मैं यह अपने
मित्रों के लिए लिख रही हूँ , जोप ये जानना चाहते हैं कि मैं जर्मनी में क्या कर रही
थी। तो मैं उन्हें बता दूँ कि विश्व के विकसित देशों में खास तौर से यूरोप में एसी
आरंटिस्ट रेसीडेन्सी होती हैं, जहां कलाकार, कवि, गायक , संगीतकार, फिल्मकार आदि रहने
के लिए आमन्त्रित होते हैं, जिससे वे अच्छे माहौल में अपना काम कर सकें। यह एक तरह
से कला संरक्षण का हिस्सा होता है। जर्मनी इस काम में फ्रांस के बाद सबसे ज्यादा सक्रिय
है। इनमें कुछ में आपकों अपना खर्च निकालने के लिये स्टाइफण्ड दिया जाता हैं, जिससे
आप गुजारा कर सकें। याद रखिये कि यूरोप में कुछ भी मुफ्त नहीं, वहाँ हर कार्यक्रम के
लिये टिकिट होता है, कविता के कार्यक्रम के लिए भी। इसलिये इस तरह की रेसीडेन्सी मिलना
सौभाग्य की बात होती है।
मेरा नाम विला
बालब्रेटा की मशहूर रेसीड्न्सी के लिये जर्मनी की अगस्ता लार ने दिया था, कवि लेखक
के रूप में। एकड़ो जमीन पर फैली विला सौ साल
पुरानी इमारत है. जिसे एक स्वीडिश खरीदा था।
बाद में वे अपने कलाकार मित्रों को आमन्त्रित करने लगे। भाग्य से युद्ध के दौरान इस
इमारत को ज्यादा नुक्सान नहीं हुआ। इसलिये यहाँ रखी हर वस्तु संग्रहालय से कम नहीं
है। युद्ध के दौरान इसमें सैनिक दफ्तर बन गया, कुछ वक्त के लिये, लेकिन यु्ध के बाद
यह सरकारी इमारत घोषित हुई, औलम्पिक के वक्त खिलाड़ी भी आकर रहे, लेकिन बाद में म्यूनिख
सांस्कृतिक विभाद ने इसे कलाकार रेसीडेन्सी बना दिया़
यहाँ पांच कलाकार
पाँच अपार्टमेन्ट में रहते हैं। वे अपने तरह से स्वतन्त्र होते हैं, और जो भी काम करना
चाहे कर सकते हैं। ज्यूरों फिक्स मे स्थानीय लोग आते हैं तो वे अपनी योजनाओं के बारे
में स्वाद करते हैं। विला का वातावरण बेहद प्राकृतिक है, और इस माहौल में आप स्वयं
रचनाशील होते है।
मैं एक प्रोजेक्ट
लेकर गई थी, वह था - Poetry theraphy, यह विषय मेरे मन में काफी वक्त से अटका हुआ
था, मेंने अथर्ववेद पर अपनी पीएच डी की रिसर्च के साथ A Seed of mind- A fresh approach of
Atharvaveda नाम से काम किया था, इन्दिरा गान्धी फैलोशिप के तहत। मेरे सामने रोग सम्बन्धी
ऋचाएं हमेशा सवाल के रूप में रही है़ , क्यों कि कुछ ऋचाएं रोर को सम्बोधित हैं, कुछ
औषध को, कुछ मृत्यु के देव को, और कुछ मानसिक शक्ति को। मेरा विश्वास रहा है कि इनका
समाज में उपयोग जरूर हुआ है, क्यों कि अथर्ववेद सामान्य जन से जुड़ा रहा है। बाद में
मैंने जब नीत्शे, जर्मनी में नीचे कहते है, अफ्रीकन दर्शन और नेटिव अमेरिकन दर्शन को
पढ़ा तो महसूस हुआ कि रो , प्रकृति और रोगी से संवाद में कवितात्मक या प्रतीकात्मक संवाद
हर संस्कृति में रहा है,
पिछले कृत्या
उत्सव में हमने इसका प्रयोग प्रेक्टिकल रूप में भी किया था, जब कैंसर वार्ड के रोगियों
ने हमारे कवियों ने संवाद किया, जिसका अच्छा
प्रभाव दिखाई दिया।
तो मैंने सोचा
कि इसविषय पर मनन करने के लिये विला का वातावरण उपयुक्त होगा। और हुआ भी यही, यहाँ
बैठ कर मैंने काफी कुछ पढ़ा और लिखा भी, और अब मेरे सामने इस विषय को लेकर एक सक्षक्त
रूपरेखा तैयार है, जिसे पुस्तक के रूप में बढ़ाया जाएगा। हाँ भाषा अंग्रेजी रखी है।
हिन्दी के सम्पादक गण चाहेंगे तो हिन्दी में पुन्रलिखा जा सकता है।
तीसरे महिने
मेरे लिये म्यूनिख पासिंग में सांस्कृतिक विभाग की रेसीडेन्सी थी, जिसमें मेरे साथ
केरल की कवयित्री सावित्री राजीवन नें भी भाग लिया। यहा स्टाइफण्ड नहीं था, लेकिन इटेलियन
तरीके की भव्य इमारत मे काफी सुविधाएं थी। इसी बीच हमें कुछ कविता पाठ भी करने को मिले,
मेरा रेडियो और स्थानीय अखबारों ने दो बार साक्षात्कार लिया,
यहा ँ आकर मैंने दूसरे तरह का काम आरम्भ किया, यानी कि मयूनिख के संग्रहालयों का भर्मण
और यहाँ के जीवन पर युद्ध के प्रभाव को समझने का। दोनो रेसीडेन्सी बिल्कुल अलग रही,
अभी मेरा पोइट्री
थेरोपी वाला काम वही कि वही अटका है, नई रेसीदेन्सी ने दो अच्छी कविताएं दी, स्थानीय कलाकारों से मिलने
का मौका मिला़ ।
फि अन्ततः में
शामरोक् पोइट्ड़ी फेस्टीवल में मुझे उद्घाषण सत्र में सांस्कृतिक मंत्री के साथ सम्बोधित
करने का मौका मिला। यही नहीं मैंने युवाऔर के साथ कला वर्कशाप में भी हिस्सा लिया।
मेरा कविता
पाठ भी काफी चर्चित हुआ़, और अन्त में सब से गुजरते हुए मैं वापिस आई तो महसूस हुआ
कि जिन्दगी का सबसे सुखद वक्त बिता कर आई हूँ।
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