Thursday, October 4, 2018

wells of salt - sichuan - china



नमक , जिसे लवण कहा जाता है, हम उसका संबंध सौन्दर्य से  हैं , लावण्य में जो सौंदर्य है, वह पूर्ण मधुरिता में नहीं। बेहद मधुर भक्षण के उपरांत कुछ खट्टा या नमकीन खाना बेहद जरीरी हो जाता है. संभवतया इसीलिए हमारे देश के  कुछ प्रदेशों में भोजन का अंतिम पायदान नमक होता है, जैसे कि केरलीय भोजन के मध्य में  खीर परोसी जाती है, और भोजन का अंत नमकीन छाछ , या रसम से होता है। जोधपुर में अंतिम भोजन पापड़ होता है, मीठा सबसे पहले परोसा जाता है।
नमक का स्वाद काफी लम्बे वक्त तक जीभ पर बना रहता है, जबकि मधुर जरूरत से ज्यादा मधुर, कटु सा बन जाता है। यूरोपीय संस्कृति के प्रभाव से हमने भोजन के अंत में स्वीट डिश का उपयोग करना सीख लिया, जो हमारे एशियन स्वभाव के अनुरूप नहीं है।
नमक में सौंदर्य है, नमक में विश्वास भी है। सिकन्दर के देश, गेलगलिया, में कहा जाता है कि यहाँ उसकी पत्नी ने एक नगर बसाया था, आज भी नमक और रोटी से स्वागत किया जाता है। 2009 में जब मैं स्त्रुगा पोइट्री फेस्टीवल में भाग लेने मेडेलिन गई तो हमें बाद में गेलगेलिया ले जाया गया। जब हम होटल पहुँचे तो बाहर बेहद सुंदर लड़किया, थाली में ब्रेड और नमक लिए खड़ी थी, लड़कों के हाथ में जल था। हमें रोटी को पानी में भिगो कर नमक छुला कर भीतर आना था। मुझे  अचानक लगा कि नमक हलाल और नमक हराम का अर्थ खुल गया। यानी कि जिसने भी नमक खाया वह दुश्मनी नहीं कर सकता और कर लेता है तो वह नमक हलाल माना जाता है। अब नमक हलाली सिकंदर लाये या हमारे देश में पहले से मौजूद थी, लेकिन संस्कृत पुस्तकों में लावण्य तो है, नमक हलाली दिखाई नहीं देती।

नमक के दरोगा से लेकर नमक के लिए डांडी यात्रा हमारे जेहन में बसी हुई है, लेकिन मुझे नमक के कुओं की जो कहानी चीन के जिंगान जिले में मिली।  चीन में लगभग 2,250 साल पहले ही एक अभूतपूर्व तकनीक के सहारे कुंओं से नमक निकाला जाता रहा और देश विदेशों में निर्यात होता रहा। यह सोचने की बात है कि पुलि आदि इन तकनीकियों का विकास पश्चिम देशौं में चीन के इस अविष्कार के छह सौ साल बाद ही हुआ। और इसमें प्रयुक्त तकनीकि सामग्री बांस आदि से बनी होने के उपरांत भी पूर्णतया वैज्ञानिक है। यह बात अलग है कि यह सोच कब कैसे उपजी, उसके बारे में शोध  की जरूरत है।  लेकिन हम जानते हैं कि पहाड़ी इलाकों में नमक जितना जरूरी होता है, उतना ही दुर्लभ भी। लद्दाख जैसी जगहों में चाय में नमक डाला जाता है, जो संभवतया प्रकृति का सामना करने के लिए जरूरी होता होगा।

चीन का  सिचान Sichuan इलाका समंदर से दूर है, और पठार पर है, निसंदेह यहां नमक मिलना बेहद महत्वपूर्ण है। जिस किसी के कुए में यह पहला नमकीन पानी निकला होगा, और जिन जिन के दीमाग में नमक बनाने की बात आई होगी, और जिन जिन ने इस तकनीक को बनाने की कोशीश की, वे सब इतिहास के पन्नों से गायब है। लेकिन नमक के कुएं आज तक है। इन कुओं ने इस प्रांत की तकदीर बदल दी, देश विदेश से व्यापारी यहाँ आने लगे, नमक का व्यापार शुरु हुआ तो कामगार भी आने लगे, और प्रांत की तस्वीर ही बदल गई। ऐसा माना जाता है कि 1882 मे पहला कुआ खोजा गया था।

नमक के ये कुएं बहुत गहरे होते हैं, कुछ तो हजार मीटर गहरे तक। लेकिन उस काल के लोगों ने बेहद मजबूत तकनीक का अविष्कार किया, जो आज भी अद्भुद मानी जाती है। इसमें से नमक निकालने के लिए अनेक उपकरणौं की मदद ली जाती थी। ये पहले बांस के बने होते थे, फिर लोहे के बनने लगे। सभी तरह के यंत्र थे, जैसे कि नमक की गहराई पता लगाने का, या फिर मार्ग में कुछ रुकावट हो तो उसे दूर करने का, और नमक के पानी को खींचने के उपकरण।

नमक के कुएं पूरब के संस्कृति के विकास की गाथा कहते हैं, जिसे बाद के वर्षों में यूरोपीय जनों ने निम्नतर माना। निसन्देह इस तरह की तकनीक भारत में भी कहीं रही होगी, केरल में खेतों से नमकीन पानी निकालने वाले चक्र तो मिलते हैं, हमे उन्हे खोज निकालना चाहिए, और अपनी देसी तकनीक के विशेषताओं को विश्व पटल में लाना चाहिए।







Tuesday, September 11, 2018

A Caruna-(Spain)

I have witnessed exceptional love for language and community only among two language groups. One is Welsh the language of Wales, a small land bordering England but which still has managed to maintain a strong identity of its own; the other being Galician. Galician is spoken mainly in Galicia an autonomous community of northwestern Spain.
Yolanda runs a poetry reading session every second month with the help of the local Galician government in which she would invite one international poet and another of Galician Language. When I received an invitation for a poetry reading from her, little did I know about the rich heritage of the city and the language. I had met Yolanda Castano,  a Galician poet, in China but didn't have much opportunity for discussion. It was during the process of my visa application, which found to be quite difficult to be approved did I come to know more about the hardships Galician has to face being a minority language. But still, the Galician artists and literateurs were keeping up a good fight. After long persuasive letters by Yolanda to Spanish visa officers, I was finally granted the visa.
As I had traveled to A Coruña via London it took me a while to get my luggage. Coming out of the airport I found a tensed Yolanda waiting for me.
Embracing me with a sigh of relief she said: " I thought there was some new problem"...
"It was good that all problems happened before I came". I replied with a smile.
Yolanda's car was a small one splattered in pigeon shit and caked in dust.
Getting in she excused herself " Sorry my car is dirty". I laughed and said it really looks like a poet's car and the shit and the dirt shows the love between birds and trees...
Driving through the city, Yolanda explained to me its history. A Coruña was a  port city of the  Galician Kingdom. Being a prosperous business center it enjoyed an important place and it was also called 'the harbor of the brave'.After the civil war, the picture of the city changed. In place of beautiful old buildings, huge skyscrapers cropped up.
 " Rati, the first impression of a city should be so beautiful that you should see the most beautiful part of the city first. It's ok if you are tired after your long flight". Yolanda said.
I agreed with her without any hesitation although my journey was long and difficult and tiring. All I wanted was to forget everything and imbibe the poetic atmosphere.
Yolanda took me to a high place beside the seashore. From there the sea and the beach far away looked like a page from a fairy tale. The soft breeze couldn't ease the scorching heat. It was already half past eight. The sun had started its descent but the light still played hide and seek, painting the sea with blue, yellow and green colors. The new skyscrapers as symbols of modernity stood out like a sore thumb against the old city.
Yolanda explained to me that earlier the buildings were all painted white to keep the heat at bay. But after many wars and the civil war, the economic situation became so bad that the people went for the cheap multi-storeyed buildings which took a toll on the aesthetics of the city. From the distance, the  A Corona seemed like a toy city...
As I was a guest of the A corona municipality I was given a 5-star accommodation in the city center near the market and beautiful old buildings. Leaving me at the hotel Yolanda said " Tomorrow will be a day of surprises for you. I will be taking you to see some wonderful places. So be ready by 9 am tomorrow". The tiredness from the long travel with the comforts of my room, sleep didn't keep me waiting...

Friday, July 27, 2018

Juliya


सबसे पहले नाम बताऊं, या पहले उसका हुलिया? वह मेरे बराबर की सीट में बैठी थी, हालांकि अलग पंक्ति में थी, म्यूनिख में देखी गई उस उम्र की लड़कियों से कहीं अलग, फैशन से कहीं दूर, साधारण सा ट्रेक पेन्ट, और एक साधारण सी टी शर्ट। सादा सा चेहरा , बिखरे से बाल, लेकिन गहरी नीली आँखें, खासा जर्मन व्यक्तित्व। मेरी निगाह बीच बीच में उस पर जाती थी, मैंने देखा कि उसने एक बार भी मोबाइल नहीं पकड़ा, ना ही लेपटाप निकाला, स्क्रीन को खोला जरूर, लेकिन बस कार्टून लगा कर छोड़ दिया, बीच में उसने नन्ही सी डायरी निकाली जिस में कुछ पन्नों मे कुछ लिखा हुआ था, दूर से मुझे कविता का भी भ्रम हुआ।  फिर कुछ ऐसा हुआ कि मेरा जमाटर जूस गिर गया, तो वह नेपकिन लेकर जमीन पौँचने लगी, मैंने  उसकी तरफ मुस्कुरा कर देखा, फिर बातचीत का सिलसिला शुरु किया़ । मैंने पूछा कि क्या वह कविता लिखती है, उसने कहा, नहीं कविता तो नहीं, लेकिन डायरी जरूर लिखती हूँ, और ब्लाग भी, मेरी दोस्त मेरा लिखा पढ़ती है। फिर वह बताने लगी कि अभी उसने स्कूल पूरी की है, यूरोप में स्कूल लगभग भारतीय बी ए जितना होता है़। लेकिन आगे क्या करना है यह सोचने के लिए वह वक्त चाहती थी, तो वह विश्व भ्रमण के लिए निकली है।

अट्ठारह साल की लड़की अकेली विश्व भ्रमण के लिए निकली है, यह बात मेरे लिए नई तो नहीं, क्यों कि मैं पहले भी कुछ लड़कियों से मिल चुकी हूँ, लेकि आश्चर्य यह था कि वह अपने साथ पैसा भी नहीं लिए हुए है, उसका प्लान है कि वह जहाँ जाएगी, वहाँ पेट भरने और रात को सोने की जगह पाने भर को कुछ ना कुछ काम करेगी,  एक साल घूमने के बाद वह यह निश्चित करेगी कि वह आगे क्या करना चाहेगी।

उसके भ्रमण की सीमा में, श्री लंका, आस्ट्रेलिया, न्यूजिलेण्ड, ब्राजील, पेरु, पनामा, कनाडा और आइसलैण्ड होते हुए एक साल में अपने देश लौटेगी।

मैंने पूछा कि उसकी माँ की क्या प्रतिक्रिया थी, तो कहने लगी कि पिता तो खुश थे कि मैं कठिन निर्णय ले रही हूँ, लेकिन माँ जरा चिंन्तित थीं, लेकिन उन्होंने यहीं कहा कि ध्यान से रहना

मैंने कहा कि जूलिया, मै भी बस एक सलाह दूंगी कि ध्यान से रहना, लेकिन तुम भारत आये बिना विश्व भ्रमण करोंगी, अच्छा नहीं लग रहा है, तो कहने लगी कि भारत बहुत बड़ा जो है,

मुझे भारत ना आने का कारण मालूम ही था, क्यों कि जर्मनी में मुझ से अनेक बार पूछा गया था कि भारत में इतने रेप क्यों होते हैं, और मुझे उन्हें समझाने में वक्त लगता कि रेप भारति की संस्कृति नहीं, वैश्विक संस्कृति का ही एक भाग है, और उसके पीछे अनेक तरह की मानसिकताएं काम करती हैं, लेकिन रेप की घटनाए ज्यादा होते हुए भी स्थिति  ऐसी नहीं कि आप भारत में रह ही नहीं सकते।

खैर हम बात जूलिया की कर रहे हैं, ना जाने कितनी लड़कियाँ हमारे घरों से भि निकलना चाहती हैं, लेकिन कहाँ निकल पाती, विश्व भ्रमण का सपना तो किशोर युवकों का भी पूरा हो पाता है,
मैं वह यह चाह रही हूँ कि जूलिया की यात्रा सफल हो, और वह एक सही रास्ते में कदम रख सके

आमीन।

Villa Waldberta



उनसे मुलाकात भी एक अजब इत्तेफाक था, मैंने बस स्टेंड पर स्ट्रीट फेस्टीवल का नोटिस देखा, जो था तो जर्मन में, लेकिन कुछ अलग सा लगा, तो मैंने एक मैंने इन्टरनेट से  जानने का विचार किया, और पता चला कि म्यूनिख में एक खास तरह का फेस्टीवल होता है, जिसे स्ट्रीट फेस्टीवल होता है काफी कुछ हमारे पुराने जमाने के मेले ठेले सा।  Odeonplatza  के करीब सड़क को रोक कर Ludwig I !- street life festival मनाया जा रहा था। वहाँ तरह तरह के खेल तमाशे , नाच गाना, खाना पीना होता है। मैं पता लगा कर वहाँ पहुँच गई , ओर सच कहूँ मजा भी, शहर और गाँव दोनों मिल गया था। कहीं पर ग्रामीण वातावरण तो कहीं पर ठेठ पश्चिमी। मैं घूम रही थी, कि देखा कि एक टैण्ट में एक वृद्ध महिला मिट्टी गूंध रही थीं। मैं रुक कर देखने लगी तो उन्होंने मुस्कुरा कर मेरी तरफ देखा और कहने लगीं कि बच्चों ने मिट्टी से खेला तो यह जरा कड़ी हो गई, ठीक कर रही हूँ। फिर मुस्कुरा कर पूछने लगीं, तुम कुछ बनाना चाहोगी क्या?
मैं उनकी मुस्कान से इतनी आकर्षित हुई कि जाकर कर मेज पर बैठ गई़ हालांकि मुझे पाटरी का काम कुछ नहीं आता। मिट्टी बेहद चिकनी , खूबसूरत थी। वे कहने लगी कि ये मेरे बगीचे की है, जिस तरह जापानी लोग मिट्टी को सालों सालों तैयार करते हैं  वैसे ही मेरे बगीचे की मिट्टी सदियों पुरानी लगती है,

मुझे समझ नहीं आ रहा कि क्या बनाऊ, मुझे याद आया कि मेरे बचपन में शादी ब्याह में आटे के शिव पार्वती और गणेश बनाये जाते हैं, मुझे उस काम में बहुत मजा आता था, तो मैंने गणेश बनाना शुरु कर दिया, उसी अनघड़ तरीके से जिस तरीके से आटे के बनाये जाते थे। मिट्टी इतनी मुलायम थी कि मुझे लगा कि मेरे मन की सारी मलिनता मिट्टी की तरह मृदुल हो गई।

उन महिला का नाम Hennette Zilling था। उन्होंने मुझे अपना पता दिया और कहा कि महिने के अन्त में मेरे घर मे गाने का कार्यक्रम होने वाला है, चाहो तो आ सकती हो। मैंने पता ले लिया, लेकिन मैं जानती थी कि मुझे रास्ता समझ नहीं आयेगा, क्यों कि बस ट्राम आदि सभी जगह मात्र जर्मन में लिखा जाता है़।

खैर फिर उनका कलात्मकता से बना इन्विटीशन मिला तो सोचा कि कोशिश करने में क्या बुराई है, लेकिन पता चला कि कलाकार की मां की तबियत खराब हो गई तो कार्यक्रम स्थगित हो गया़ लेकिन हेनेत ने मुझे मेल भेजा कि यदि तुम चाहो तो हम नेशनल थियेटर के करीब मिल सकते हैं , तुम १९ नम्बर की ट्राम लेकिन आ जाओ। यह आसान था। जब मेरी ट्राम थियेटर बस स्टाप पर पहुंची तो वे सामने खड़ी थी़ । आज मैंने ध्यान दिया, वे सतर्क और सीधी खड़ी थी, चेहरे पर भर झुर्रियाँ लेकिन बेहद खूबसूरत मुस्कान, लेकिन चलने में बच्चो सी चपलता। खूबसूरत गोरा रंग, नीली आँखें, कुछ छोटा कद, पतली छरहरी। बेहद जर्मन व्यक्तित्व। उन्होंने मुझ से पूछा कि क्या देखना चाहती हो? नया म्यूनिख या पुराना? मैंने कहा कि मुझे पुराने में ज्यादा रुचि है। हम शहर के दिल में ही थे, और हर सड़क और हर गली कुछ कहानी कहती है। यह इलाका Graggenau ,कहलाता है़ वे मुझे गलियों में ले गई और हर गली और सड़क से जुड़ी कहानिया बताने लगीं, जैसे कि यह इमारत पहली  रेजिडेन्सी  थी,इस इमारत का इतना हिस्सा टूटा लेकिन इतना नहीं, वे बताने लगी कि पुरानी इमारतों मे कुछ नई खिड़कियाँ है कुछ पुरानी,,, और वे उनका अन्तर बताने लगी। वे मुझे बहुत पुरानी बेकरी में ले गई, जहाँ रोटी की आकृति की सूखी रोटिया सी थी, उन्होंने बताया कि ये पारम्परिक ब्रेड हैं, जिसमें ईस्ट नहीं होता है। उन्होंने तरह तरह की रोटियां खरीदीं।

मैं उनकी जिन्दगी के माध्यम से इतिहास को भी पढ़ना चाहती थी, मैंने पूछा कि आप कब से म्यूनिख में हैं, वे बताने लगी कि मैं दस साल की उम्र में म्यूनिख आ गई थी, उन्होंने कहा कि उनका जन्म कस्बें मे हुआ जिसका नाम था,  Bayreuth  , यह इलाका बावेरियन राज्या के उत्तर में था  king Friedrich II ofPreussen का एक खूबसूरत  Residenz है, और कस्बे के बीचोंबीच एक  औपरा हाउस भी था। एक बगीचा था करीब सौ साल पुराना, जिसका नाम था Eremitage.  जिसे  King Ludwig II of Bavaria ने बनवाया था।
 उनके पिता डाक्टर थे। युद्ध के बाद उनके पिता की अचानक मृत्यु हो गई तो मां ने म्यूनिख आने का सोचा, क्यों कि उनके माता पिता म्यूनिख में थे़। वे १९५३ में म्यूनिख आ गई थी, उस वक्त उनकी उम्र दस साल की थी, और जब वे दो साल की थी, पिता की मृत्यु हो गई थी। निसन्देह उनकी माँ ने काफी वक्त तक सम्भलने की कोशिश की होगी। मैं युद्ध की बात करने में हिचकिचा रही थी,क्यों कि जर्मन हिटलर के बारे में बात करना पसन्द नहीं करते। फिर भी मैंने पूछा कि क्या आपके मन में युद्ध की कुछ यादें हैं, तो वे बताने लगी कि मुझे बम गिरने की याद है, जब बम गिरते थे, तब हम सुरंगों में चले जाते थे, लेकिन तब हम एक शब्द भी नहीं बोलते थे, क्यों कि डर था कि कहीं कोई सुन तो नहीं रहा है।
उनके इस वाक्य ने ही मुझे आम जनता में तानाशह के भय की जानकारी दे दी।

बाद में हेनेत की माँ म्यूनिख में आकर स्कूल में अग्रेजी पढ़ाने लगी ।
मैंने पूछा कि काफी वक्त तक जर्मनी विभिन्न देशों के अधीन रहा, वह वक्त कैसा था, तो वे कहने लगी कि यह भावना ही कि कोई आप पर नजर रखे हैं, आसान नहीं होती है। बावेरियन इलाके में अमेरिकन सरकार का हस्तक्षेप था, तो हमें वह सब करना था, जो वे चाहते थे।
मैंने पूछा कि कैसे जर्मनों ने यह चमत्कार कर लिया कि वे यूरोप की सबसे बेहतर अर्थव्यवस्था वाला देश बन गया। वे कहने लगी, ये रास्ता बहुत लम्बा था, बहुत धीरे धीरे हुआ , लेकिन बड़ी मेहनत से हुआ़ हम सभी इसी में जुड़े।

हेनेत बड़ी खुबसूरत रही होंगी, तो मैंने पूछा कि क्या आपकी शादी हुई, वे कहने लगी कि नहीं, पता नहीं क्यों,पर शादी हुई नहीं। मैंने पढ़ा था कि युद्ध का  लोगों पर बहुत तरह से प्रभाव पड़ा़ ज्यादातर पुरुष मारे गए थे, अनेक बच्चे लावारिश थे, अनेक महिलाओं के रेप चाइल्ड थे। मैंने देखा  कि अनेक वृद्ध महिलाओं के पति अन्य  यूरोपियन देश के हैं।

हेनेत के कोई भाई बहन भी नहीं थे, तो निसन्देह माँ के बाद वे नितान्त अकेली हो गई होंगी, हालांकि उनके पास अपने दादा दादी की अच्छी स्मृतियाँ रहीं है।

हेनेत के सा्थ समस्या यह थी कि वे बीच बीच में जर्मन में बोलने लगती थीं, लेकिन मैं उन्हें बिल्कुल नहीं टोक रही थी।

वे नेशनल थियेटर, म्यूजियम आदि के बारे में जानकारी देती रही थी कि यहां पुराने जमाने में कलाकारों को रखा जाता था, या यहाँ मिनिस्टर रहते थे, आदि आदि, मेरे लिये इमारतों में भेद करना जरा कठिन ही था, इतनी इमारते, इतनी मूर्तियां और चौराहे कि सब कुछ गड्मड्ड हो रहा था।

अन्त में उन्होंने पूछा कि क्या मैं और घूमना चाहती हूँ या उनके घर चलना, मैंने कहा कि घर चलना चाहती हूं।

हेनेत का घर कलाकार का घर था, खूबसूरत सा घर और बेहद छोटा सा बगीचा। यह शहर के बीच ही था, और महत्वपूर्ण इलाका लग रहा था। हेनेत ने बताया कि उन्होंने यह मकान बेच दिया है, बस इतना है कि उनकी मृत्यु के बाद ही खरीददार इस पर कब्जा कर सकता है़ हेनेत के चेहरे में ना मौत का डर था, ना भविष्य का। घर में बेहद खूबसूरत कलाकृतियां रखी थी, जो निसन्देह जगह जगह से खरीदी गई थीं, उन्होंने बताया कि उन्हे कुछ सामसग्री दादा दादी से मिलीं, कुछ पिता की एक मात्र बहन से, घर की गैलरी में सून्दर मूर्तियाँ थीं   जिसे उनकी आण्टी ने खरीदा था़ पूरा घर बेहद कलात्मकता से सजाया गया था। जगह जगह पर छोटी छोटी चीजे, कहीं कहीं पर जानी बूझी बेतरतीबी, हम लोगों ने साथ चाय पी, और खाखरे जैसी रोटी भी खाई, फिर उन्होंने अपने बगीचे मे उगे सेव की पाई निकाली, जो काफी स्वादिष्ट बनीं थी।

वे अपने खानपान के बारे में बताने लगी कि किस तरह वे एक बारतीय डाक्टर के निर्देशों का अनुपालन कर रही हैं, उबली मैथी, काली मिर्च अदरक आदी के सा् अश्वगंधा का सेवन,

मैंने पूछा नहीं कि उनका डाक्टर एलोपैथिक है या आयुर्वेदिक, क्यों कि भारत में तो इस तरह के नुस्खे बहुत पापुलर हो रहे हैं, वे मुझ से अश्वगंधा के बारे में पूछने लगी तो मैंने कहा कि जहाँ तक मुझे ज्ञात है यह हिमालय में शिलाओं पर चिपका एक द्रव हैं, लेकिन जिस तरह से इसकी बिक्री हो रही है, समझ नहीं आता कि ये प्राकृतिक तत्व टनों की मात्रा में कैसे प्राप्त हो सकता है, क्यों कि यह कोई फसल तो है नहीं कि उगाया जा सके।

हाँ मैथी दाना, काली मिर्च, सौंफ आदि के टोटके बहुत पुराने हैं, उन पर सन्देह नहीं कर सकते।

अन्त में वे अपने स्टूडियों ले गई, जो कि अण्डर ग्राउण्ड हैं, मुझे आश्चर्य हुआ कि ७६ की उम्र में वे इतने नवीन प्रयोग एक सा् कैसे कर सकती है एक कागज का लैम्पशेड जैसा तैयार हो रहा था, जो उनके करीबियों के पत्रों से बना था। कुछ टाइपराइटर से टाइप किए गये थे, तो कुछ हाथ से लिखे, सबकों जोड़ कर वे एक मेमन्टो तैयार कर रही थीं, दूसरी ओर तारो की एक टोकरी अधबुनी रखी थी, वे शिकायती लहजे में कह रही थी मुझे इस गर्मी में पुरी कर लेना था, क्यो कि सर्दियंो में उंगलिया एंठ जायेगी कि बुनाई नहीं हो पायेगी, लेकिन यह बी अधूरी रह गई़ इस तरह उनके कई प्रोजेक्ट अधूरे पड़े थे, कुछ मिट्टी के बर्तन ज्यादा जल गये थे, यानी उम्र ने कला पर प्रभाव डालना शुरु कर दिया था, लेकिन वे भविष्य के बारे में जरा भी चिन्तित नहीं थीं.

मुझे याद आया कि मेरे अपने देश में मुझे लेकर सभी कहते हैं, अकेले क्यों रहती हो, अकेले क्यों जाती आती हो, अब क्या करोगी आदि, आदि,, हेनेत के आगे तो कोई भी सगा नहीं है, फिर भी वे अपने कर्म में जुटी हैं, बिना यह चिन्ता कए कि आगे क्या होगा।

जब हम लौटने को हुए तो कहने लगी कि रति, मैं बताउ कि मैं साइकिल से आई थी नेशनल थियेटर तक, और साइकिल वहीं रखी है, तो मैं तुम्हे वहा छोड़ दूंगी और साइकिल लेकर आ जाऊंगी, मैंने जरमन महिलाओं को साइकिल चलाते देखा है, लेकिन कोई ७६ की उम्र में साइकिल चला॓एगा, इसकी कल्पना तक नहीं की,

मैं लौट आई, लेकिन मैं नहीं सोच सकती कि इससे ज्यादा शान्त और सुन्दर शाम कुछ हो सकती है,,,,

मुझे समझ में आने लगा कि कैसे इस देश ने अपने को सम्भाला, और कैसे ये आगे बढ़ा।