डाकाउ यातना घर #
डाकाउ यातना
घर के बाहर नोटिस पर लिखा है
कृपया कुत्ते
साथ ना ले जायें
और बच्चे भी,
लिखा तो यह
भी था कि
कृपया शोर ना
मचायें, जोर से ना हंसे
ऐसा कुछ ना
करें कि मृतकों की आत्मा को
कष्ट मिले,
लेकिन व्यक्तिगत
सामान वाली लाइब्रेरी में
कैदियों के
सामान में खूबसूरत प्रेमिकाओं की तस्वीरों के साथ
बच्चों और पालतू
कुत्तो की भी तस्वीरे हैं
मानों कि अभी
कोई ना कोई मृतात्मा बोल उठेगी
यदि कोई बच्चा
होता तो मौत की नाक पर उंगली रख कर हंस देता
और हंस देती
उसके साथ राख के बगीचे मे सोती मृतात्माएं
मृतकों की राख
को मैंने चित्तौड़ गड़ में देखा हैं
जहाँ सैंकड़ों
औरतों ने युद्ध में गए पुरुषों के पीछे आत्म जौहर किया था
और यहाँ , डाकाउ
में , जहाँ सैंकड़ों कैदियों को
गैस चैम्बरों
में जलाया गया
युद्ध मौत को
क्रूर बनाता है
हालांकि मौत
स्वयं में उतनी क्रूर भी नहीं है
चर्च के घन्टे
भी शान्त हैं, यहूदी पूजाघर बिल्कुल मौन है
आदमी किससे
भयभीत है?
वे निरीह आत्माएं
, जो देह के भीतर रहती हुई कुछ नहीं कर पाई
देह के राख
बनने पर इतनी भयदायिनी कैसे बन गई?
भय जरूरी है
अपने से
नाखूनों के
तीखेपन से
लेकिन सबसे
ज्यादा
दूसरों को दबाने
से मिलने वाले आनन्द से
मौत को अन्त
समझने की भूल से
पूरे कि पूरे
शहर के यातना घर में बदलने वाली तस्वीरों
शायद ज्यादा
गौर से देख पाऊँ
दुनिया के तमाम
अल्लेप्पों में मण्डराती रुहों से सम्वाद कर सकूँ
किसी भी यातना
गृह से गुजरना
और थोड़ा और
आदमी होने की कोशिश भी होती है
लेकिन क्या
आदमी को आदमी बनाने के लिए
यातना घर जरूरी
हैं?
और मेरी कविता
भी,,,,,
# म्यूनिख का
कुप्रसिद्ध कन्सर्ट्रेशन कैम्प
Dachau Concentration Camp Memorial Site
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