले, अप्राकृतिक झील से घिरे किले की बाहरी दीवारें इतनीं मजबूत और ऊँची है कि यह सोचना भी कठिन लगता है कि तलवार भालों के युग में इस किले पर कोई चढ़ाई की बात भी सोच सकता है. लेकिन  Llywelyn और बागी स्थानियों के कारण यह किला पूर्ण सुरक्षित कभी नहीं रह पाया। इसके निमार्ण के दौरान ही इसकी प्रमुख भाग को  Llywelyn और बागियों द्वारा जला दिया गया था। बाद की सदियों में भी किले पर आक्रमण होते रहे, और आज यह जर्जर किला बूढ़े थके शेर की तरह दीखावटी वस्तु बन गया है, जिसके खूनी दीवारों पर सौन्दर्य और कला की बाते होती है।
किले के प्रमूख द्वार के बाहर कृत्रिम झील के ऊपर से दो पुल हैं, जो संमभवतया युद्ध के वक्त नष्ट कर दिये जाते होंगे। आयताकार किले की अभेद्य दीवारों को दुगुनी  सुरक्षा प्रदान करने के लिये पोल खड़े किये गये हैं जो भीतरी सैन्य चौकी का काम करते हैं। तहदार दीवारें, सुरक्षा छिद्र जिनमें से शत्रुओं पर गोले बरसाये जाते हैं, और रस्सी और चकरी का वैज्ञानिक उपयोग, जिससे किले के फाटक बन्द किये या खोले जा सकें।
किले का प्रमुख कक्ष great hall जो कभी चैपल भी रहा था, आज  भी आकर्षक है। इसमें बारहवीं सदी की भोज मेज और कुर्सियाँ लगी हैं, और दीवारों पर आयुध लगे हैं, आज कल विवाह आदि के लिये  किराये पर दिये जाते है। खूनी अक्षरों पर प्रेम के कितने आखर खुद पाते हैं, पता नहीं, लेकिन व्यापारीकरण का अच्छा नमूना है। मैं पोली दीवारों के भीतर की सीढ़ियों पर चढ़ती हूँ, डर सा लगता है, ना जाने कितनी आत्माएँ चुपकी पड़ी होंगी इन अंधेरी दीवारों में। ये सीढ़ियाँ पोल की ओर गुप्त मार्ग हैं, जो सैनिकों द्वारा उपयोग में लाये जाते होंगे। दूसरी तरफ की सीढ़ी घुमावदार रास्ते से पोल की छत पर चढ़ जाती हैं, मैं उस पर भी चलने का मन बनाती हूँ, आजकल मात्र यह पोल सुरक्षित माना जाता है। गोल गोल घूमते जब मैं ऊपर पहुँचती हूँ तो लगता है कि  नगर की  छत पर हूँ। पूरा नगर बेहद खुबसूरत दिखाई दे रहा है,..... पोल के ऊपर की खपरेले पत्थर की बनी लग रही हैं, टेरेकोटा का प्रचलन शायद बाद में आया होगा। छत पर मात्र एक परिवार है, पिता जो बढ़िया कैमरे से फोटो  में व्यस्त है, एक चार पाँच साल की लड़की लगातार रो रही है, और माँ समझ नहीं पा रही कि नजारे देखे या बच्ची को बहलाये। संभवतया बच्ची ऊँचाई से डर रही होगी, लेकिन पिता की एकाग्रता देखते बनती है। मैं गुम्बद की आखिरी सीढ़ियों तक पहुँचती हूँ, लेकिन तुरन्त उतरने का मन बना लेती हूँ,,,,,ये मोटी मोटी  दीवारें मुझे शासकों का नहीं दासों के दर्द से लिखी लकीरे लगती है, उनके दर्द को कितना सह सकती हूँ मैं?
एक पोल ऊपर से खिल कर एक तरफ झुक गया है, कहते हैं कि पीसा की इमारत से भी ज्यादा झुकाव है, इस खण्डित पोल का,,,,,, बाहर दालान में वे आयुध रखे हैं, जिनका यूरोपीयों ने उपयोग किया, सामान्य विज्ञान के सामान्य से  नियम चकरी, गिल्ली आदि से चलने वाली तोपें, और अन्य प्रपेक्षास्त्र  हैं, जिनका उपयोग किले के भीतर से पत्थर और तीर बरसाकर शत्रुओं से बचाव करना होता होगा।
यह पर्यटकों के लिये प्रिय समय नहीं है, अतः किला खासा भुतहा लग रहा है, दीवारें कितनी भी मोटी बना ली जाये, टूटती ही हैं, ऊँचाई कितनी भी उठा ली जाये गिरती जरूर है, कलरव को सन्नाटे में बदलता वक्त किले में थक  कर आराम करता सा जान पड़ रहा हैं, किला हवा को जरूर रोक रहा है, लेकिन सर्द स्मृतियों को नहीं।
किला अच्छा है, लेकिन उन यादों  के लिये खूबसूरत शब्द का प्रयोंग कैसे करूँ, जो खूनी दास्तान कहती हैं, शाम के साथ सर्द हवाएँ तेज हो जाती हैं,
हम पास की माल में घुस कर टैक्सी का इंतजार करते हैं,
लौटते वक्त मेरे झोली के सारे शब्द सन्नाये पड़े  हैं,,,,,,

क्रमशः



No comments:

Post a Comment